Ground Report : योगी के राज में अस्पताल बना तबेला, कोरोना के तीसरी लहर से कैसे होगा मुकाबला
(30 हजार की आबादी वाले गांव की हकीकत यह है कि स्वास्थ्य केंद्र का बड़ा सा कैंपस भैंसों का तबेला बना हुआ है।)
अजय प्रकाश और जितेंद्र उपाध्याय की रिपोर्ट
जनज्वार ब्यूरो। उत्तर प्रदेश के स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार का सरकार व इनके अफसर चाहें जितना भी दावा कर लें, पर जमीनी सच्चाई कुछ और ही बयां कर रही हैं। हर दिन यहां के हालात ही झूठ से पर्दा उठा रहे हैं। यूपी के अंतिम छोर पर बिहार से सटा जिला देवरिया का मदनपुर गांव। यह आबादी के लिहाज से जिले का सबसे बड़ा गांव है। यहां के ग्रामीणों के मुताबिक कोरोना की दूसरी लहर ने तकरीबन एक माह में पचास लोगों को निगल लिया। इसके लिए ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा की बहाली को सबसे बड़ा कारण मानते हैं। 30 हजार की आबादी वाले गांव की हकीकत यह है कि स्वास्थ्य केंद्र का बड़ा सा कैंपस भैंसों का तबेला बना हुआ है।
यहां के हालात का जायजा लेने पहुंची जनज्वार की टीम ने पूरी पड़ताल की। जिसे सुनकर व जानकर हर कोई यही कहेगा कि जब दुनियां ज्ञान और विज्ञान के क्षेत्र में लंबी ऊंचाई तय कर रही है, वैसे वक्त में अभी हम बुनियादी स्वास्थ्य इंतजाम के लिए तरस रहे हैं। मदनपुर गांव जिले के बड़े गांव के साथ ही अल्पसंख्यक बहुल आबादी के लिहाज से भी बड़ा गांव है। इलाज की बेहतर व्यवस्था के लिए यहां 26 मई 2001 को नया प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र का लोकार्पण प्रदेश के तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री रमापति शास्त्री ने किया। जिसका गवाह बने तत्कालीन सांसद श्री प्रकाश मणि त्रिपाठी व क्षेत्रीय विधायक व मौजूदा प्रदेश सरकार के राज्य मंत्री जयप्रकाश निषाद। इसके साथ ही लोगों को उम्मीद जगी की प्राथमिक उपचार के साथ है सामान्य बीमारियों का अब गांव में ही उपचार हो जाएगा।
यहां चिकित्सक के साथ ही मरीजों के रक्त आदि की जांच के लिए लैब, दवाखाना आदि की व्यवस्था की गई। स्वास्थ्य कर्मियों के रात्रि विश्राम के लिए भवन, चहारदीवारी आदि का भी निर्माण कराया गया। इसका लाभ मदनपुर के अलावा गनियारी, बरांव, मझवां, पौहरिया, मोहरा, समोगर आदि दर्जनों गांवों के लोगों को शुरुवात में मिलने लगा। लेकिन समय के साथ व्यवस्था में सुधार के बजाय बदहाली बढ़ती गई, जिसका नतीजा है कि न्यू पीएचसी का बड़ा सा कैंपस अब खंडहर में तब्दील होने लगा है। मुख्य गेट से प्रवेश करते ही एक भवन नजर आता है। जिसकी रंगाई पुताई देख कहा जा सकता है कि हाल के महीनों में यहां रंग रोगन हुआ है।
लेकिन ग्रामीणों के मुताबिक यहां चिकित्सक नहीं आते ऐसे में यह रंगाई मात्र सरकारी धन के खपत कराने तक ही रहा। इसके पीछे अलग अलग कई भवन बने हुए हैं। जिसके बारे में ग्रामीणों ने बताया कि यह कर्मचारी आवास, स्टोर रूम, पंप हाउस आदि है। ये सभी भवन खंडहर हो चुके हैं। यहां अब मरीजों के उपचार के बजाय पशु बंधे जाते हैं। जगह जगह पड़े गाय भैस के गोबर व मूत्र इस सच्चाई को खुद ब खुद बयां कर रहे हैं।
मरम्मत व रख रखरखाव के अभाव में करोड़ों रुपए की लागत से बने भवन अब जर्जर को चले हैं। जिसके कभी भी ध्वस्त होने से बड़ा हादसे होने से इंकार नहीं किया जा सकता है। कैंपस की चाहरदीवारी ध्वस्त हो चुकी है। ऐसे में स्वास्थ केंद्र के नाम पर करोड़ों खर्च कर बना अस्पताल अब मरीजों के काम नहीं आ रहा है। अब चिकित्सक की तैनाती भी नहीं है है। एक मात्र कभी कभार फार्मासिस्ट नजर आते हैं। हालाकि यहां एक चिकित्सा प्रभारी, फार्मासिस्ट, लैब टेक्निशियन, एएनएम, स्वीपर व चौकीदार के पद हैं।
लेकिन अस्पताल में फार्मासिस्ट की मात्र तैनाती है। अस्पताल में इलाज का कोई प्रबंध नहीं होने के कारण कस्बा सहित आसपास के लोग झोला छाप डॉक्टरों या दूर-दराज के अस्पतालों में जाकर दवा कराने को मजबूर हैं। गांव के मरीजों को 10-12 किलोमीटर की दूरी तय कर इलाज कराना पड़ रहा है। जबकि प्रसव के लिए रुद्रपुर व महेन का रुख करना पड़ता हैै।
इंतजाम के अभाव में कोरोना की दूसरी लहर में हुई सर्वाधिक तबाही
30,000 आबादी वाले गांव में कोरोना के दूसरे लहर में तकरीबन 40 लोगों की मौत हो गई। इनमें कोरोना के लक्षण देखने को मिले थे। ग्रामीणों के मुताबिक 23 अप्रैल को इम्तियाज खा की पहली मौत हुई। इनके मौत की खबर मिलने पर छोटे भाई ममताज सऊदी अरब से गांव चले आए। परिवार को ढाढस बढ़ानेआए मुमताज खुद ही संक्रमित हो गए और उनकी मौत हो गई। इनकी मां भी चल बसी।
25 अप्रैल को इस्माइल के पुत्र इकराम खान की इलाज के दौरान गोरखपुर में मौत हो गई। इसके दूसरे दिन 26 अप्रैल को गांव के भोला खान ने भी दम तोड़ दिया व इसके 13 वे दिन छोटे भाई रियाजुल्लाह भी चल बसे। इसके अलावा अली अहमद, हुसैन सेख की पत्नी अलीमुननिशा, दाईंन , डॉ एकलाख अहमद,अली अख्तर समेत चालीस से अधिक लोगों की अप्रैल में मौत हुई है।
गांव के राजू खान कहते हैं कि मेरे पिता भोला खान की अचानक तबीयत बिगड़ी व अस्पताल ले जाने पर भी बचाया नहीं जा सका। इसके बाद छोटे अब्बा का भी मौत हो गया। हिदायतुल्ला खान कहते हैं कि मेरी मां वह दो भाभी की करोना ने जान ले ली। तनवीर अहमद ने कहा कि मेरी पत्नी साफिया खातून की मौत कोरोना से हो गई। प्रभावित परिवार के सदस्यों के मुताबिक अधिकांश में बुखार, खांसी और सांस लेने में तकलीफ की शिकायत रही। इतने कम अंतराल में कोरोना महामारी के दौर में किसी अन्य बीमारी से मौत हो जाने पर भी विश्वास नहीं किया जा सकता।
ग्राम प्रधान अली आजम शेख ने बताया कि महामारी शुरू होने के काफी दिन बाद गांव में स्वास्थ्य टीम आई थी। तेजी से मौत की बढ़ती संख्या को ग्रामीण समझ पाते उसके पहले बड़ी संख्या में जान जा चुकी थी। अधिकांश जाने ऑक्सीजन समय से न मिल पाने के चलते हुई। अस्पताल में किसी स्वास्थ्यकर्मी के न होने के कारण लोगों को प्राथमिक उपचार तक नहीं मिल पाया। बाद में मेरे पहल पर जांच के साथ गांव में सेनेटाइजर का छिड़काव कराया गया। अब अधिक से अधिक लोगों को वैक्सीनेशन कराने का प्रयास किया जा रहा है।
उधर हैरान करने वाली बात यह है कि मौत की इतनी बड़ी संख्या के बावजूद सरकारी रिकार्ड में मात्र 2 लोगों की कोरोना से जान जाने की बात स्वास्थ विभाग मानने को तैयार है। एसडीएम रुद्रपुर संजीव कुमार उपाध्याय कहते हैं कि बड़ी संख्या में लोगों की मौत हुई थी। इनमें से कुछ में कोरोना की पुष्टि भी हुई थी। लेकिन मौत कुछ उम्र व बीमारी के चलते हुई।
उपचार के प्राथमिक इंतजाम किए बिना नहीं हो सकेगा तीसरी लहर का मुकाबला
अब जब विशेषज्ञ कोरोना की तीसरी लहर के जल्द दस्तक देने की आशंका जता रहे हैं। ऐसे वक्त का मदनपुर समेत आसपास के ग्रामीण कैसे मुकाबला करेंगे ? इस सवाल को समय से हल किए बिना हम असंख्य मौत की श्रृंखला पर रोक नहीं लगा सकते। इस कटु सच्चाई के बावजूद हाल यह है कि यहां स्वास्थ्य सेवा बहाल करने के बजाए इंतजाम के नाम पर कागजी घोड़ा दौड़ाने में महकमा लगा हुआ है। हालांकि प्रधानमंत्री ही इस पर बार-बार जोर देते हैं कि जहां बीमार हैं वही उपचार के भी इंतजाम होने चाहिए। अर्थात स्थानीय स्तर पर इलाज के बुनियादी इंतजाम किए बिना कोरोना महामारी का मुकाबला करना आसान नहीं होगा।
ग्राम प्रधान अली आजम शेख ने कहा कि स्वास्थ विभाग के अधिकारियों से मिलकर मैंने यहां चिकित्सक समेत अन्य कर्मियों के तैनाती की मांग की है। अगर स्वास्थ्य प्रशासन समय से पहल करे तो ग्रामीणों को आने वाले कहर से बचाने में काफी मदद मिल सकती है।