Ground Report : सड़कों-चौराहों के बाद मंदिरों से भी टूटा आसरा, पिछले कोरोना की अपेक्षा दूसरी लहर में एक-एक रोटी को मोहताज 'भिखारी'
अपने चारों बच्चों के साथ सड़क-सड़क भीख में जिंदगी मांगती बड़किया. पति की मौत के बाद इसी तरह बच्चे पाल रही है. photo - janjwar
मनीष दुबे की रिपोर्ट
जनज्वार, कानपुर। एक हाथ में कटोरा तो दूसरी तरफ कांख में छोटे से बच्चे को दबाए 'बड़किया' हर रूकने वाले वाहनों तक भाग रही थी। बारी-बारी वह वाहन की दोनो खिड़कियों तक जाकर कटोरा फैला देती लेकिन वापसी में उसे मिलती तो बस मायूसी। कानपुर के विजयनगर चौराहे का यह सीन था। गाड़ियों की लंबी-लंबी लगने वाली कतारों के बीच आज चौराहा सूना पड़ा हुआ था।
जब-तब कुछ ट्रक, टेंपो, ऑटो वगैरा निकल रहे थे। बड़किया के साथ दो छोटी बच्चियां और भी थीं। जो शायद अपनी मां की देखा-देखी सभीके आगे हाथ फैला दे रहीं थीं। बावजूद इसके परेशानी से घिरा हर चेहरा इन भिखारी बच्चों से भी जादा बेबस लग रहा था। बड़की सहित सभी बच्चियां कुछ ना मिलने के बाद मन मसोसकर सड़क के डिवाइडर पर बैठ रहे।
हमसे बात करते हुए बड़किया ने बताया कि '3 साल पहले उसके पति का देहांत हो गया था। कई जगह काम-धाम भी खोजा पर मिला नहीं। चार बच्चे हैं, जिसमें दो छोटी बेटियां और दो लड़के हैं।' एक लड़का गोद में लिए हुए बड़किया रेड लाईट होते ही रूकी गाड़ियों की तरफ चल पड़ी। इस बार चौराहे पर बस रूकी थी। हर खिड़की पर कटोरा फैलाया गया, लेकिन किसी के लिए भी इन्हें कुछ दे पाना मुनासिब नजर नहीं आ रहा था।
शहर भर सें चौराहों और सड़कों पर घूमते अनगिनत भिखारियों के बाद तमाम भिखारी यहां मंदिरों के बाहर भी बैठे, पेट पालते मिलते हैं। गौशाला साईं मंदिर, फजलगंज शनि मंदिर, सीटीआई मंदिर, चुन्नीगंज शनि मंदिर, घण्टे वाले बाबा, जेके मंदिर इत्यादि पर दिन के मुताबिक तो कई भिखारी अक्सर बैठे रहते हैं। हालांकि इनमें कई आदतन भी होते हैं तो कईयों की मजबूरी।
आज गुरूवार है, गौशाला वाले साईं मंदिर के प्रताप का दिन। मंदिर के बाहर दर्जनो की संख्या में भिखारी आने-जाने वालों पर निगाहभर देख रहे थे। चलता आदमी जब ना रूकता तो निगाह फेर लेते, किसी दूसरे को देखने लगते। साईं मंदिरके सामने सड़क पर दूसरी तरफ गेरूए वस्त्र में बैठे महानंद ने बताया उनका कोई नहीं है। घाटमपुर के रहने वाले महानंद 11 साल से भीख मांगकर पेट भर रहे हैं।
महानंद के साथ उनकी पत्नी मैकीनंद भी थीं। गेरूए कपड़ों में महानंद की तरह ही। हमने पूछा की संतों महात्माओं की सरकार में भी आप सड़क नाप रहे? जिसपर महानंद ने बताया उनने गुरूदीक्षा ले रखी है और गेरूए वस्त्र पहनकर किसी तरह जिंदगी की सांसे गिन रहे हैं। सरकार से मदद के नाम पर महानंद को ना कभी उम्मीद थी और ना ही अब है। दोनो हाथ हवा में उटाकर हमसे कहते हैं कि 'का सरकार...कबहूँ आज तक जो एक रूपया मिलो होए।'
मंदिर की तरफ बैठीं बुजुर्ग माता धनपत से हमने भीख मांगने की मजबूरी पूछी? धनपत कहती हैं 'का करें भईया, मजबूरी है मांग रहे भीख। अब ना मांगें तो क्या होगा इस उमर में।' गरीबों की भाजपा सरकार से कभी कुछ मिला? 'हां, एक दफे बहुत समय पहिले मिला था।' हमारे सवाल के जवाब में धनपत ने बताया। हमने फिर पूछा क्या मिला था? धनपत ने बताया 'मिला था दुई सौ रूपिया, अउर सही पूछौ तो अब तौ यादै भी नहीं है कि कउन दीएस राहे।'
हम धनपत से बात कर ही रहे थे कि पीछे बैठे एक बुजुर्ग की आवाज आई 'सरकार से कुछ मिलता ही क्या है।' हमने देखा पीछे एक बूढ़ा सख्श दीवार के सहारे टेक लेकर बैठा था। हमने पास जाकर पूछा 'क्या हुआ चाचा क्या कह रे आप'? बुजुर्गवार ने बताया कि 'आज दिन तक हम लोगों को किसी से भी मदद नहीं मिली। ना सरकार से ना नेतन से।' बुजुर्गवार ने अपना नाम ननखू बताया जो भिखारी ही थे।
इस बीच आपको एक बात बता दें कि पिछले साल लगे लॉकडाउन में व्यापारियों, समाजसेवी संस्थाओं तो कुछ नई तैयारी करते नेताओं आदि ने जरूरतमंदों को खाने पीने का सामान बंटवाया भी था, लेकिन इस बार राहत में बाधा है। ये दोबारा लगे लॉकडाउन का असर है। पिछली बार से इस बार तक सरकार की नीतियों के चलते व्यापार के कई स्वरूपों पर असर पड़ा है। मध्यमवर्गीय परिवारों पर असर पड़ा। जिसका परिणाम ये, मतलब भिखारी वर्ग भी कहीं ना कहीं झेल रहा है।
आगे बेहद बुजुर्ग महिला फूलमती बैठीं थीं। हमने उनसे उनकी उम्र पूछी, जिसपर पता चला कि उन्हे याद ही नहीं है। फूलमती की मजबूरी है, भीख मांगने की। फूलमती का कोई बचा नहीं है। परिवार था नहीं आखिरी सहारा पति भी चल बसा। अकेली बचीं बुजुर्ग फूलमती मंदिर-मंदिर जिंदगी काट रही हैं। एक पानी की डोलची, बोरीनुमा झोला और चेहरे पर गहरी झुर्रियां फूलमती का सहारा हैं।
इटावा की रहने वाली अनीता भी फूलमती से फलांग भर दूर बैठी थीं। बात की तो उनने बताया कि 'उनके पति की पहले ही मौत हो चुकी थी। सहारे के तौर पर एक बेटा था, पिछले साल सड़क दुर्घटना में उसकी भी मौत हो गई। वह एक जगह नौकरी करती थीं 'लॉकडाउन' में वह भी छूट गई। उन्हें मजबूरी में अब सड़क पर बैठना पड़ रहा है। कभी 50 रूपये तो कभी 10, कभी वो भी नहीं मिलता, चल रही है जिंदगी उपर वाले की मर्जी है जैसे भी चलाए।'
साल 2021 में कानपुर की अनुमानित कुल जनसंख्या 5,307,857 है। जिसमें पुरुषों की अनुमानित संख्या 2,849,931 और महिलाओं की अनुमानित संख्या 2,457,926 है। इस तरह ही पूरे उत्तर प्रदेश की कुल अनुमानित जनसंख्या 231,502,578 है। जिनमें पुरुषों की अनुमानित संख्या 121,078,754 तथा महिलाओं की अनुमानित संख्या 110,423,824 बताई जाती है।
प्रदेश के सभी जनपदों की उंची इमारतों के बीच बसने वाला यह वर्ग तमाम वर्गों के मुताबिक बंटा हुआ है। ये वो वर्ग है जो रोज कमाकर खाता है। पहले की अपेक्षा इस बार के लॉकडाउन में ये अधिक दिक्कतों का सामना कर रहे हैं। अब सरकार को भी ध्यान देने की जरूरत है कि तीसरे या आगे फिर लॉकडाउन से पहले इस वर्ग की आर्थिकता पर भी विचार किया जाना उन्नत रहेगा।
गौरतलब है कि देश में कुल भिखारियों की संख्या 4 लाख से उपर बताई जाती है। केंद्रीय सामाजिक न्याय मंत्री थावर चंद गहलोत की तरफ से 11 मार्च 2021 को राज्यसभा में दी गई लिखित जानकारी के मुताबिक बताया गया था, कि देश में कुल 4,13,670 भिखारी है। इनमें 2,21,673 पुरुष और 1,91,997 महिलाएं शामिल हैं।
मीडिया रिपोर्टस की माने तो भिखारियों की संख्या के मामले में पश्चिम बंगाल 81,224 लोगों के साथ पहले नंबर पर है। जबकि उत्तर प्रदेश में 65,835 भिखारी, आंध्र प्रदेश में 30,218, बिहार में 29,723, मध्य प्रदेश में 28,695, राजस्थान में 25,853, दिल्ली में 2,187 भिखारी हैं जबकि चंडीगढ़ में केवल 121 भिखारी हैं।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, लक्षद्वीप में केवल दो भिखारी हैं। जबकि दादरा नगर हवेली में 19, दमन और दीव में 22 तथा अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में भिखारियों की संख्या 56 है। इन लॉकडाउनो के बाद सरकार अगर सही आंकड़े निकलवाए अब यकीनन संख्या और बढ़ी होगी।