Heatwave Impacting Agriculture : लू की चपेट में आकर गेहूं के दाने हुए खराब, खेती के लिए चुनौती बन गया है बढ़ता पारा
Heatwave Impacting Agriculture : लू की चपेट में आकर गेहूं के दाने हुए खराब, खेती के लिए चुनौती बन गया है बढ़ता पारा
Heatwave Impacting Agriculture : लू की वजह से पंजाब में इस साल गेहूं की पैदावार और फसल की गुणवत्ता (Heatwave Impacting Agriculture) प्रभावित हुई है। इस साल पंजाब में गेंहू की उपज घटकर 43 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हो गयी। वर्ष 2000 के बाद से इस साल, सबसे कम उपज हुई है। इस साल लू का मौसम जल्दी शुरू हो गया और इस कारण पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में फसल की पैदावार में अनुमानित रूप से 10-35 प्रतिशत की कमी आई है।
36 वर्षीय हरदीप कौर और उनके 39 वर्षीय पति चमकौर सिंह के पास उत्तर भारतीय राज्य पंजाब के बठिंडा जिले में दो एकड़ कृषि भूमि थी। मार्च और अप्रैल में भीषण गर्मी की वजह से उनकी जमीन पर गेहूं की पैदावार कम (Heatwave Impacting Agriculture) हो गई। उस समय दंपती पर आठ लाख रुपये का कर्ज था। उन्हें उम्मीद थी कि अच्छी फसल होगी तो कर्ज चुका देंगे। पर फसल नहीं होने और दूसरी ओर ऋण चुकाने का दबाव बढ़ने से वे नाउम्मीद हो गए। आखिरकार कौर और सिंह ने अप्रैल 2022 में आत्महत्या कर ली।
किसान संगठन भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) के बठिंडा चैप्टर के महासचिव सरूप सिंह सिद्धू ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया है कि इस साल मार्च के मध्य से बठिंडा में नौ किसान की आत्महत्या कर चुके हैं। राज्य के दूसरे जिले मनसा में भी इसी तरह सात किसानों की मौत (Heatwave Impacting Agriculture) हो चुकी है। सरूप सिंह सिद्धू इन मौतों की वजह हीटवेव की वजह से गेहूं के कम उत्पादन से उपजे तनाव को मानते हैं।
पंजाब में इस सीजन में बठिंडा और मनसा जिलों में गेहूं की पैदावार में सबसे ज्यादा गिरावट दर्ज की गई है। यह कहना है कृषि पत्रिका इंडियन सोसाइटी फॉर एग्रीकल्चरल डेवलपमेंट एंड पॉलिसी के प्रमुख एम.एस. सिद्धू का। उन्होंने कहा, "पंजाब में इस साल दो दशकों में सबसे कम गेहूं की उपज हुई है।"
उन्होंने आगे कहा है कि "1980 के दशक में, पंजाब में गेहूं की उपज 27 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हुआ करती थी जो 1990 के दशक में बढ़कर 35 क्विंटल हो गई और वर्ष 2000 में 45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर को पार कर गई। वर्ष 2000 के बाद पंजाब में गेहूं की पैदावार 45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर से ऊपर बनी रही। 2016 से 2020 तक गेहूं की पैदावार हर साल 50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर को पार कर गई। फिर पिछले साल 2021 में यह घटकर 48 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हो गया।"
"लेकिन इस साल, 2022 में, गेहूं की उपज 43 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक कम हो गई है। अब तक सबसे कम गेहूं की पैदावार 2015 में हुई थी। 45.83 क्विंटल प्रति हेक्टेयर," एम.एस. सिद्धू ने दावा किया। जब से मौसम का रिकॉर्ड रखना शुरू किया गया यानी 122 साल पहले से लेकर अबतक, इस साल का मार्च महीना भारत में सबसे गर्म रहा। इसके परिणामस्वरूप पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में फसल की पैदावार में अनुमानित रूप से 10-35 प्रतिशत की कमी (Heatwave Impacting Agriculture)आई है। इन राज्यों को सामूहिक रूप से भारत के "गेहूं का कटोरा" के रूप में जाना जाता है।
बढ़ते तापमान का कृषि पर पड़ रहा है असर
अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान द्वारा जारी वैश्विक खाद्य नीति रिपोर्ट 2022 में चेतावनी दी गयी है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से कृषि उत्पादन में गिरावट और खाद्य आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान होगा। इसके कारण 2030 तक करीब नौ करोड़ भारतीयों को दो जून की रोटी जुटाने में दिक्कत होगी।
जलवायु परिवर्तन से लू की संभावना और तीव्रता बढ़ जाती है। इससे कृषि क्षेत्र प्रभावित होता है। इस साल जो पंजाब में हुआ वह इसी का उदाहरण है। भारत में कृषि पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को समझने के लिए 2016 की एक सरकारी रिपोर्ट में यह अनुमान लगाया है कि 2.5 डिग्री सेल्सियस से 4.9 डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि होने की स्थिति में, चावल की पैदावार 32-40 प्रतिशत और गेहूं की पैदावार 41-52 प्रतिशत कम हो जाएगी।
गेहूं की कम पैदावार (Heatwave Impacting Agriculture) के बाद हरियाणा के पटौदी जिले में अपने खेत में एक निराश किसान। उत्तर भारत में लू की वजह से पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में फसल की पैदावार में अनुमानित रूप से 10-35 प्रतिशत की कमी आई है। उत्तर भारत में लू की वजह से पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में फसल की पैदावार में अनुमानित रूप से 10-35 प्रतिशत की कमी आई है।
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के जलवायु परिवर्तन और कृषि मौसम विज्ञान विभाग की प्रमुख पवनीत कौर किंगरा के अनुसार, 1970 के बाद से पंजाब में यह सबसे गर्म मार्च का महीना रहा है। ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन को इसकी वजह बताई जा रही है। किंगरा ने कहा कि पंजाब के कुछ क्षेत्रों में औसत न्यूनतम तापमान में 3.9 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई जबकि औसत अधिकतम तापमान में 4.1 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है।
किंगरा ने समझाते हैं कि "मार्च की शुरुआत के बाद से, भारत हीटवेव का सामना कर रहा है। इसलिए पंजाब में गर्मी की शुरुआत से गेहूं के दाने 20 प्रतिशत तक कम विकसित हुए। गेहूं की कटाई आमतौर पर अप्रैल में की जाती है लेकिन इस साल, जब अनाज तैयार होने की प्रक्रिया में था तभी मार्च में तापमान में भारी वृद्धि हुई। इसके कारण मार्च में ही कटाई हुई और गेहूं के दाने सिकुड़ गए,"
केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के संयुक्त निदेशक उमाशंकर सिंह ने मोंगाबे-हिन्दी से बातचीत में बताया है कि भारत ने बफर स्टॉक बनाए रखने के लिए एहतियात के तौर पर (गेहूं का) निर्यात रोक दिया है। उनका मानना है कि जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग (Heatwave Impacting Agriculture) को लेकर भारत और दुनिया के दूसरे देशों के बीच खराब प्रतिस्पर्धा है। सिंह ने खराब मौसम की भविष्यवाणी के लिए राजनेताओं और भारत मौसम विज्ञान विभाग की निष्क्रियता को जिम्मेदार ठहराया।
गर्मी से उपज के साथ-साथ अनाज की गुणवत्ता में भी कमी
भारतीय गेहूं और जौ अनुसंधान संस्थान (IIWBR) के वरिष्ठ शोधकर्ता राजेश कुमार शर्मा के अनुसार, गेहूं की फसल के तीन चरण होते हैं जो बुवाई, फूल आना और फसल तैयार होना है। शर्मा ने कहा कि किसी एक चरण में उच्च तापमान गेहूं की उपज के साथ-साथ गुणवत्ता पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालता है।
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ व्हीट एंड बार्ली रिसर्च (IIWBR) के एक अध्ययन के अनुसार, गेहूं की फसल की अच्छी वृद्धि और उपज के लिए सबसे अच्छा तापमान, बुवाई के समय 20-22 डिग्री सेल्सियस, अनाज भरने के लिए 16-22 डिग्री सेल्सियस है। कटाई के समय तापमान करीब 40 डिग्री सेल्सियस होनी चाहिए। तापमान में वृद्धि भी धीरे धीरे होनी चाहिए।
शर्मा के अनुसार "जैसे-जैसे वैश्विक तापमान बढ़ रहा है, सर्दियों के दिन कम होते जा रहे हैं। गेहूं की अच्छी फसल के लिए ठंड का मौसम जरूरी है। मार्च में गर्मी की लहरों से गेहूं की उपज प्रभावित हुई। उधर नवंबर के बाद से ही तापमान गेहूं की वृद्धि के लिए आवश्यक तापमान से अधिक था और यह हर साल बढ़ रहा है।,"
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने जलवायु परिवर्तन से भारतीय कृषि पर खतरे (Heatwave Impacting Agriculture) का मूल्यांकन किया है। इसमें भारत के 573 ग्रामीण जिलों का, जलवायु परिवर्तन जोखिम के हिसाब से मूल्यांकन किया गया है। विश्लेषण के आधार पर, 573 ग्रामीण जिलों में से 109 जिलों (कुल जिलों का 19 प्रतिशत) को 'बहुत अधिक जोखिम वाले' जिलों के रूप में वर्गीकृत किया गया था। वहीं 201 जिलों को 'उच्च जोखिम' जिलों के रूप में वर्गीकृत किया गया था।
आकलन में कहा गया है कि 2020-2049 की अवधि में 256 जिलों में अधिकतम तापमान, 1 से 1.3 डिग्री सेल्सियस और 157 जिलों में 1.3 से 1.6 डिग्री सेल्सियस बढ़ने की उम्मीद है। इन जिलों में गेहूं की खेती गर्मी के दबाव से प्रभावित होने की आशंका है।
अनियमित मानसून से खरीफ की फसलें हो रही हैं प्रभावित
धान, मक्का, कपास और मूंगफली जैसी खरीफ फसलें, जिन्हें मानसून फसल भी कहा जाता है, जून में बोई जाती हैं और अक्टूबर में काटी जाती हैं। अनियमित मानसून से खरीफ फसलें प्रभावित हो रही हैं। इस वर्ष जलवायु से जुड़ी समस्याओं (Heatwave Impacting Agriculture) से रबी फसलों जैसे गेहूं, जौ और सरसों भी प्रभावित हुईं। ये फसलें नवंबर के मध्य में बोई जाती हैं और अप्रैल या मई में काटी जाती हैं। जनवरी 2022 में प्रकाशित भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की एक रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि भारत में कृषि उत्पादकता पर जलवायु परिवर्तन पड़ रहा है। आरबीआई ने कहा कि बढ़ते तापमान के साथ-साथ चरम मौसम की स्थिति में वृद्धि से भारतीय कृषि पर संकट मंडरा रहा है।
आरबीआई के विश्लेषण से पता चलता है कि रबी के मौसम के महीनों में वर्षा और तापमान में अधिकतम परिवर्तन (Heatwave Impacting Agriculture) दर्ज किए गए हैं। कुल मिलाकर, भारतीय रिजर्व बैंक के विश्लेषण के प्रारंभिक निष्कर्षों से संकेत मिलता है कि खरीफ मौसम के दौरान अधिकतम तापमान का प्रभाव अधिक होता है जबकि न्यूनतम तापमान की विसंगतियां रबी की फसल की पैदावार को अधिक प्रभावित करती हैं। फूड एंड पॉलिसी एनालिस्ट देविंदर शर्मा ने मोंगाबे-हिन्दी को बताया, 'इस बार गर्मी असामान्य है। लेकिन यह पहली बार नहीं है जब फसलों पर लू का इतना असर देखा गया है। 2010 में भी, इस तरह की हीटवेव ने पंजाब में फसल की पैदावार को प्रभावित किया था।" 2019 के एक अध्ययन के अनुसार, 2010 में गेहूं पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में क्रमशः 4.9 प्रतिशत, 4.1 प्रतिशत और 3.5 प्रतिशत घट गया।
देविंदर शर्मा ने कहा है कि "इस बार प्रभाव ऐतिहासिक था क्योंकि मार्च की शुरुआत में हीटवेव शुरू हुई थी। हमने पहले भी लू का सामना किया है, लेकिन इस बार यह पहले से कहीं अधिक चरम पर था," इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) ने अपनी हालिया रिपोर्ट में चेतावनी दी है कि वैश्विक औसत तापमान में वृद्धि से भारत में कृषि (Heatwave Impacting Agriculture) को काफी खतरा होगा। आईपीसीसी ने कहा है कि बढ़ती गर्मी कृषि कार्य में लगे लोगों को परेशान करेगी। यह माना जाता है कि तीव्र वर्षा और गर्मी की लहरों जैसी जलवायु परिस्थितियों से फसल की पैदावार पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। रिपोर्ट में कहा गया है कि बढ़ते तापमान से पैदावार में काफी कमी आएगी। इससे चावल के उत्पादन में 10 प्रतिशत से 30 प्रतिशत और मक्के के उत्पादन में 25 प्रतिशत से 70 प्रतिशत तक कमी आ सकती है।
यह रिपोर्ट कपिल काबरा की मोंगाबे के लिए लिखी यी रिपोर्ट पर आधारित है।
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