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हिमाचल प्रदेश

लॉकडाउन के तीन महीनों में हिमाचल के 250 लोगों ने की आत्महत्या, रोजाना 3 लोग खत्म कर रहे अपनी जीवनलीला

Janjwar Desk
11 July 2020 6:08 PM IST
लॉकडाउन के तीन महीनों में हिमाचल के 250 लोगों ने की आत्महत्या, रोजाना 3 लोग खत्म कर रहे अपनी जीवनलीला
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बीते 6 महीनों में हिमाचल में आत्महत्या के कुल 365 मामले सामने आए हैं, इनमें भी अप्रैल, मई और जून के महीनों को देखें तो यह संख्या 250 है....

शिमला। हिमाचल प्रदेश में आत्महत्याओं के मामले थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। राजधानी शिमला में पूर्व महिला पार्षद के एक बीस वर्षीय बेटे अंशुल कश्यप ने अपने घर में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। आत्महत्या के पीछे क्या वजह रही, यह अभी तक स्पष्ट नहीं हो पाया है। इसी तरह ऊना के गांव लोअर देहलां के वार्ड 7 निवासी शेर सिंह ने भी फंदा लगाकर आत्महत्या की है। खबरों के मुताबिक शेर सिंह कारोबार में हो रहे लगातार नुकसान, घाटे और बीमारी के चलते तनाव में था।

बीते छह महीनों में हिमाचल प्रदेश में आत्महत्या के कुल 365 मामले सामने आए हैं। इनमें भी अप्रैल, मई और जून के महीनों को देखें तो यह संख्या 250 है। जून के महीने में सबसे ज्यादा 114 लोगों ने आत्महत्या की है जबकि अप्रैल में 47 और मई में 88 लोगों ने आत्महत्या की।

अगर जिले के हिसाब से देखें तो साल 2020 में कांगड़ा जिले से आत्महत्या के 54 मामले सामने आए जो कि राज्य में किसी भी जिले में सबसे अधिक हैं। इसके बाद मंडी में 43 केस सामने आए हैं। शिमला में 23, सिरमौर में 20, कुल्लू में 15, ऊना में 21, सोलन में 13, बिलासपुर में 14, चंबा में 6, हमीरपुर में 16, किन्नौर में पांच और बद्दी में 7 सुसाइड पेश आए हैं। केवल लाहौल स्पीति में कोई मामला नहीं है।

बीते 3 माह में लॉकडाउन के बीच 250 सुसाइड केस आए हैं। अप्रैल और मई 2018 में यह आंकड़ा 122 था। वहीं, इन दो महीनों में 14 मामले (306 IPC) और 122 मामले (174-CRPC) के हैं।

ब्लैक ब्लेंकेट एजूकेशन सोसायटी की ओर से किए सर्वे के अनुसार, 2010 से लगातार 2016 तक प्रदेश में खुदकुशी करने वाले मामलों में बढ़ोतरी हुई है। बीते दस साल में 5000 लोगों ने हिमाचल में सुसाइड किया है। 2016 में 642 लोगों ने अपनी जीवन लीला समाप्त की। वहीं, साल 2014 में 644 लोगों ने सुसाइड किया। इस तरह औसतन हर साल पांच सौ से अधिक लोग हिमाचल में सुसाइड कर रहे हैं।

आईजीएमसी के मनोचिकित्सा विभाग के सहायक प्रोफेसर देवेश शर्मा मानते हैं कि लॉकडाउन में कई तरह की दिक्कतें सामने आई हैं। सुसाइड के मामले पहले भी आते रहे हैं और ऐसी कई वजहें हो सकती हैं, जब कोई शख्स अपनी जीवनलीला समाप्त कर लेता है। आत्महत्या करने वालों में 80 से 90 फीसदी मानसिक रोग से पीड़ित होते हैं। ऐसे रोगियों में डिप्रेशन, सिजोफ्रेनिया, मूड डिसऑर्डर, नशे एक कारण है।

वह बताते हैं कि आत्महत्या करने वाले पहले ही संकेत देने लगते हैं, जैसे अब जिंदगी भारी लगने लगी है, जीने की इच्छा न रहना, भूख न लगना, नींद न आना। ऐसे में समय पर संकेतों को समझ कर अवसाद के रोगियों की जान बचाई जा सकती है।

उन्होंने आगे कहा कि दरअसल, भारत में डिप्रेशन को लेकर खुलकर बात ना करना इसकी एक बड़ी वजह है। ज्यादातर लोग अपने अवसाद की वजह अपने रिश्तेदार या दोस्तों को नहीं बताते हैं। ऐसे में मेंटल हेल्थ को लेकर काम करने वाली संस्थाएं भी अपनी भूमिका निभाती हैं।

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