Karnal News : काले गेहूं से शुगर-कैंसर का इलाज महज धोखा, गेहूं के नाम पर किसानों से लूट
करनाल। कैंसर और शुगर (Cancer And Sugar) के इलाज के नाम पर इन दिनों काले गेहूं (Black Wheat) के आटे को कुछ लोग खूब प्रमोट कर रहे हैं। इधर किसानों (Farmers) को भी बहकाया जा रहा है कि वह काले गेहूं की खेती करें, इसके आटे की बिक्री से भारी मुनाफा हो सकता है। इस झांसे के साथ किसानों को काले गेहूं का बीज महंगे दाम पर दिया जा रहा है।
लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि काले गेहूं से किसी बीमारी (Disease) के इलाज का कोई प्रमाण नहीं है। किसानों व आम आदमी को झांसे में देकर उनसे पैसे ऐंठने की कोशिश भर है।
अगले माह गेहूं (Wheat) बीजाई का सीजन शुरू हो जाएगा। इसे देखते हुए मार्केट में काले गेहूं के बीज विक्रेता सक्रिय हो गए हैं। वह किसानों को बहका रहे हैं कि काले गेहूं में औषधिय गुण है, इसकी खेती से अच्छा खासा मुनाफा हो सकता है। कई किसान भी इस तरह का दावे करने वाली कंपनियों के भ्रमजाल में फंसते चले जा रहे हैं। किसानों को काले गेहूं के नाम 2 सौ रुपए से लेकर 5 सौ रुपए किलो तक बीज दिया जा रहा हैं।
राष्ट्रीय गेहूं एवं जौ केंद्र के डायरेक्टर डॉ. ज्ञानेंद्र प्रताप (Dr. Gyanendra Pratap) ने बताया कि कालेे गेहूं से शुगर-कैंसर जैसी बीमारियां के इलाज का कोई साइंटिफिक प्रमाण नहीं है।
क्या है काला गेहूं
राष्ट्रीय एग्री फूड बायोटेक्नोलाजी इंस्टीट्यूट मोहाली (National Agri Food Biotechnology Institute Mohali) ने काले, ब्ल्यू और बंगनी रंग के गेहूं का बीज विकसित किया था। इसमें से काले गेहूं को इस तरह से प्रचारित किया गया कि इससे कैंसर व शुगर का इलाज होता है। बस फिर क्या था, देखते ही देखते किसान इस बीज के प्रति आकर्षित हो गए। अब स्थिति यह है कि भारी दामों पर किसान बीज खरीद रहे हैं।
एमएससी एग्रीकल्चर के छात्र रोहित चौधरी ने बताया कि क्योंकि गेहूं का रंग काला है,इसलिए लोगों को लगता है कि इसमें कोई न कोई औषधिय गुण होगा। इसलिए खरीददार भी झांसे में आकर अपनी सेहत और पैसा दोनो दांव पर लगा रहे हैं।
इस गेहूं का बीज अभी रजिस्टर्ड भी नहीं हुआ है। इस तरह से यह बीज बिक नहीं सकता। इसके बाद भी इसकी बिक्री होना कानूनी अपराध है।
रोहित चौधरी ने बताया कि मुनाफाखोरों ने मीडिया के एग्रीकल्चर के कम ज्ञान का फायदा उठाया। ऐसी खबरें प्लांट कराई गई कि काला गेहूं बीमारियों के लिए जादू है। मेन स्ट्रिम मीडिया ने काले गेहूं के प्रचार का काम किया। आम आदमी मीडिया की बात पर यकीन करता है। इसका फायदा मुनाफाखोरो ने उठाया। यहां तक की कई कंपनियां और आन लाइन बिक्री करने वाली कंपनियां भी काले गेहूं के आटे के नाम पर लोगों का बेवकूफ बना रही है।
कृषि मंत्रालय के निर्देश पर गेहूं अनुसंधान केद्र ने किया टेस्ट
डायरेक्टर डाक्टर ज्ञानेंद्र प्रताप सिंह ने बताया कि कृषि मंत्रालय के निर्देश पर काले गेहूं का टेस्ट किए गए। इसमें पाया गया कि गेहूं में ऐसा कुछ नहीं है जो बीमारियों का इलाज कर सके। शुगर के मरीज को फाइबर युक्त आटा खाना चाहिए, यह तो गेहूं की दूसरी किस्मों में भी है। काले गेहूं में यह अतिरिक्त नहीं मिला। इसके अलावा काले गेहूं की रोगप्रतिरोधक क्षमता कम है। इस तरह से किसानों के लिए इसकी खेती पारंपरिक गेहूं की तुलना में नुकसानदायक साबित हो सकती है।
डाक्टर ज्ञानेंद्र प्रताप सिंह ने बताया कि हमारे टेस्ट में ऐसा कुछ नहीं मिला, जिसके आधार पर यह बताया जाए कि गेहूं विशेष है। इसलिए मार्केट में काले गेहूं को लेकर जो चल रहा है, वह भ्रम मात्र है। इससे ज्यादा कुछ नहीं है।
देशभर में कोई क्लीनिक ट्रायल ही नहीं हुआ हैं। जो भारत सरकार के मापदंडों के अनुसार होता हैं। क्लीनिक ट्रायल की रिपोर्ट सार्वजनिक होती हैं, तमाम चीजों पर रिसर्च होता हैं। सीड एक्ट के अनुसार गजट नोटिफिकेशन से वैरायटी का नोटिफाई होना जरुरी हैं, काले वगैरह गेहू का नोटिफिकेशन नहीं हो पाया, क्योकि परीक्षण ही नहीं हो पाया। ऐसी परिस्थितियों में काले गेहूं का सीड प्रोडक्शन भी सरेआम नियमों का उल्लंघन माना जाएगा।
किसान और उपभोक्ता दोनो का हो सकता है नुकसान
काले गेहूं की खेती में क्योंकि उत्पादन कम होने की संभावना है। बीमारियों के आने का अंदेशा ज्यादा है। इससे भी बड़ी बात तो यह है कि किसान को इसकी मार्केेटिंग खुद करनी होगी। मंडी में गेहूं की खरीद संभव नहीं है। इस तरह से देखा जाए तो किसान को इसकी खेती से नुकसान ही हो सकता है।
बड़ी बात तो यह है कि इस वक्त जो लोग किसानों को काले गेहूं के नाम पर भ्रमा रहे हैं, अगले साल काले गेहूं की खेती करने वाले किसान दूसरे लोगों को इसी तरह से भ्रमाएंगे, क्योंकि उन्हें इस किस्म का बीज बेचना है।
जहां तक उपभोक्ता की बात है, क्योंकि इससे बीमारी का इलाज तो होता नहीं, वह इस भ्रम में भारी दाम चुका कर आटा खरीद लेता है कि शायद बीमारी खत्म हो जाए। कई बार होता इसका उलट है, क्योंकि तब मरीज रोजमर्रा के खाने में जो परहेज रखता है,इसमें भी चूक कर सकता है। जो उसके लिए दिक्कत की बात हो सकती है। इस तरह से देखा जाए तो काला गेहूं फिलहाल किसी के लिए भी सही नहीं माना जा सकता। जब तक कि इसका कोई वैज्ञानिक आधार न हो।