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कोरोनाकाल में बड़ी आफत बन रहे ब्लैक फंगस और व्हाइट फंगस के बारे में जानिये, ऐसे करें बचाव

Janjwar Desk
23 May 2021 7:42 AM GMT
कोरोनाकाल में बड़ी आफत बन रहे ब्लैक फंगस और व्हाइट फंगस के बारे में जानिये, ऐसे करें बचाव
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प्रतीकात्मक तस्वीर। 

व्हाइट फंगस का संक्रमण ब्लैक फंगस से ज्यादा खतरनाक होता है, इसका प्रभाव फेफड़ों और शरीर के अन्य अंगों पर तीव्रता से पड़ता है...

जनज्वार ब्यूरो। कोरोना महामारी के साथ ही ब्लैक फंगस के बाद व्हाइट फंगस के मामले भी सामने आने लगे हैं। विशेषज्ञों की माने तो व्हाइट फंगस, ब्लैक फंगस से भी ज्यादा खतरनाक है। केंद्र सरकार ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से ब्लैक फंगस संक्रमण को महामारी रोग अधिनियम 1897 के तहत अधिसूचित कर सभी मामलों की सूचना देने का आग्रह किया था।

यूएस सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रीवेंशन के अनुसार ये गंभीर लेकिन दुर्लभ फंगल इंफेक्शन हैं, ये इन्फेक्शन मोल्ड्स के ग्रुप जिसे micromycetes कहते हैं के कारण होते है। यह तीव्र गति के साथ फैलता है। हालांकि यह संक्रामक रोग नहीं हैं। यह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में नहीं फैलते लेकिन जिसे होते है उसके महत्वपूर्ण अंगों में फैल कर गंभीर समस्या उत्पन्न कर देते है।

राजस्थान व उत्तराखंड समेत 14 राज्यों ने ब्लैक फंगस को महामारी घोषित कर दिया है। ब्लैक फंगस के मामले देशभर में लगातार बढ़ रहे है। बिहार और मध्य प्रदेश में व्हाइट फंगस के मामले भी सामने आने लगे हैं।

क्या है व्हाइट फंगस-

व्हाइट फंगस फफूंद के कारण होने वाला संक्रमण है। विशेषज्ञों के अनुसार व्हाइट फंगस का संक्रमण ब्लैक फंगस से ज्यादा खतरनाक होता है। इसका प्रभाव फेफड़ों और शरीर के अन्य अंगों पर तीव्रता से पड़ता है। जैसे ही यह फैलता है महत्वपूर्ण अंगों को बहुत नुकसान पहुंचाता है। यह मस्तिष्क, श्वसन अंगों, पाचन तंत्र, गुर्दे, नाखून यहां तक कि निजी अंगों को भी प्रभावित कर सकता है।

इसके लक्षणों में मुख्यतः श्वसन संबंधी समस्याएं जैसे छाती का भारीपन, सीने में लगातार दर्द, खांसी, सांस फूलना, सूजन होना, नाक बहना, लगातार असहनीय सिर दर्द रहना आदि हैं।

व्हाइट फंगस और कोरोना वायरस के लक्षण मिलते-जुलते हैं। अगर यह फंगल इन्फेक्शन फेफड़ों तक पहुंच जाए तो बिल्कुल कोरोना के लक्षणों से मेल खाता है। यह फंगल संक्रमण कमजोर इम्यून सिस्टम वाले लोगों को शिकार बनाता है। कोरोना संक्रमित मरीज के अंदर यह फंगस ऑक्सीजन सिलेंडर से पहुंच सकता है। यह ब्लैक फंगस के मुकाबले ज्यादा तेजी से फैलता है। व्हाइट फंगस की जांच के लिए चेस्ट एक्स रे, ब्लड टेस्ट, सीटी स्कैन का सहारा लिया जाता है।

उपचार-

डॉक्टरों के अनुसार ब्लैक फंगस की तरह व्हाइट फंगस भी किसी व्यक्ति में गंदी सतह के संपर्क में आने से फैल सकता है। जो रोगी लंबे समय तक ऑक्सीजन पर हैं या अनफिल्टर्ड ऑक्सीजन सिलेंडर का उपयोग कर रहे हैं उन्हें भी इसका खतरा बना रहता है। इससे बचने के लिये स्वच्छता का विशेष ध्यान देने की जरूरत है। व्हाइट फंगस का उपचार एंटीफंगल दवा से संभव है। इसके अलावा ताजा फलों का प्रयोग, घर में पर्याप्त रोशनी का इंतेजाम, हाथ-पैरों की लगातार सफाई करें। फ्रिज में रखे पदार्थों का इस्तेमाल न करें।

ब्लैक फंगस-

ब्लैक फंगस भी फफूंद के कारण होने वाला संक्रमण है। एम्स के निदेशक रणदीप गुलेरिया के अनुसार ब्लैक फंगस चेहरे, संक्रमित नाक-आंख और मस्तिष्क को प्रभावित कर सकता है। इससे आंखों की रोशनी भी जा सकती है। यह फेफड़ों में भी फैल सकता है। इसके संक्रमण को रोकने के लिये प्रोटोकॉल का पालन करना चाहिए। कम रोग प्रतिरोधक क्षमता वाले, मधुमेह व कैंसर पीड़ित लोग, नियमित रूप से स्टेरॉयड का उपयोग करने वाले लोगों के संक्रमित होने का खतरा अधिक रहता है। एम्स निदेशक दीपक गुलेरिया के अनुसार ब्लैक फंगस के मामलों के पीछे स्टेरॉइड का दुरुपयोग प्रमुख कारण है। आईसीयू में लम्बे समय तक रहने वाले मरीजों में भी यह हो सकता है।

ब्लैक फंगस कोविड-19 संक्रमित लोगों को अधिक प्रभावित कर रहा है। इसके प्रमुख लक्षणों में नाक का काला पड़ना, आंखों में धुँधलापन, सीने में दर्द, सांस लेने में तकलीफ, खांसी से खून आना, साइनस, आंख-नाक के पास दर्द, बुखार, सिर दर्द, खांसी-उल्टी के साथ सांस लेने में तकलीफ़ इसके प्रमुख लक्षण हैं।

उपचार-

ब्लैक फंगस को रोकने के लिए पश्चिम बंगाल के स्वास्थ विभाग द्वारा जारी एडवाइजरी के अनुसार पर्यावरण में विद्यमान फंगल बीजाणु के संपर्क में आने से लोग संक्रमण की चपेट में आ जाते हैं। इसलिए लोगों को मिट्टी, खाद, मल-मूत्र के अलावा सड़ी हुई रोटियों, फल और सब्जियों के संपर्क में आने से बचना चाहियें। मिट्टी की बागवानी को संभालते समय जूते, लंबी पतलून, लंबी बाजू की शर्ट और दस्ताने पहनने चाहियें। लोगों को व्यक्तिगत स्वच्छता बनाए रखनी चाहिए। नहाते समय पूरी तरह से स्क्रब करना चाहियें। इसके उपचार में एंटी फंगल दवाओं का इस्तेमाल किया जाता है।

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