गन्ने के मसले पर किसान जत्थेबंदियों के ट्रैप में फंस गई कैप्टन सरकार, आंदोलन के 5वें दिन 27 ट्रेनें रद्द
( किसान आंदोलन का पंजाब कांग्रेस पर कितना असर पड़ रहा है )
मनोज ठाकुर की रिपोर्ट
जनज्वार ब्यूरो/ चंडीगढ़। राजनीति में घटनाक्रम कैसे बदलता है, पंजाब कांग्रेस इसका बड़ा उदाहरण है। कुछ समय पहले तक पंजाब में मजबूत कांग्रेस अब हर रोज कमजोर होती नजर आ रही है। सीएम अमरिंदर सिंह और सिद्धू विवाद के बाद अब गन्ना उत्पादक किसानों के निशाने पर पंजाब सरकार आ गई है। यह विवाद ऐसे वक्त पर सामने आया, जब एक तरफ पंजाब के किसान तीन कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली बॉर्डर पर डटे हुए हैं।
कांग्रेस ने कृषि कानूनों पर किसानों को साथ दिया। लेकिन अब वहीं किसान कांग्रेस की परेशानी बन गए हैं क्योंकि गन्ना उत्पादक किसान आंदोलनरत हो गए हैं। आंदोलन के पांचवें दिन पंजाब के रोड जाम है, 27 रेल रद्द कर दी गई है।
पंजाब में अगले साल विधानसभा चुनाव है। इस बार के सियासी समीकरण कांग्रेस के पक्ष में बैठते नजर आ रहे थे। कई किसान जत्थेबंदियां चाहती है या तो वह स्वयं चुनाव लड़े या फिर उन्हें कोई दल पूरा समर्थन दे। किसान जत्थेबंदियों के नेता अपने लिए टिकट भी चाह रहे हैं।
पंजाब के किसानों की मांग है कि गन्ने के दाम हरियाणा के बराबर दिए जाए। पंजाब सरकार ने इस बार प्रति क्विंटल पर 15 रुपए की वृद्धि की, इसे किसानों ने ठुकरा दिया है। राज्य सरकार ने गन्ने के लिए शुरुआती किस्म के लिए 325 रुपए, मध्यम के लिए 315 और देर से पकने वाली किस्म के लिए 310 रुपए की दरों की घोषणा की थी। किसानों ने कहा कि पड़ोस हरियाणा में सरकार 358 रुपए प्रति क्विंटल दे रही है।
किसान आंदोलन का पंजाब कांग्रेस पर कितना असर पड़ रहा है, इसका अंदाजा इस बात से लग सकता है कि किसानों के साथ सरकार लगातार बातचीत कर रही है। सरकार इस मसले का हल जल्द निकालना चाह रही है। इस कोशिश में पंजाब के आयुक्त (कृषि) बलविंदर सिंह सिद्धू और पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के दो अर्थशास्त्रियों समेत अधिकारियों एवं विशेषज्ञों के एक दल ने जालंधर में किसान नेताओं के साथ बैठक की और गन्ने उत्पादन की लागत उनका पक्ष जाना।
सिद्धू ने कहा कि ज्यादातर मुद्दों पर किसानों एवं सरकार के बीच सहमति बन गयी है। आज शाम तीन बजे कैप्टन अमरिंदर सिंह की किसानों के साथ बातचीत है। इस बैठक को लेकर किसान भी उत्साहित है।
पंजाब की राजनीति पर नजर रखने वालों का मानना है कि यह आंदोलन कांग्रेस को घेरने के लिए किया गया है। क्योंकि यदि सरकार गन्ना उत्पादक किसानों की बात मानती है, तो चीनी मिल संचालक सरकार से नाराज हो जाएंगे। वह चीनी मिल बंद करने की धमकी भी दे सकते हैं। अतीत में ऐसा हो भी चुका है। यदि सरकार किसानों की मांग नहीं मानती तो आंदोलन खत्म नहीं होगा।
किसान नेता बलबीर सिंह राजेवाल ने ऐलान किया कि किसानों का धरना जारी रहेगा। रेल ट्रैक बंद रहेंगे। सरकार के साथ बैठकों के बाद जो भी फैसला आएगा, उसके आधार पर ही किसान संगठन अपनी अगली रणनीति बनाते हुए आंदोलन के बारे में फैसला लेंगे। किसान नेता मनजीत सिंह ने कहा कि उनकी मांगों को स्वीकार नहीं किया गया तो संघर्ष और तेज किया जाएगा। उन्होंने मांग की कि सरकार निजी और सहकारी चीनी मिलों की तरफ गन्ना उत्पादकों का बकाया 200 करोड़ रुपये तुरंत जारी करे और गन्ने का दाम 400 रुपये प्रति क्विंटल तय किया जाए।
पंजाब के राजनीति समझ रखने वाले राकेश शर्मा ने बताया कि इस बार किसान नेताओं का एजेंडा थोड़ा अलग है। वह किसानों की मांगों को मुद्दा बना कर राजनीति आधार मजबूत करने की कोशिश में हैं।
एक लंबे समय के बाद पंजाब का किसान इतना एकजुट हुआ है। किसान जत्थेबंदियों की कोशिश यह है कि यह एकजुटता किसी तरह से राजनीति मजबूती में तब्दील हो जाए। राकेश शर्मा ने बताया कि इसमें दो राय नहीं कि पंजाब में गन्ना उत्पादक किसानों को कम दाम मिल रहे हैं, लेकिन दूसरी ओर चीनी मिलों की स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं है। यदि चीनी मिल ही आर्थिक तौर पर कमजोर हो गई तो गन्ने का होगा क्या?
चीनी मिल के सामने दिक्कत यह है कि वह लगातार नुकसान में जा रही है। इस वजह से न तो मिल का आधुनिकीकरण किया जा रहा है, न ही नई तकनीक आ रही है। गन्ना उत्पादक किसान भी गन्ने की खेती में नई तकनीक और नए बीजों को अपनाने से परहेज कर रहे हैं। एमेटी यूनिवर्सिटी से बीएससी एग्रीकल्चर कर चुके रोहित चौहान ने बताया कि किसान अभी भी गन्ने की खेती में प्रयोग नहीं कर रहे हैं। यह मामला राजनीति नहीं बल्कि सामाजिक और आर्थिक होना चाहिए।
किसानों को चाहिए कि वह गन्ने की खेती मे आधुनिक तकनीक का प्रयोग करें। ऐसे बीजों का प्रयोग करें, जिससे चीनी की रिकवरी ज्यादा हो। यूपी में हरदोई जिले में निजी क्षेत्र के चीनी मिल ऐसा कर रहे हैं। वहां किसान प्रति बीधा ज्यादा गन्ना निकाल रहे हैं। इससे होता यह है कि यदि गन्ने का उत्पादन ज्यादा होगा तो किसान के पास ज्यादा पैसा आएगा, इस तरह से रेट कम के नुकसान की भरपाई हो सकती है।
रोहित चौहान ने बताया कि चीनी मिल, किसान और सरकार तीनों को एक मंच पर आना होगा। यह बड़ी समस्या है। ज्यादा रेट समस्या का हल नहीं है। इसलिए मामले का राजनीतिकरण करने की बजाय इसका सर्वमान्य हल निकालने की कोशिश होनी चाहिए। दिक्कत यह है कि इस ओर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। और यहीं गन्ना उत्पादकों की सबसे बड़ी समस्या है।