राज्यसभा से जारी मौतों का आंकड़ा और PM Modi के इंटरव्यू की नैतिकता पर रवीश कुमार ने उठाया बड़ा प्रश्न
(इंटरव्यू के नाम पर प्रधानमंत्री चुनावी रैली कर रहे हैं)
UP Election 2022: समाचार एजेंसी एएनआई (ANI) पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) का लंबा इंटरव्यू चल रहा है। जिसे आज से लेकर कल तक सभी समाचार चैनल एंगल बदल-बदलकर दिखाएंगे। इसे लेकर वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार ने सवाल खड़ा किया है। रवीश ने अपनी फेसबुक पोस्ट में लिखा है कि, चुनाव का प्रचार ख़त्म हो गया है। इंटरव्यू के नाम पर चुनाव प्रचार चल रहा है।
इतनी नफ़रत लोकतांत्रिक मर्यादाओं से नहीं करनी चाहिए कि उसकी पूजा का नाम भी लें और उसकी परवाह भी न करें। क्या यह उचित है? इतना चालाकी करने की ज़रूरत भी क्या है ? ख़ुद ही राष्ट्र के नाम पर भाषण देना शुरू कर देते। किसने रोका है। चुनाव आयोग तो क्या ही रोकेगा।
क्या न्यूज़ चैनल आज की रात विपक्ष के किसी नेता का इतना लंबा इंटरव्यू चलाएँगे? आप दर्शक हैं, आप ही बताए कि प्रधानमंत्री का इंटरव्यू है या चुनावी रैली है। संपत सरल ने ठीक कहा है कि जिस मीडिया को जनता के लिए मोमबत्ती होना था, वह सत्ता के लिए अगरबत्ती हो गया। क्या प्रधानमंत्री मोदी के समर्थकों या बीजेपी के कार्यकर्ताओं को भी इसमें कुछ ग़लत नहीं लगता है? उन्होंने सही ग़लत का फ़र्क़ करना ही बंद कर दिया है? क्या हासिल करने के लिए इस तरह की मर्यादा क़ायम की जा रहीं है? ऐसे ही अगर इंटरव्यू चलना है, और होना है तो फिर बंद कीजिए मीडिया और पत्रकार होने की बहस को।
यही नहीं प्रधानमंत्री के इंटरव्यू के नाम पर कल अख़बारों में विज्ञापन की शक्ल में ख़बरें छपी मिलेंगी। पूरा पन्ना बैनर हेडलाइन से भरा होगा जिसमें प्रधानमंत्री के हमले होंगे। उन तथ्यों और उन सवालों का कोई जवाब नहीं होगा जिनसे जनता परेशान है और जो उनके दावों को लेकर पूछे जा रहे हैं। यह आपको तय करना है कि इन सबका हासिल क्या है? क्या हर तरह की मर्यादा को कुचल कर आप ख़ुद सुख-चैन से रह पाएँगे? ऐसे इंटरव्यू को लेकर आप दुनिया में सर उठा कर चल सकते हैं? कि पाँच हज़ार की संस्कृति का प्रतिनिधि करने वाले देश की पत्रकारिता का यह हाल है और प्रधानमंत्री की यह नैतिकता?
सवाल आप जनता से भी है, क्या लोकतांत्रिक मर्यादा और मीडिया की स्वायत्ता के प्रश्न आपके नहीं है ? आपको लगता है कि इसके बिना आपकी दाल रोटी चल जाएगी? चल गई थी दूसरी लहर के दौरान ? डाक्टर और अस्पताल मिल गए थे? आक्सीजन मिल गया था? रोज़गार मिल गया था? आज ही राज्य सभा में सरकार ने एक आँकड़ा दिया है कि 2018-20 के दौरान 16000 लोगों ने दिवालिया होने और क़र्ज़ के कारण ख़ुदकुशी कर ली।
2020 में जब तालाबंदी का दौर चल रहा था तो उस साल 5213 लोगों ने दिवालिया और क़र्ज़ से तंग आकर आत्महत्या कर ली थी। 2018-20 के बीच 9140 बेरोज़गारों ने आत्महत्या कर ली। ये हमारा रिकार्ड है। और उसके बाद से इस देश की मीडिया को ग़ुलाम बना कर इस तरह का तमाशा रोज़ रचा जा रहा है। क्या ये सारे सवाल आपके लिए बिल्कुल महत्वपूर्ण नहीं है?