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AFSPA Act : इरोम शर्मिला ने North East में एएफएसपीए (AFSPA) कानून में कटौती के फैसले का किया स्वागत

Janjwar Desk
1 April 2022 7:13 AM GMT
Relief to North East : North East में  एएफएसपीए (AFSPA) कानून में कटौती के फैसले का इरोम शर्मिला ने किया स्वागत
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Relief to North East : North East में एएफएसपीए (AFSPA) कानून में कटौती के फैसले का इरोम शर्मिला ने किया स्वागत

AFSPA Act : इरोम शर्मिला ने भारत सरकार के उस फैसले का स्वागत किया है जिसके तहत असम, मणिपुर और नागालैंड के कई हिस्सों में एएफएसपीए कानून के क्षेत्र में कटौती की गयी है....

Relief to North East : पूर्वोत्तर के राज्यों (North Eastern States) मणिपुर (Manipur), असम (Asam) और नागालैंड (Nagaland) में सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (AFSPA) के क्षेत्र में कटौती के सरकार के फैसले का मणिपुर की सामाजिक कार्यकर्ता इरोम शर्मिला चानू (Irom Sharmila Chanu) ने स्वागत किया है। आपको बता दें कि इरोम शर्मिला चानू वही महिला हैं जो पूर्वोत्तर में एफएसपीए कानून के विरोध में साल 2000 से साल 2016 तक लगातार भूख हड़ताल पर बैठीं थी। बाद में उन्होंने पीआरजेए नाम का एक गठबंधन बनाकर 2017 के विधानसभा चुनावों में भी दावेदारी पेश की थी। पर इसमें वह सफल नहीं हो पायी थीं।

इरोम शर्मिला ने भारत सरकार (Government of India) के उस फैसले का स्वागत किया है जिसके तहत असम, मणिपुर और नागालैंड के कई हिस्सों में एएफएसपीए कानून के क्षेत्र में कटौती की गयी है। इस बारे में बात करते हुए उन्होंने एक समाचारपत्र से कहा है कि सरकार का यह फैसला लोकतंत्र की वास्तविक पहचान है। एक कार्यकर्ता के रूप में मेरे लिए यह एक सुखद क्षण है। मुझे यह देखकर खुशी हो रही है देश की मुख्यधारा के राजनीतिज्ञ देश की संसद में बैठकर कुछ अलग करने की पहल कर रहे हैं।

एक घिसे-पिटे और सामंतवादी कानून को वापस लेने की पहल मेरे लिए देश के लोकतंत्र की वास्तविक पहचान की तरह है। यह एक नई शुरुआत है और वर्षों से इसके लिए होते आ रहे संघर्ष का नतीजा है। यह सकारात्मकता की दिशा में बढ़ाया गया पहला कदम है। मैं उम्मीद करती हूं कि एक दिन पूरे पूर्वोत्तर भारत से एएफएसपीए कानून का सफाया हो जाएगा।

इरोम शर्मिला ने बातचीत में यह भी कहा कि जिन लोगों ने इस विनाशकारी कानून के कारण व्यक्तिगत तौर पर नुकसान झेला और अपने परिजनों को खोया सरकार को पहल कर उनकी भलाई के लिए भी काम करना चाहिए।

यह पूछे जाने पर कि एफएसपीए कानून के खिलाफ अपनी लड़ाई को वो किस रूप में देखती हैं? उन्होने कहा कि भूख हड़ताल शुरू करने के सिर्फ तीन दिनों के बाद मुझे गिरफ्तार कर लिया गया। मुझे असहनीय यातनाएं दी गईं। मैं पानी की एक बूंद भी पीना नहीं चाहती थी पर इसके लिए मुझ पर अमानवीय तरीके से अस्पताल और जेल में दबाव बनाया गया। मुझे नाक से खाद्य सामग्री देने की कोशिश की गयी। आगे चलकर मेरी वह भूख हड़ताल दुनिया भर सबसे लंबे समय तक चली भूख हड़ताल बन गयी।

मैंने एक मकसद के लिए यातनाएं झेलीं। आज मुझे इस बात की खुशी है कि देश के नेताओं ने मेरे योगदान समझा और इसे व्यर्थ नहीं जाने दिया। अब इस कानून के क्षेत्र में कटौत कर एक सकारात्मक फैसला लिया गया है।

उन्होंने कहा कि एएफएसपीए कानून के हट जाने अब क्षेत्र में डर का माहौल नहीं रहेगा। लोगों का जीवन पटरी पर लौटेगा और बेहतर होगा। हमने इस कानून का विरोध करने की शुरूआत इसलिए की थी क्योंकि इस कानून के आड़ में महिलाओं को प्रताड़ित किया जा रहा था।

आगे चलकर मैंने देखा कि पूर्वोत्तर के राज्यों में जो गतिविधि चल रही है वह इस क्षेत्र को विकास से विमुख कर रही है। मैंने यह अहसास किया कि स्थानीय स्तर पर इसका गैरकानूनी तरीके से आंदोलन चलाकर कोई फायदा नहीं है क्यों कि इससे लोगो के बीच डर बढ़ रहा था।

आपको बता दें कि इरोम शर्मिला वह महिला हैं जिन्हें एएफएसपीए कानून को हटाने के लिए चले आंदोलन के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। पूर्वोत्तर के राज्यों में उनके प्रति लोगों में गजब सम्मान है। ऐसे में उसी महिला का सरकार के फैसले पर खुशी जताना और इस फैसले को लोकतंत्र की वास्तविक पहचान बताना काफी महत्वपूर्ण नजर आता है।

देश में जिस पार्टी पर हिटलरवादी और सामंतवादी होने के आरोप लगे विपक्षी लगाते हैं अगर उस पार्टी के फैसले को इरोम शर्मिला जैसी कार्यकर्ता सराहती हैं तो यह निश्चित रूप से ही काफी महत्वपूर्ण है।

आपको बता दें कि साल 1958 में भारतीय संसद ने आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर एक्ट (AFSPA) को पारित किया था। इस कानून को ऐसे क्षेत्रों में लागू किया जाता है, जिन्हें अशांत या तनावपूर्ण माना जाता है। इस कानून में सुरक्षाबलों को कुछ विशेषाधिकार दिए जाते हैं। इस कानून का इस्तेमाल कर सुरक्षाबल बिना वारंट के भी गिरफ्तारी कर सकती है।

सुरक्षाबलों को बिना किसी पूर्व नोटिस के इलाके में अभियान छापेमारी अभियान चलाने चलाने का भी अधिकार होता है। किसी अभियान के दौरान कोई चूक होने पर भी इस कानून में सुरक्षाबलों को मिले विशेषाधिकार के तहत उनके ऊपर कोई कानूनी कार्रवाई नहीं की जाती है।

पूर्वोत्तर के राज्यों में 50 वर्ष से अधिक समय से इस कानून के लागू होने से वहां इस अदोलन का लोग लंबे समय से विरोध कर रहे थे। उनका यह आरोप था कि इस कानून की आड़ में पूर्वोत्तर की भोली-भाली जनता के साथ अन्याय किया जा रहा है। कई बार इस आंदोलन के विरोध में पूवोत्तर के लोगों ने खासकर महिलाओं ने इस कानून को वापस लेने की मांग को लेकर आंदोलन चलाया था।

अब केन्द्र की एनडीए सरकार नगालैंड (Nagaland), असम (Asam) और मणिपुर (Manipur) राज्यों में सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (AFSPA) के तहत अशांत क्षेत्रों में कटौती करने का फैसला लिया है। यह काम देश की सत्ता में लंबे समय से काबिज कांग्रेस की सरकार भी नहीं कर पायी थी। ऐसे में इस फैसले का जानकारी काफी महत्वपूर्ण मान रहे हैं। उनका कहना है कि इस फैसले देश नार्थ ईस्ट के लोगों का भरोसा ​जीतने में कामयाब हो सकेगी।

आपको बता दें कि गुरुवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) ने ट्वीट (Tweet) कर लिखा था कि, "पीएम मोदी के नेतृत्व में भारत सरकार ने दशकों बाद नागालैंड, असम और मणिपुर राज्यों में सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (AFSPA) के तहत अशांत क्षेत्रों को कम करने का फैसला किया है।" अमित शाह ने इसके साथ ही पूर्वोत्तर की जनता को बधाई देते हुए कहा है कि सालों तक भारत के इस हिस्से की अनदेखी की गयी, लेकिन वर्तमान केंद्र सरकार इस इलाके पर विशेष ध्यान है।

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