Supreme Court News : गुजरात दंगों और बाबरी मस्जिद विध्वंस से जुड़े सभी मामले बंद, सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला
Supreme Court News : गुजरात दंगों और बाबरी मस्जिद विध्वंस से जुड़े सभी मामले बंद, सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला
Supreme Court News : सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को बड़ा फैसला लेते हुए बाबरी मस्जिद विध्वंस और गुजरात दंगों से जुड़े मामलों को बंद करने का आदेश दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात में 2002 के दंगों से जुड़े सभी मामले बंद कर दिए हैं। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के समक्ष याचिकाओं का एक बैच लंबित था। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि समय बीतने के साथ मामले अब निष्फल हो गए हैं। 9 में से 8 मामलों में ट्रायल खत्म हो गया है और गुजरात के नरोदा गांव एक मामले में अंतिम बहस चल रही है। इसके अलावा कोर्ट ने बाबरी मस्जिद विध्वंस से जुड़े अवमानना के मामले को भी बंद करने का आदेश दिया है।
बाबरी मस्जिद विध्वंश मामले में कार्यवाही बंद
दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में अधिवक्ता प्रशांत भूषण और पत्रकार तरुण तेजपाल के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही को बंद करने का आदेश दिया है। दोनों ने ही इस मामले में माफी मांग ली है। बता दें कि प्रशांत भूषण ने 2009 में एक इंटरव्यू में पूर्व और मौजूदा जजों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे। इस मामले में पैरवी करते हुए कपिल सिब्बल ने कहा कि प्रशांत भूषण और तरुण तेजपाल ने माफी मांग ली है। इसलिए दोनों के खिलाफ केस को बंद किया जा सकता है। उनकी इस मांग को जस्टिस इंदिरा बनर्जी, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एम.एम सुंदरेश की बेंच ने स्वीकार कर लिया।
2022 में हुआ था गुजरात दंगा
बता दें कि 27 फरवरी, 2002 को गुजरात के गोधरा में एक ट्रेन को उपद्रवियों ने आग लगा दी थी। ट्रेन की बोगी में सवार 59 लोग जलकर मर गए थे, इसमें ज्यादातर अयोध्या से लौट रहे कारसेवक थे। इस घटना के बाद गुजरात में दंगा भड़क उठा था। इस मामले को लेकर केंद्र सरकार ने एक कमिशन नियुक्त किया था, जिसका मानना था कि यह महज एक दुर्घटना थी। इस निष्कर्ष से बवाल खड़ा हो गया और कमिशन को असंवैधानिक घोषित कर दिया गया। इस मामले में 28 फरवरी, 2002 को 71 दंगाई गिरफ्तार किए गए थे। गिरफ्तार लोगों के खिलाफ आतंकवाद निरोधक अध्यादेश (पोटा) लगाया गया। फिर 25 मार्च 2002 को सभी आरोपियों पर से पोटा हटा लिया गया।
गोधरा कांड में 31 लोग पाए गए दोषी
17 जनवरी 2005 को यूसी बनर्जी समिति ने अपनी प्रारंभिक रिपोर्ट में बताया कि गोधरा कांड महज एक 'दुर्घटना' थी। फिर 13 अक्टूबर 2006 को गुजरात हाई कोर्ट ने यूसी बनर्जी समिति को अवैध और असंवैधानिक करार दिया क्योंकि नानावटी-शाह आयोग पहले ही दंगे से जुड़े सभी मामले की जांच कर रहा है। वहीं 26 मार्च 2008 को सुप्रीम कोर्ट ने गोधरा कांड और फिर हुए दंगों से जुड़े 8 मामलों की जांच के लिए विशेष जांच आयोग बनाया। 18 सितंबर 2008 को नानावटी आयोग ने गोधरा कांड की जांच सौंपी। जिसमें कहा गया कि यह पूर्व नियोजित साजिश थी। फिर 22 फरवरी 2011 को विशेष अदालत ने गोधरा कांड में 31 लोगों को दोषी पाया, जबकि 63 अन्य को बरी किया।