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राष्ट्रीय

रद्द हो चुके कानून के सहारे आलोचकों का दमन कर रही है मोदी सरकार

Janjwar Desk
6 July 2021 8:30 AM GMT
रद्द हो चुके कानून के सहारे आलोचकों का दमन कर रही है मोदी सरकार
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(आईटी एक्ट 2000 में बना। लेकिन इसमें 2008 में बदलाव हुए। इसके बाद धारा 66-ए विवादों में आ गई।)

सोशल मीडिया पर विवादास्पद कमेंट या कार्टून पर आईटी एक्ट की धारा 66ए के तहत कार्रवाई होती थी, उसे सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में निरस्त कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने तब फैसला सुनाते हुए कहा था कि कमेंट करने पर आईपीसी की अन्य धाराओं के तहत कार्रवाई हो सकती है, लेकिन इस धारा के तहत अब मामला नहीं चलाया जा सकेगा....

वरिष्ठ पत्रकार दिनकर कुमार की रिपोर्ट

जनज्वार। सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर हैरानी जताई है कि उसने सूचना तकनीकी कानून (आईटी एक्ट) की जिस धारा 66ए को साल 2015 में ही निरस्त कर दिया था, उसी धारा के तहत आज भी मुकदमे दर्ज किए जा रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि श्रेया सिंघल बनाम भारत सरकार केस में उसने आईटी एक्ट के सेक्शन 66ए को असंवैधानिक घोषित कर दिया था और छह साल बाद भी आईटी एक्ट के इस प्रावधान के तहत मुकदमा दर्ज किया जाना वाकई हैरान करने वाला है।

सुप्रीम कोर्ट ने जब हैरानी जताई कि असंवैधानिक घोषित होने के छह साल बाद भी आईटी एक्ट की धारा 66ए चलन में है तो अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सरकार की तरफ से सफाई दी। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने भले ही यह प्रावधान खत्म कर दिया, लेकिन बेयर एक्ट में अभी भी धारा 66ए का उल्लेख है। उन्होंने बताया कि हालांकि नीचे लिखा हुआ है कि सुप्रीम कोर्ट इसे निरस्त कर चुका है। तब सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि क्या पुलिस नीचे नहीं देख पा रही जहां लिखा है कि सुप्रीम कोर्ट इस धारा को निरस्त कर चुकी है? सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दो हफ्ते में केंद्र सरकार जवाब दाखिल करे। ये हैरान करने वाला है, हम कुछ करेंगे।

दरअसल, पीपल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज ने सुप्रीम कोर्ट के सामने यह मामला उठाया। उसने शीर्ष अदालत में याचिका देकर उससे केंद्र सरकार को यह निर्देश देने की मांग की जिसमें तमाम थाने को एडवाइजरी जारी करके आईटी एक्ट की धारा 66ए में केस दर्ज न करने का आदेश दिया जाए। पीयूसीएल ने कहा कि थानों को बताया जाए कि सुप्रीम कोर्ट धारा 66ए को निरस्त कर चुका है। याचिकाकर्ता के वकील संजय पारिख ने कहा कि श्रेया सिंघल जजमेंट के बाद भी देशभर में हजारों केस दर्ज किए गए हैं। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को नोटिस जारी किया और जवाब दाखिल करने के लिए उसे दो हफ्ते का वक्त दिया।

सोशल मीडिया पर विवादास्पद कमेंट या कार्टून पर आईटी एक्ट की धारा 66ए के तहत कार्रवाई होती थी, उसे सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में निरस्त कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने तब फैसला सुनाते हुए कहा था कि कमेंट करने पर आईपीसी की अन्य धाराओं के तहत कार्रवाई हो सकती है, लेकिन इस धारा के तहत अब मामला नहीं चलाया जा सकेगा।

आईटी एक्ट की धारा 66ए के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने वाली श्रेया सिंघल ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से संविधान में मिले फ्रीडम ऑफ स्पीच के अधिकार को मजबूती मिलेगी। देश में ऐसे कई मामले देखे गए, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। किसी को डरने की जरूरत नहीं होगी कि वह कुछ लिखेगा तो उसे जेल हो जाएगी। बता दें कि श्रेया ने शहीन और रीनू श्रीनिवासन की गिरफ्तारी के मामले के बाद इस संबंध में जनहित याचिका दायर की थी।

मंबई में बाला साहेब ठाकरे की अंतिम यात्रा को लेकर साल 2012 में पालघर की शाहीन नाम की एक लड़की ने कमेंट किया था, जिसके बाद रीनू ने उसे लाइक किया था। शिवसेना की नाराजगी के बाद पुलिस ने धारा 66ए के तहत दोनों को गिरफ्तार कर लिया था। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर रीनू ने कहा था कि अब उन्हें न्याय मिला। कम से कम सोशल साइट पर लिखने और संदेश देने की इजाजत होनी चाहिए। गिरफ्तारी के कारण रीनू की इंजीनियरिंग की पढ़ाई एक साल तक प्रभावित हुई थी।

जस्टिस जे चेलामेश्वर और रोहिंटन नरीमन की बेंच ने इस एक्ट का सरकार द्वारा दुरुपयोग करने पर फैसला सुनाया था। कोर्ट ने कहा था कि आईटी एक्ट साफ तौर पर लोगों के जानने के अधिकार का उल्लंघन करता है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि यह कानून काफी अस्पष्ट है। यह भारतीय नागरिकों के मूल अधिकार का उल्लंघन करता है। अब इस कानून के तहत किसी को जेल नहीं भेजा जा सकता। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले से पहले 16 मई, 2013 को भी इस बारे में व्यवस्था दी थी। तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि आईटी एक्ट के तहत किसी भी व्यक्ति की गिरफ्तारी आईजी या डीसीपी जैसे आला पुलिस अफसरों की मंजूरी के बाद ही की जाए। धारा 66-ए के दुरुपयोग के खिलाफ अर्जियां मिलने पर सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्प्णी की थी। हालांकि, तब गिरफ्तारी पर पूरी तरह रोक लगाने से सुप्रीम कोर्ट ने इनकार कर दिया था।

आईटी एक्ट 2000 में बना। लेकिन इसमें 2008 में बदलाव हुए। इसके बाद धारा 66-ए विवादों में आ गई। इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी पर बेस्ड किसी भी कम्युनिकेशन मीडियम से भेजा जाना वाला मैसेज अगर आपत्तिजनक, अश्लील या अपमानजनक है तो इस धारा के तहत गिरफ्तारी हो सकती है। यह धारा इन मामलों में लग सकती है-

  • कोई भी इन्फॉर्मेशन जो अपमानजनक या धमकी भरी हो।
  • ऐसी जानकारी जो कम्प्यूटर रिसोर्स या उससे जुड़े संचार माध्यमों का इस्तेमाल कर भेजी गई हो और जिसका मकसद किसी को आहत करना, असहज करना, अपमानित करना, नुकसान पहुंचाना, धमकाना या नफरत फैलाना हो।
  • कोई ई-मेल या मैसेज जो गुमराह करता हो, असहज करता हो या आहत करता हो।
  • इस धारा के तहत दोष साबित होने पर तीन साल की सजा और जुर्माने का भी प्रावधान है।
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