जोशीमठ पुनर्वास की जिम्मेदारी उस अधिकारी को जिस पर आपदा प्रबंधन सचिव रहते अदालत दर्ज करा चुकी है मुकदमा
इंद्रेश मैखुरी की टिप्पणी
जोशीमठ पिछले 14 महीनों से भू धँसाव से जूझ रहा है और बीते एक महीने से तो लोग उत्तराखंड व केंद्र सरकार से कार्यवाही की मांग करते हुए आंदोलनरत हैं, लेकिन सरकार अभी तक जोशीमठ में राहत, पुनर्वास, पुनर्निर्माण के लिए ठोस कदम उठाने में नाकामयाब रही है.
उत्तराखंड सरकार की इस अकर्मण्यता के पीछे संवेदनहीन नौकरशाही एक मुख्य कारक है। उत्तराखंड सरकार के आपदा प्रबंधन के सचिव ऐसे अफसर हैं, जिन पर आपदा प्रभावितों के मामले में एक पक्ष के साथ मिलीभगत और अदालत के सामने सबूत छुपाने के आरोप में भारतीय दंड संहिता की धारा 193 के तहत मुकदमा चल रहा है।
उत्तराखंड सरकार के आपदा प्रबंधन के सचिव डॉ.रंजीत सिन्हा पर यह मुकदमा उस समय का है, जब वे जिलाधिकारी टिहरी और पुनर्वास निदेशक थे।
यह मुकदमा तत्कालीन माननीय जिला एवं सत्र न्यायाधीश, टिहरी गढ़वाल ने दर्ज करवाने के आदेश दिये थे। 01 अक्टूबर 2013 को सुनाये गए फैसले में तत्कालीन जिला एवं सत्र न्यायाधीश ने लिखा कि तत्कालीन जिलाधिकारी टिहरी और पुनर्वास निदेशक डॉ रंजीत कुमार सिन्हा तथा टिहरी बांध खंड 22 के अधिशासी अभियंता राकेश कुमार तिवारी ने एक व्यक्ति महिमानन्द के साथ सांठगांठ करके टिहरी बांध प्रभावित एक महिला को आवंटित दुकान निरस्त करवा कर महिमानन्द को आवंटित कर दी।
जब यह प्रकरण न्यायालय के सामने पहुंचा तो डॉ.रंजीत सिन्हा और राकेश कुमार तिवारी ने कहीं भी इस बात का उल्लेख नहीं किया कि पूर्व में उक्त व्यक्ति महिमानंद के दावे के विरुद्ध जिला न्यायालय टिहरी से लेकर उच्च न्यायालय तक फैसला दे चुके हैं।
01 अक्टूबर 2013 को सुनाये गए अपने फैसले में तत्कालीन जिला एवं सत्र न्यायाधीश, टिहरी ने टिहरी के तत्कालीन जिलाधिकारी डॉ.रंजीत कुमार सिन्हा, टिहरी बांध खंड 22 के अधिशासी अभियंता राकेश कुमार तिवारी तथा महिमानंद को अदालत के समक्ष तथ्य छुपाने का दोषी करार दिया और अपने वाचक को आदेश दिया कि वे तीन दिन के भीतर भारतीय दंड संहिता की धारा 193 का मुकदमा मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (सीजेएम) की अदालत में दर्ज करवाएँ।
तत्कालीन जिला जज टिहरी गढ़वाल के उक्त फैसले के खिलाफ ऊपरी अदालतों में अपील भी हुई, पर कहीं राहत नहीं मिली। मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, टिहरी गढ़वाल की अदालत में वर्तमान आपदा प्रबंधन के सचिव डॉ.रंजीत कुमार सिन्हा एवं अन्य आरोपियों के विरुद्ध यह मुकदमा 04 नवंबर 2013 को दर्ज हुआ और अभी भी चल रहा है।
टिहरी बांध प्रभावितों के मामले में ऐसे दागदार रिकॉर्ड वाला अफसर न केवल उत्तराखंड सरकार का आपदा प्रबंधन का सचिव है, बल्कि वे महामहिम राज्यपाल के सचिव भी हैं। डॉ.रंजीत कुमार सिन्हा को तत्काल आपदा प्रबंधन सचिव के पद पर से हटाया जाना चाहिए और समग्र में आपदा प्रबंधन तथा विशेष तौर पर जोशीमठ के मसले से निपटने के लिए किसी संवेदनशील अफसर को नियुक्त किया जाना चाहिए।