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Pilibhit Flute Festival: पीलीभीत ने मोदी के गुजरात से छीना विश्व रिकार्ड का तमगा, 16 फिट की बना दी बांसुरी

Janjwar Desk
19 Dec 2021 4:02 AM GMT
पीलीभीत ने मोदी के गुजरात से छीना विश्व रिकार्ड का तमगा, 16 फिट की बांसुरी बनाकर
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16 फिट की बांसुरी बनाकर पीलीभीत ने कायम किया रिकॉर्ड

Pilibhit Flute Festival: पीलीभीत ने बांसुरी महोत्सव में विश्व की सबसे बड़ी बांसुरी बनाने का रिकॉर्ड कायम किया। 16 फिट की ये दुनिया की सबसे बड़ी बांसुरी पीलीभीत के रईस अहमद ने कई दिनों की मेहनत मशक्कत से तैयार की...

पीलीभीत से निर्मल कांत शुक्ल की रिपोर्ट

Pilibhit News: बनाते जिसे मुसलमान और हिंदू स्वर फूंककर देते प्राण, वह भगवान श्री कृष्ण की मुरली यानि बांसुरी पीलीभीत (Pilibhit) की है पहचान। पीलीभीत जनपद की इस पहचान ने शनिवार को नया आयाम स्थापित किया। मौका था तीन दिवसीय बांसुरी महोत्सव (Bansuri Mahotsav) का, जिसमें 16 फिट की बांसुरी ने नया विश्व रिकार्ड (World Record) कायम किया। अभी तक दुनिया में सिर्फ 11 फिट की बांसुरी ही बनी थी, शनिवार 17 दिसंबर को पीलीभीत में गुजरात के जामनगर की बांसुरी का वर्ल्ड रिकॉर्ड टूट गया। बांसुरी के जरिए विश्व रिकॉर्ड बना कर पीलीभीत के लिए महोत्सव एक नई पहचान लेकर आया।

शहर के ड्रमंड राजकीय इंटर कॉलेज के परिसर में शुक्रवार को बांसुरी महोत्सव का शानदार आगाज हुआ। जिले में पहली बार बांसुरी महोत्सव आयोजित हुआ। कार्यक्रम को लेकर लोगों में उत्साह और उत्सुकता देखने को मिली। पहला दिन गीत संगीत के साथ सुप्रसिद्ध बांसुरी वादक राजेंद्र प्रसन्ना और कॉमेडी स्टॉर राजपाल यादव के नाम रहा। तीन दिवसीय कार्यक्रम के लिए कॉलेज परिसर में भव्य व्यवस्थाएं की गई हैं।

शनिवार की रात पीलीभीत जनपद ने बांसुरी महोत्सव में विश्व की सबसे बड़ी बांसुरी बनाने का रिकॉर्ड कायम किया। 16 फिट की ये दुनिया की सबसे बड़ी बांसुरी पीलीभीत के रईस अहमद ने कई दिनों की मेहनत मशक्कत से तैयार की। इतनी बड़ी बांसुरी बांस से तैयार की गई है। महोत्सव में बाकायदा 16 फिट की बांसुरी में स्वर फूंके गए और इसी के साथ पीलीभीत ने पूरे विश्व में इतिहास रच दिया। इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड और वर्ल्ड रिकार्ड्स इंडिया की ओर से वर्ल्ड रिकॉर्ड (World Record) का सर्टिफिकेट दिया गया। इससे पहले सबसे बड़ी बांसुरी बनाने का रिकॉर्ड (Worlds Longest Flute) गुजरात के जामनगर के नाम था। यहाँ 11 फिट की बांसुरी बनाई गई थी।

प्रवेश द्वार पर लगी है 600 किलो की बांसुरी

बरेली (Bareilly) को उसका झुमका स्‍मारक के रूप में मिलने के बाद पीलीभीत (Pilibhit) में उसकी पहचान बांसुरी के लिए भी स्‍मारक बनाने के लिए विभिन्‍न सामाजिक संगठनों की मांग ने जब जोर पकड़ा तो फरवरी 2021 में पीलीभीत को उसकी खोई पहचान बांसुरी बतौर स्‍मारक मिल गई है। करीब 6 सौ किलो मेटल से बनी इस बांसुरी को शहर के प्रवेश द्वार पर स्‍मारक के तौर पर स्‍थापित किया गया है।

बांसुरी नगरी के नाम से प्रसिद्ध पीलीभीत

आजादी के बाद के वर्षों और उससे पहले से पीलीभीत में बांसुरी निर्माण हो रहा था। उस वक्‍त करीब 2500 बांसुरी कारीगर शहर में थे। जिले में बांसुरी का उत्पादन राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रख्यात है। पीलीभीत देश में एकमात्र ऐसा जिला है, जो बांसुरी के उत्पादन के लिए जाना जाता है। पीलीभीत की मशहूर बांसुरी के चलते इस जिले को बांसुरी नगरी भी कहा जाता है। पंडित हरिप्रसाद चौरसिया, राजेंद्र प्रसन्ना जैसे ख्यातिप्राप्त बांसुरी वादकों की पसंद बनी पीलीभीत की बांसुरी देश-दुनिया में अपना नाम रोशन कर रही है।

समस्याओं के चलते घट रहे हैं बांसुरी के हुनरमंद

पीलीभीत जिले में बांसुरी बनाने का काम बड़े पैमाने पर होता आया है। आज से 10 साल पहले यहाँ करीब 500 से ज्यादा परिवार बांसुरी बनाते और उसकी आय से ही बसर करते थे। समय के साथ अब हालात बदल गए हैं। इनकी संख्या घटकर 100 के करीब ही रह गई है और आने वाले दिनों में कम ही होती जा रही है। हाथ के हुनर का उचित मूल्य न मिल पाने के चलते इस काम से उनका पारिवारिक गुजर-बसर नहीं हो पा रहा है। जीविका और रोजी-रोटी पर संकट के बादल गहराते जा रहे हैं। इस अँधेरे से उबरने के लिए वे दूसरे रोजगार ढूंढ रहे हैं। जिसमे चार पैसे की बचत भी हो सके।

हुनरमंद कारीगर खुर्शीद, अज़ीम, इसरार और गुड्डू का कहना है कि आसाम से आने वाले बांस के यातायात की समस्या है। पहले ये बांस आसाम से ट्रेन द्वारा बड़े लठ्ठे के रूप में आता था। कोरोना काल मे जब ट्रेनें बंद हो गई तो उनका बांस अब ट्रक में छोटे टिकड़ों के रूप में बोरों में भरकर आने लगा। कई जगह बदला जाता है। लाने-ले जाने में बहुत सारा बांस टूट जाता है। सरकार इस हैंडीक्राफ्ट इंडस्ट्री की ओर ध्यान दे। राष्ट्रीय प्रदर्शनियों में इन कारीगरों के काम को प्रदर्शित करने को निःशुल्क बढ़ावा मिले। राहत फण्ड यदि की समस्या हल हो। तब तो फिर से कारीगरों को आशा की किरण नजर आने लगे और वे जी लगाकर इसी पारंपरिक काम को आगे बढ़ाये।

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