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उत्तर प्रदेश

अंधेरे में डूबा राकेश टिकैत का ससुराल, 16000 का बिल थमा दलित घरों के काटे बिजली के कनेक्शन

Janjwar Desk
2 April 2021 2:35 PM GMT
अंधेरे में डूबा राकेश टिकैत का ससुराल, 16000 का बिल थमा दलित घरों के काटे बिजली के कनेक्शन
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( रामकुमार का परिवार )

दादरी गांव में बीते 15 दिनों से बिजली नहीं है। बिजली विभाग ने कुछ सालों पहले गांव में पहले बिजली के कनेक्शन दिए लेकिन कई सालों तक फिर न बिजली का बिल दिया न कोई पूछताछ की। फिर दलित परिवारों की हैसियत से ज्यादा का बिल थमाकर उनके कनेक्शन काट दिए....

रन्नी तोमर की रिपोर्ट

जनज्वार। दिल्ली से महज 50 किलोमीटर की दूरी पर बागपत जिले के दादरी गांव से एक दोस्त ने जानकारी दी कि पिछले 15 दिनों से एक आधा गांव अंधेरे में सो रहा है। बिजली विभाग ने गांव में 30 घरों से बिजली का कनेक्शन काट दिया है और ये सभी वे कनेक्शन थे जो सरकारी योजना के तहत लोगों को मुफ्त मुहैय्या कराए गए थे। घटना के बारे में सुनने के बाद मेरी उत्सुकता और दिलचस्पी दोनों ने मेरे पांव दादरी गांव की ओर मोड़ दिए। गांव पंहुचने पर जिन दृश्य और कहानियों ने मुझे ये सब लिखने पर मजबूर कर दिया। मैं चाहता हूँ विकासशील भारत के नक्शे पर ऐसे ही एक विलुप्त गांव की कहानी से आपको भी रूबरू करा सकूं।

दादरी गांव जिला मुख्यालय बागपत से 30 किलोमीटर दूरी पर है। यह गांव आपको 50 साल पीछे ले जाएगा और ग्रामीण परिवेश को महसूस कराएगा जब गांवों में खपरैल और झोपड़ियां हुआ करती थी। मिट्टी के मकान हुआ करते थे और बिना किसी सलीके से बसा हुआ एक गांव होता था।

बागपत-मेरठ मार्ग पर अंदरूनी गांव दादरी में जाट और कश्यप समाज के लोग बहुलता में हैं, ब्राह्मण समाज के 15 घर हैं वहीं एक घर मुस्लिम और एक घर वाल्मीकि समाज का भी है। किसान नेता राकेश टिकैत का ससुराल भी इसी गांव में है। गांव छोटे और बड़े गांव में भी बंट गया है। छोटे गांव में सिर्फ कश्यप समाज के लोग रहते हैं, जहाँ उनके करीब 15 घर हैं वहीं वह लोग खेतों में सब्जियां उगाते हैं, घर करीब होने पर पूरा परिवार आसानी से खेती के कामों को मिलकर पूरा कर लेता है। वहीं बड़े गांव में आगे के इलाके में जाट और ब्राह्मण समाज के विशालकाय घर हैं, जहां चौड़ी सड़कें, गंदे पानी की निकासी के लिए नालियां, बिजली पोल्स पर स्ट्रीट लाइट्स और पीछे की ओर कश्यप समाज के गुफाओं जैसे घर, जहां न धूप पंहुचती है, न हवा। 5 से 6 लोगों का परिवार एक ही कमरे में रहता है जिसमें घर में नई दुल्हन का भी आगमन होना है।


वहीं एक कोने में जानवरों का भी आशियाना है। तंग गलियों में गंदे पानियों से अटी हुई नालियां बीमारियों को हमेशा घर में दावत देती रहती हैं। गांव में खेती करने की ज्यादातर जमीन जाट और ब्राह्मण समाज के पास है इससे उनकी आमदनी का जरिया उनके पास है। कश्यप समाज के बहुत कम परिवारों के पास खेती के लिए जमीन है जो बहुत कम है, इसके अलावा सभी के पास मजदूरी करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है, और इसकी कोई गारंटी नहीं है कि वह मिलेगी या नहीं।

उत्तर प्रदेश में फिलहाल पंचायत चुनाव अपनी चरम गरमाहट के साथ राजनीतिक माहौल बनाये हुए है। गांव में वोटों की संख्या 825 है जिसमें से 350 से ज्यादा करीब कश्यप समाज के हैं। इसी वजह से ग्राम प्रधान कश्यप समाज ही निर्धारित करता है या यूं कह लीजिए की सिर्फ निर्धारित करने में भूमिका निभाता है, उसके अलावा जो जिम्मेदारियां ग्राम प्रधान की होनी चाहिए जिसमें समग्रता में पूरे गांव को विकसित किये जाने का खाका हो वह कहीं नजर नहीं आता क्योंकि काटे गए सभी कनेक्शन कश्यप समाज के ही हैं और जिस वक्त बिजली विभाग ये सब कारवाई कर रहा था ग्राम प्रधान अन्य गांव वालों के साथ विरोध करने में शामिल नहीं था। गांव वालों के विरोध करने की मुख्य वजह यह थी कि घर में सिर्फ एक बिजली का बल्ब है उसके बावजूद बिजली विभाग ने 18000 रुपये बिजली का बिल थमा दिया और कनेक्शन काट पूरे घर को अंधेरे में छोड़ चले गए।

वर्तमान गांव प्रधान नीरज कश्यप के परिवार के लोगों के यहाँ ही 6 कनेक्शन काटे गए थे। लेकिन उन्होंने पूछने पर प्रधान से ताल्लुक होने के चलते कुछ भी बताने से मना कर दिया। फिर आगे राम कुमार ने हिम्मत कर बिना डरे अपने कनेक्शन काटने की जानकारी दी।

रामकुमार जीवनयापन के लिए सब्जी बेचते हैं। घर में पत्नी, एक जवान बेटा और बेटी हैं। पूरे परिवार को अक्षर ज्ञान भी नहीं है। सम्पति के नाम पर राम कुमार के पास जंगल में एक कब्जाई हुई जमीन है जिसपर उनका एक मिट्टी का कमरा और छोटा सा खुला आंगन है, वहीं उनकी एक कुपोषित गाय भी बंधी है। खाने के बर्तनों और पहनने के कपड़ों के अलावा घर में और कोई भी कीमती सामान नहीं है। निजी संपत्ति के नाम पर तथाकथित जो बिजली कनेक्शन उनके पास था भी उसे भी अब बिजली विभाग ने काट दिया है।


जनवरी 2018 में बिजली विभाग ने रामकुमार के परिवार को मुफ्त कनेक्शन दिया था। उसके बाद बिजली विभाग से न तो कोई बिल देने आया न ही पूछताछ करने। अगस्त 2020 में रामकुमार के नाम 6717 रुपये का बिल तीन साल बाद बिजली विभाग ने थमाया। इतनी बड़ी रकम न एक साथ राम कुमार के जमा करने की औकात थी और न ही हैसियत। इसीलिए राम कुमार ये रकम बिजली विभाग में जमा न कर सका। करीब 7 महीने बाद बिजली विभाग के कनेक्शन काटो अभियान में रामकुमार के घर पर धावा बोला जिसमें बिजली विभाग ने 6717 रुपये की रकम को 7 महीने में बढ़ाकर 18,000 तक पहुंचा दिया और कनेक्शन काट दिया।

वही अंकुल के परिवार पर भी बिजली विभाग ने 16000 रुपये की रशीद थमा कनेक्शन काट दिया। अंकुल के बड़े भाई के घर पर भी 3 साल पहले बिजली विभाग ने बिजली कनेक्शन दिया था जबकि यह परिवार यहाँ रहता ही नहीं है । कागजों की पूर्ति हुए बिना ही बिजली विभाग ने घर पर किसी के न होते हुए भी बिजली कनेक्शन जोड़ गए और अब 16,000 का बिल उन्हें थमा कनेक्शन भी काट दिया। अब कोई बिजली विभाग से पूछे कि जिस घर में बिजली का उपभोग करने वाला इंसान ही नहीं था वहां 16,000 का बिल कैसे पैदा हो गया।

वहीं शांति के 6 बच्चों में से 5 बाहर काम करते हैं, 1 लड़का उनके पास गांव में रहता है। शांति का घर मिट्टी का है अगर बारिश हो जाए तो आटे को पानी से बचाने की जगह भी नहीं हैं। वहां भी बिजली का कनेक्शन काट दिया जहां सिर्फ एक बल्ब के अलावा कुछ भी नहीं था।

दरसअल इन सब के पीछे की कहानी कुछ और ही है। सरकार ने गांव-गांव बिजली के नए रबर वाले तारों को लगाया है । पहले परिवारों को मुफ्त में बिजली कनेक्शन दिए गए जिससे तारों में हुए ख़र्चों को लोगों से ही ले लिया जाए। मीटर चार्ज , सर्विस चार्ज और न जाने अन्य तरह तरह के चार्ज लगा 700 रुपये बिजली का बिल हर घर के लिए सामान्य कर दिया है। भले ही आप 1 बल्ब ही घर क्यों न जलाते हो। जहां गांवों में न रोजगार के साधन हैं और न ही आमदनी के अन्य स्त्रोत वहां बिजली का इतना खर्च लोगों की जिंदगी में और परेशानियां पैदा कर रहा है।

30 रुपये रोज किराया खर्च कर नौजवान मजदूरी करने बड़ौत कस्बे जाते है, जहां अगर काम मिल गया तो ठीक नहीं तो अपनी तमाम परेशानियों के साथ फिर गांव वापस लौट आने के अलावा और कोई चारा नहीं होता।

अंकित के घर पर बात करते हुए मंदिर से आवाज आ रही थी। तभी उन्होंने बताया की हमारे गांव में एक प्राचीन मंदिर है, दूर- दूर से लोग यहां मन्नत पूरी कराने आते हैं। जब हम मंदिर में पहुंचे तो मंदिर से रामचरितमानस का पाठ चल रहा था। इस आवाज पर ध्यान सिर्फ इसलिए गया कि मस्जिद में अजान से जहां नींद में खलल रोज कहीं न कहीं देशभर में हो ही जाता है वहां इससे किसी को कोई शिकवा नही था। उल्टे मालूम करने पर पता चला कि मंदिर के जिस रेडियो से आवाज आ रही थी उससे किसी बिजली की आवश्यकता नहीं थी।

मंदिर में पानी के लिए मोटर भी था वो भी शायद किसी शक्ति से ही संचालित होता था क्योंकि बिजली का कोई कनेक्शन मंदिर में नहीं हैं। मंदिर के पुजारी से पूछने पर उन्होंने बताया कि हिंदुस्तान के किसी भी मंदिर में कोई बिल नहीं आता है। मुझे बहुत हैरत हुई फिर तो सभी गरीब लोगों को अपने घर को मंदिर का रूप दे देना चाहिए जहां कम से कम मूलभूत सुविधाएं तो होंगी और इसके एवज में उन्हें कोई भुगतान भी नहीं करना पड़ेगा। मंदिर कश्यप समाज का ही था लेकिन एक भी कश्यप समाज का घर ऐसा नहीं है जहाँ पानी का मोटर लगा हो लेकिन मंदिर में मौजूद था।

(अंकित का घर)

गांव में प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना के तहत एक भी घर का निर्माण भले ही न हुआ हो , कश्यप समाज के जहाँ घर है वहाँ कोई सड़क भले ही न बनी हो। लेकिन सरकारी योजना से प्रधान ने मंदिर में पानी का मोटर जरूर लगवाया है।

आप सोच सकते हैं देश की राजधानी से महज 50 किलोमीटर एक गांव की स्थिति यह है जहां सरकारी योजनाएं आते आते ही दम तोड़ देती है, तो देश की राजधानी से दूरस्थ इलाकों में क्या हालात हो सकते हैं, इससे आप समझ सकते हैं। अब इंतजार करने के अलावा दादरी गांव के लोगों के पास कोई विकल्प नहीं है इसलिए बिजली न होने का दंभ तो उन्हें झेलना ही पडेगा। या फिर वे अपने घरों को मंदिरों की शक्ल दे पाएंगे जिससे उनकी कठिन जिंदगी थोड़ी आसान हो सके।

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