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Pilibhit News : CJM कोर्ट में साथी की पिटाई के आरोपी चारों वकीलों की जमानत मंजूर, पांचवें दिन जेल से छूटे, जानिए क्या था पूरा मामला
Pilibhit News : CJM कोर्ट में साथी की पिटाई के आरोपी चारों वकीलों की जमानत मंजूर, पांचवें दिन जेल से छूटे, जानिए क्या था पूरा मामला
पीलीभीत निर्मल कांत शुक्ल की रिपोर्ट
Pilibhit News: उत्तर प्रदेश (Uttarpradesh) के जनपद पीलीभीत में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (CJM) के न्यायालय (Court) में दलित साथी की पिटाई के मामले में नामजद चार अधिवक्ताओं (Four Advocates) को विशेष न्यायाधीश (अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (नृशंसता निवारण) अधिनियम (Special Judge Scheduled Caste/Scheduled Tribe Prevention of Atrocities Act) ने उनके मूल जमानत प्रार्थना पत्र (Regular Bail Application) को सुनवाई के बाद स्वीकार करते हुए उनकी जेल से रिहाई के आदेश दिए। देर शाम चारों अधिवक्ता जेल से बाहर आ गए।
विशेष न्यायाधीश (अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (नृशंसता निवारण) अधिनियम श्रीमती शिवा पांडे (Shiva Pandey) के न्यायालय में 22 जुलाई को दोपहर अधिवक्ता तारिक अली बेग, अधिवक्ता नाहिद खां, अधिवक्ता मोहम्मद जावेद, विधि छात्र इमरान चिश्ती ने आत्मसमर्पण कर दिया था। इन चारों के अंतरिम जमानत के प्रार्थना पत्र पर सुनवाई के बाद उसी दिन खारिज कर दिए गए थे। उसके बाद चारों अधिवक्ताओं को न्यायिक हिरासत में लेकर जेल भेज दिया गया था। उनके मूल जमानत प्रार्थना पत्र पर 26 जुलाई को सुनवाई की तिथि नियत की गई थी।
मंगलवार को विशेष न्यायाधीश (अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (नृशंसता निवारण) अधिनियम के न्यायालय में जेल में निरुद्ध चारों अधिवक्ताओं की मूल जमानत प्रार्थना पत्र पर सुनवाई की गई। सिविल बार एसोसिएशन की पूर्व अध्यक्षा स्नेहलता तिवारी, अंशुल गौरव सिंह व यूसुफ अली ने न्यायालय के समक्ष आरोपियों की ओर से पक्ष रखा। न्यायालय ने जमानत प्रार्थना पत्र मंजूर करते हुए आदेश में कहा कि अभियुक्तों को 50,000 रुपये का व्यक्तिगत बंधपत्र एवं समान धनराशि के दो प्रति भू व कुछ शर्तों के साथ जमानत पर छोड़ा जाता है।
आरोपी पांचवें अधिवक्ता नदीम कुरैशी को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने राहत दे रखी है। उन पर 28 जुलाई तक किसी भी तरह की प्रपीड़क कार्रवाई पर उच्च न्यायालय में रोक लगा दी है, इसीलिए अधिवक्ता नदीम कुरैशी ने न्यायालय में ना तो आत्म समर्पण किया और ना ही पुलिस उनकी अभी गिरफ्तारी कर रही।
यह था पूरा मामला
सदर कोतवाली में दर्ज रिपोर्ट में अधिवक्ता सूरजपाल गौतम ने कहा कि वह 20 जून की दोपहर एक बजे मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट न्यायालय में पेशी के दौरान मौजूद था। राहुल सक्सेना की जमानत के प्रार्थना पत्र पर सुनवाई चल रही थी, तभी मोहम्मद जावेद एडवोकेट, विधि छात्र इमरान चिश्ती निवासी पूरनपुर, तारिक अली बेग एडवोकेट, नदीम कुरैशी एडवोकेट तथा नाहिद खान एडवोकेट व 20 अन्य अज्ञात लोग राहुल सक्सेना को गालियां दे रहे थे। जब इस बात का विरोध किया तथा बीच-बचाव करने का प्रयास किया तो इन सभी लोगों ने उनको भी जातिसूचक शब्दों का प्रयोग करते हुए गालियां दी और कहा कि साले बहुत बड़ा नेता बनता है। तेरी सारी नेतागिरी निकाल देंगे और जान से मारने की नीयत से गला दबाकर हत्या का प्रयास किया और बोले- आज इसे जान से मार देते हैं। अन्य अधिवक्ताओं के हस्तक्षेप करने पर सभी लोग शांत हुए।
कोतवाली पुलिस ने अधिवक्ता सूरजपाल गौतम की तहरीर पर अधिवक्ता मोहम्मद जावेद, विधि छात्र इमरान चिश्ती, अधिवक्ता तारिक अली बेग, अधिवक्ता नदीम कुरैशी, अधिवक्ता नाहिद खां व अन्य अज्ञात लोगों के विरुद्ध भारतीय दंड संहिता की धारा 147, 307, 504, 506, अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (नृशंसता निवारण) अधिनियम 1989 (संशोधन 2015) 3(1) (द), अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (नृशंसता निवारण) अधिनियम 1989 (संशोधन 2015) 3(1) (ध), अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (नृशंसता निवारण) अधिनियम 1989 (संशोधन 2015) 3(2) (वी) के अंतर्गत अभियोग दर्ज किया। इस मुकदमे की विवेचना पुलिस क्षेत्राधिकारी (नगर) सुनील दत्त कर रहे हैं।
बचाव पक्ष ने यह दिए तर्क
तारिक अली बेग के जमानत प्रार्थना पत्र पर सुनवाई के दौरान उनके अधिवक्ता ने तर्क प्रस्तुत किया कि अभियुक्त को मुकदमे में झूठा फंसाया गया है। प्रथम सूचना रिपोर्ट गलत व भ्रामक तथ्यों पर आधारित हैं। इस मुकदमे के संबंध में वादी द्वारा स्थानीय जातिगत और धार्मिक राजनीति के चलते इस मामले में पंजीकृत मुकदमे के संबंध में स्व हस्तलिखित हस्ताक्षर में दो अन्य तहरीरें भी थाना कोतवाली में दी गई हैं। वादी द्वारा दी गई प्रथम तहरीर में अभियुक्त को नामजद अभियुक्त नहीं दर्शाया गया है। वादी द्वारा कथित घटना के संबंध में पहले जो तहरीर थाने में दी गई है, उसमें घटनाक्रम परिवर्तित कर घटना को गंभीर रूप देने के लिए बढ़ा चढ़ाकर एक धार्मिक वर्ग को टारगेट करते हुए नामों में बढ़ोतरी व घटनाक्रम परिवर्तित करके अभियोग पंजीकृत कराया गया है। तहरीर में दर्शाया गया है कि मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट न्यायालय में अभियुक्त राहुल सक्सेना की पैरवी के दौरान वह मौजूद था। अभियुक्त राहुल सक्सेना की जमानत की सुनवाई चल रही थी। कथित घटना मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट न्यायालय के न्यायिक कक्ष की बताई गई है जबकि न्यायालय की अवमानना का कोई नोटिस मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा अभियुक्त को नहीं दिया गया है। वादी के शरीर की मेडिकल रिपोर्ट में सभी चोटें साधारण प्रकृति की हैं तथा अभियुक्त द्वारा वादी मुकदमा को ना तो जान से मारने की धमकी दी गई और ना ही जातिसूचक शब्दों से संबोधित किया गया। यह मुकदमा न्यायपालिका के अभिन्न अंग माने जाने वाले अधिवक्ताओं से संबंधित हैं। अभियुक्त भी अधिवक्ता वर्ग से आता है। घटना के समय न्यायालय के न्यायिक अधिकारी, अभियोजन अधिकारी व वादकारी आदि न्यायालय में परिसर में मौजूद थे लेकिन विवेचक द्वारा वादी मुकदमा के अतिरिक्त घटना के किसी भी निष्पक्ष या प्रत्यक्षदर्शी साक्षी का साक्ष्य संकलित नहीं किया गया है। जिस अभियुक्त राहुल सक्सेना के जमानत प्रार्थना पत्र पर सुनवाई होना दर्शाया गया है, उस मुकदमे में वादी मुकदमा सूरजपाल गौतम का दूर-दूर तक सरोकार नहीं है। मामला अधिवक्ताओं के मध्य का है आवेदक अभियुक्त हृदय रोग से पीड़ित हैं तथा उसका इलाज चल रहा है।अभियुक्त अपनी जमानत देने को तैयार है। अतः अभियुक्त को जमानत पर छोड़ दिया जाए।
अभियोजन ने किया कड़ा विरोध
जमानत पर सुनवाई के दौरान अभियोजन अधिकारी व मुकदमे के वादी की ओर से आरोपी अधिवक्ता तारिक अली बेग के जमानत प्रार्थना पत्र का घोर विरोध करते हुए यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि अभियुक्त ने वादी मुकदमा जो कि एक अधिवक्ता है, उसके साथ न्यायालय कक्ष में मारपीट की तथा जान से मारने की नीयत से उसका गला दबाया। यह जानते हुए कि वादी मुकदमा अनुसूचित जाति का व्यक्ति है। वादी की जाति को संबोधित करते हुए सार्वजनिक स्थान पर जातिसूचक शब्दों से अपमानित किया गया। अपराध गंभीर प्रकृति का है। इसलिए अभियुक्त को जमानत पर नहीं छोड़ा जाना चाहिए।
वकीलों की जमानत का आधार
आदेश में कहा गया कि संबंधित प्रकरण में अभियुक्त पर आरोप है कि उसने वादी मुकदमा जोकि एक अधिवक्ता है, के साथ न्यायालय कक्ष में मारपीट की गई तथा जान से मारने की नीयत से उसका गला दबाया गया। मामले में अभियोजन पक्ष द्वारा इस प्रकार का कोई कथन नहीं किया गया कि वादी मुकदमा को अनुसूचित जाति अथवा अनुसूचित जनजाति का जानते हुए उसे जान से मारने की नियत से गला दबाया गया हो। अभियुक्त का कोई अपराधिक इतिहास नहीं बताया गया है। अभियुक्त अधिवक्ता वर्ग से संबंधित है। वादी की मेडिकल रिपोर्ट के अनुसार उसके शरीर पर साधारण प्रकृति की चोटें पाई गई हैं। इस मामले में विवेचना प्रचलित है। अभियुक्त 22 जुलाई से जिला कारागार पीलीभीत में निरुद्ध है। मामले में तथ्यों, परिस्थितियों व अपराध की प्रकृति को दृष्टिगत रखते हुए गुण दोष पर कोई विचार व्यक्त किए बिना अभियुक्त को जमानत पर छोड़े जाने का पर्याप्त आधार पाया जाता है।
सुनवाई के समय मौजूद रहा वादी
विशेष न्यायाधीश (अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम) न्यायालय में जेल में निरूद्ध चारों अधिवक्ताओं की मूल जमानत प्रार्थना पत्र पर सुनवाई के दौरान वादी मुकदमा सूरज पाल गौतम एडवोकेट भी मौजूद रहे। दरअसल वादी को इस प्रकरण में धारा 15 (क) की उप धारा 3 व 5 अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम 1989 के अंतर्गत नोटिस प्रेषित किया गया था जोकि वादी पर शामिल हुआ था।