देशभर में सबसे ज्यादा क्रिमिनल सांसद-विधायक उत्तर प्रदेश में
विधायकों—सासंदों के खिलाफ देशभर में 4122 आपराधिक मामले लंबित, उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा 922 केस तो केरल में करीब 312 और बिहार मे 304 केस हैं पेंडिंग...
आजीवन कारावास मामलों की प्राथमिकता से सुनवाई का सुप्रीम कोर्ट ने दिया निर्देश
वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट
कहते हैं देश में कानून का राज है, पर जहां बात रसूखदारों की आती है, वहां कानून का राज दिखाई नहीं पड़ता।
अब इसे क्या कहेंगे कि कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा के खिलाफ 18 केस दर्ज हैं, जिनमें से 10 मामलों में उम्रकैद तक की सज़ा हो सकती है, लेकिन उनके खिलाफ अभी आरोपपत्र भी दाखिल नहीं हुआ है।
केरल में विधायक एमएम मनी के खिलाफ 1982 में हत्या का एक मामला दर्ज किया गया था, जिसका ट्रॉयल अभी शुरू भी नहीं हुआ है। पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के खिलाफ 2007 में भ्रष्टाचार का मामला दाखिल किया गया है, लेकिन अभी इस मामले में भी आरोपपत्र दाखिल नहीं हुआ है।
इलाहाबाद के बाहुबली पूर्व सांसद अतीक अहमद के खिलाफ चल रहे 22 मामलों में से 10 मामले हत्या के हैं। इन मामलों का निपटारा पिछले 16 सालों में नहीं हो पाया है। गुजरात में मौजूदा एनसीपी विधायक कंधालभाई सरमनभाई जडेजा के खिलाफ टाडा के तीन मामले हैं, जिनमें आरोपपत्र दाखिल नहीं किए गए हैं।
ओडिशा में चार मौजूदा और पूर्व विधायकों के खिलाफ 100 से ज़्यादा आपराधिक मामले चल रहे हैं। यह सब मामला उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त न्याय मित्र की रिपोर्ट से उजागर हुआ है।
वास्तव में वर्ष 2014 में उच्चतम न्यायालय ने आदेश दिया था कि सभी सांसदों और विधायकों के खिलाफ जितने भी आपराधिक मामले हैं, उनको एक साल के अंदर निपटा लिया जाए। लेकिन न्यायमित्र विनय हंसारिया और स्नेहा कलित द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट से पता चला कि कैसे उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गए इस आदेश का पालन नहीं हो पाया।
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली बेंच के आदेश पर यह रिपोर्ट तैयार की गई थी, ताकि सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए 2014 के उस आदेश के प्रभाव का पता लगाया जा सके। इस रिपोर्ट ने काफी निराशाजनक तस्वीर पेश की है।
रिपोर्ट के मुताबिक, देश के विभिन्न सांसदों के खिलाफ कुल 4122 मामलों में से 2324 मामले कोर्ट में लंबित पड़े हुए हैं। रिपोर्ट में बताया गया कि कुछ मामले तीस सालों से चल रहे हैं। सांसदों और विधायकों के खिलाफ 4122 मामलों में से 1991 मामलों में तो आरोपपत्र भी दाखिल नहीं हुआ है। कई केस तो इसलिए पेंडिंग हैं, क्योंकि उनमें उच्चतर न्यायालयों द्वारा स्टे दे दिया गया था।
इसका संज्ञान लेते हुए उच्चतम न्यायालय ने बिहार और केरल हाईकोर्ट को पूर्व व वर्तमान विधायकों /सासंदों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों से निपटने के लिए हर जिले में सेशन व मजिस्ट्रेट कोर्ट को स्पेशल कोर्ट की तरह केसों के आवंटन करने को कहा है, ताकि इनका ट्रायल जल्द पूरा हो सके।
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एसके कौल और जस्टिस के एम जोसेफ की पीठ ने कहा है इस दौरान उन मामलों को प्राथमिकता देने को कहा है, जिनमें अधिकतम सजा के तौर पर आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान है।पीठ ने कहा कि फिलहाल इसे दो हाईकोर्ट से ही शुरू किया जा रहा है। पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट वक्त वक्त पर इसकी स्टेटस रिपोर्ट भी उच्चतम न्यायालय को देंगे।
4122 आपराधिक मामले लंबित
दरअसल न्यायमित्र विजय हंसारिया ने उच्चतम न्यायालय में दाखिल रिपोर्ट में बताया है कि फिलहाल पूर्व व वर्तमान विधायकों /सासंदों के खिलाफ देशभर में 4122 आपराधिक मामले लंबित हैं। इनमें उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा 922 केस लंबित हैं, जबकि केरल में करीब 312 केस लंबित हैं और बिहार में 304 केस लंबित हैं। इनमें से 1991 मामलों में आरोप तय नहीं गए हैं, जबकि पूर्व व वर्तमान विधायकों /सासंदों के खिलाफ 264 मामलों में हाइकोर्ट द्वारा ट्रायल पर रोक लगाई गई है। रिपोर्ट में बताया गया है कि कई केस तीस साल पुराने भी हैं।
न्यायमित्र ने सुझाव दिया कि हर जिले में ऐसे केसों के ट्रायल को जल्द पूरा करने के लिए अदालतों को निर्धारित किया जाए।
इसके पहले रिट याचिका (सिविल) 699 /2016 अश्वनी कुमार उपाध्याय बनाम यूनियन ऑफ इंडिया एवं अन्य में उच्चतम न्यायालय ने आदेश जारी करते हुए देश में सांसदों व विधायकों के आपराधिक मामलों के ट्रायल के लिए प्रत्येक प्रदेश में एक स्पेशल फास्ट ट्रैक कोर्ट के गठन के आदेश दिए थे। इसके तहत उत्तर प्रदेश में एक स्पेशल फास्ट ट्रैक कोर्टका गठन किया गया है, जिसमें सांसदों व विधायकों के आपराधिक मामलों के ट्रायल चल रहे हैं।
याचिका में दोषी राजनेताओं पर आजीवन चुनाव लड़ने पर पाबंदी की मांग की गई है। याचिका में जनप्रतिनिधि अधिनियम के प्रावधानों को असंवैधानिक बताते हुए चुनौती दी गयी है, जो कि दोषी राजनेताओं को जेल की अवधि के बाद छह साल की अवधि के लिए चुनाव लडने से अयोग्य करार देता है।
इस मामले की सुनवाई के दौरान उच्चतम न्यायालय ने पिछले साल 1 नवंबर को फास्ट ट्रैक न्यायालयों की तर्ज पर नेताओं के खिलाफ चल रहे आपराधिक मामलों के निपटारे के लिए विशेष न्यायालयों की स्थापना के लिए केंद्र को निर्देश दिया था।
तीस सालों से लंबित हैं मामले
न्यायमित्र विजय हंसारिया ने कहा कि वर्तमान (2324) और पूर्व (1675) सांसदों और विधायकों के ख़िलाफ़ कुल 4122 मामले विचाराधीन हैं। उन्होंने सुझाव दिया है कि हर जिले में सत्र और मजिस्ट्रेट स्तर की एक विशेष अदालत में इनके आपराधिक मामलों की सुनवाई कराई जाए और इसके लिए जजों को नामित किया जाए।
वर्तमान (2324) और पूर्व (1675) सांसदों और विधायकों के ख़िलाफ़ कुल 4122 मामले तीन दशक से अधिक समय से विचाराधीन हैं। कुल 4122 मामलों में से 1991 मामलों में अभी तक अभियोग भी दर्ज नहीं किया गया है। इन आंकड़ों में राज्यों के बारे में जो तस्वीर उभरकर आई है वह और भी ख़राब है। कई मामले ऐसे हैं जिसमें आजीवन कारावास तक की सज़ा हो सकती है पर अभी तक उन मामलों में अभी तक अभियोग भी निर्धारित नहीं हुआ है।
12 विशेष अदालतों का गठन
इस मामले में 12 विशेष अदालतों का गठन किया गया है, पर उन्होंने कहा कि ऐसा करते हुए लंबित मामलों की संख्या का ध्यान नहीं रखा गया है। हंसारिया ने कहा कि हाइकोर्टों से कहा जाए कि वे इस तरह हर ज़िला/उपखंड में गठित सत्र और मजिस्ट्रेट अदालत को ट्रांसफ़र करे और इनकी हर दिन सुनवाई की जाए और कोई भी स्थगन नहीं दिया जाए।
उन्होंने यह सुझाव भी दिया कि जिन सांसदों या विधायकों के ख़िलाफ़ ऐसे मामले दर्ज हैं जिनमें उनको आजीवन क़ैद या क़ैद की सज़ा हो सकती है उन मामलों की सुनवाई पहले की जाए। हंसारिया ने कहा कि हर विशेष रूप से गठित अदालत को हर महीने स्थिति रिपोर्ट अपने-अपने हाइकोर्टों को देने को कहा जाए। उन्होंने कहा कि हाइकोर्टों से तीन महीने के भीतर यह बताने को कहा जाए कि उन्होंने जो अंतरिम आदेश दिया उसके बारे में क्या निर्णय लिया गया।