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सिक्योरिटी

बिहार में बच्चों पर टूटा चमकी बुखार का कहर, अब तक 83 की मौत

Prema Negi
15 Jun 2019 9:48 AM GMT
बिहार में बच्चों पर टूटा चमकी बुखार का कहर, अब तक 83 की मौत
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जैसे जैसे गर्मी का कहर बढ़ा, वैसे वैसे चमकी बुखार ने बच्चों को अपनी जद में लेना शुरू कर दिया। मात्र 14 दिनों के अंदर एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम जिसे स्थानीय लोग चमकी बुखार कह रहे हैं, उससे 83 बच्चों की मौत हो चुकी है और अभी भी यह सिलसिला जारी है...

जनज्वार। बिहार में एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (चमकी बुखार) का कहर थमने का नाम नहीं ले रहा है। उत्तर बिहार के मुजफ्फरपुर में चमकी बुखार के कारण मरने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है। मीडिया में आ रही खबरों के मुताबिक यह आंकड़ा अब 83 हो गया है।

कहा जा रहा है कि 83 तो सरकारी आंकड़ा है, मरने वालों बच्चों की संख्या इससे कहीं ज्यादा है। मुजफ्फरपुर के सिविल सर्जन डॉ. शैलेष प्रसाद सिंह के मुताबिक चमकी बुखार से अब तक मरने वालों का आंकड़ा बढ़कर 69 पहुंच गया है। श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में 58 और केजरीवाल अस्पताल में 11 बच्चों की मौत हुई है।

गौरतलब है कि बिहार खासकर उत्तर बिहार में जैसे जैसे गर्मी का कहर टूटा, वैसे वैसे चमकी बुखार ने बच्चों को अपनी जद में लेना शुरू कर दिया। मात्र 14 दिनों के अंदर एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम जिसे स्थानीय लोग चमकी बुखार कह रहे हैं, उससे 69 बच्चों की मौत हो चुकी है और अभी भी यह सिलसिला जारी है।

14वें दिन यानी शुक्रवार 14 जून को 11 बच्चों की मौत हुई। इसके साथ मौत का आंकड़ा 83 पहुंच गया। एसकेएमसीएच व केजरीवाल अस्पताल में क्रमश: 38 व छह नये बच्चे भर्ती कराये गये। 44 नये मरीजों के साथ चमकी बुखार के 243 मामले अभी सामने आ चुके हैं। हालांकि सरकारी रिकार्ड इससे कहीं पीछे है। विभागीय रिपोर्ट के अनुसार कुल 165 मामले सामने आये हैं, जिनमें 57 बच्चों की मौत हुई है और 66 इलाजरत हैं।

चमकी बुखार पर काबू पाने को लेकर शासन-प्रशासन की तरफ से तमाम दावे किये जा रहे हैं, मगर नतीजा सिफर है। बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे ने मीडिया से हुई बातचीत में कहा, चमकी बुखार से निपटने के लिए हम हरसंभव प्रयास और कड़ी मेहनत कर रहे हैं। सरकार की तरफ से राज्य में जागरुकता फैलाने के लिए कई कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जा रहा है।

असल सवाल यह है कि अब तक इस पर काबू क्यों नहीं पाया जा सका। इस बुखार की चपेट में आने वाले बच्चों की उम्र 0-15 वर्ष के बीच है। मरने वाले बच्चों में एक से सात साल के बच्चे सबसे ज्यादा हैं। डॉक्टरों का कहना है कि इस बीमारी का मुख्य लक्षण तेज बुखार, उल्टी-दस्त, बेहोशी और शरीर के अंगों में रह-रहकर कंपन यानी चमकी होना है, इसीलिए इसका नाम चमकी बुखार रखा गया है।

अब भी अस्पतालों में चमकी बुखार के बाद भर्ती होने वाले बच्चों की संख्या कम नहीं हो रही है, बल्कि लगातार बढ़ रही है। मुजफ्फरपुर में इस बीमारी से हो रही बच्चों की मौत पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कहते हैं कि हमारी सरकार इस पूरे मामले पर नजर रख रही है। गौरतलब है कि बरसात से पहले ये बीमारी हर साल बिहार में अपना कहर बरपाती है, तो आखिर शासन—प्रशासन पहले से ही इसे लेकर सतर्क क्यों नहीं होता और लोगों के बीच जागरुकता पहले से ही क्यों नहीं फैलाई जाती।

स्वास्थ्य विभाग के मुताबिक बिहार के जिस इलाके को चमकी बुखार ने अपनी जद में लिया है वहां चिलचिलाती गर्मी, नमी और बारिश के न होने के चलते लोग हाइपोग्लाइसीमिया के शिकार हो रहे हैं, जिससे कारण लोगों की मौत हो रही है। कुछ रिपोर्ट्स की मानें तो चमकी बुखार के कारण हो रही मौतों का कारण लीची भी हो सकती है। कहा जा रहा है कि मुजफ्फरपुर के आसपास उगाई जाने वाली लीची में कुछ जहरीले तत्व हैं, जिनसे बच्चों की मौत हो रही है।

पेशे से पत्रकार पुष्य मित्र इस बुखार के बढ़ते प्रकोप पर लिखते हैं, 'इस बार चमकी बुखार का मामला लगता है सरकार के हाथ से बाहर निकल गया है। पिछ्ले तीन साल में जिस SOP की मदद से स्वास्थ्य विभाग ने इस बीमारी पर काबू पा लिया था, वह इस बार फेल हो गया है। छोटा सा काम था, बच्चों को भूखे पेट सोने नहीं देना है, रोगी को झट से पास के अस्पताल पहुंचाना है, ग्लूकोज लेवल चेक करके ग्लूकोज चढ़ा देना है। 2015 से 2018 तक यह इसी सरकारी व्यवस्था में किया भी गया, मगर इस बार लगता है विभाग ने ढिलाई बरत दी। मौतों का सिलसिला जारी है।'

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