नक्सलबाड़ी किसान विद्रोह का अर्द्धशताब्दी समारोह, समारोह विफल करने में प्रशासन ने लगा दी पूरी ताकत, मगर कार्यक्रम करने में सफल रहे आंदोलनकारी
बोकारो से विशद कुमार
28 जून को पूर्व निर्धारित कार्यक्रम ‘महान नक्सलबाड़ी किसान विद्रोह का अर्द्धशताब्दी समारोह’ को पुलिस ने विफल करने की नाकाम कोशिश की, मगर आयोजकों ने कार्यक्रम स्थल से 8 किलोमीटर दूर एक विस्थापित गांव में आयोजन किया।
गौरतलब है कि ‘महान नक्सलबाड़ी किसान विद्रोह की अर्द्धशताब्दी समारोह समिति’ द्वारा पूरे देश में नक्सलबाड़ी किसान विद्रोह के 50 वर्ष पूरे होने पर कार्यक्रम किये जा रहे हैं। इसी कड़ी में 28 जून को बोकारो के सेक्टर-9 स्थित एनायत चौक यानी हरला मोड़ के पास पूर्व निर्धारित कार्यक्रम ‘महान नक्सलबाड़ी किसान विद्रोह की अर्द्धशताब्दी समारोह’ को बोकारो पुलिस ने उस वक्त नहीं होने दिया जब समारोह की पूरी तैयारी हो गयी थी।
एक माह पूर्व ही उक्त कार्यक्रम की सूचना सहित बोकारो प्रशासन से आदेश पत्र लेने के लिए कार्यक्रम के आयोजकों द्वारा एक आवेदन एसडीओ चास (बोकारो) को दिया गया था, फिर भी कार्यक्रम की अनुमति नहीं दी।
कार्यक्रम की निर्धारित तिथि से एक दिन पहले शाम 4 बजे के करीब समारोह के आयोजकों को एसडीओ कार्यालय से फोन पर सूचना दी गई कि कार्यक्रम का आदेश पत्र आकर ले जाए। जब आयोजक एसडीओ कार्यालय पहुंचे तो कार्यालय में कोई नहीं मिला। पुनः रात के आठ बजे सेक्टर 9 के हरला थाना से फोन आया कि कार्यक्रम का आदेश पत्र आकर ले जाए। जब तीनों आयोजक लोग हरला थाना पहुंचे तो पुलिस ने यह बताते हुए कि कार्यक्रम पर प्रतिबंध लगा दिया गया है, उन्हें थाने में ही नजरबंद कर लिया।
28 जून को कार्यक्रम में शमिल होने आ रहे चंद्रपुरा से लगभग 300 लोगों को बास्ते जी पुल के पास सिटी डीएसपी बोकारो द्वारा रोक कर उनके पास से झंडा, बैनर वगैरह जब्त कर लिया गया और रज्जाक अंसारी, सुजीत कुमार, रंजीत कुमार और सरफराज अंसारी को गिरफ्तार कर हरला थाना लाकर नजरबंद कर लिया गया। अरविन्द, संतोष और सुरेश को चास मुफिसल थाना भेज दिया गया। शाम के पांच बजे सभी सात लोगों को अनुबंध के साथ छोड़ दिया गया।
समारोह समिति के संयोजक एवं मसंस के महासचिव बच्चा सिंह को बोकारो थर्मल पुलिस ने उसके आवास से रात में ही गिरफ्तार कर लिया तथा सुबह 28 जून को उन्हें रामगढ़ जेल भेज दिया गया और समारोह में शामिलल होने आ रहे बोकारो थर्मल के लोगों को फुसरो में ही रोक दिया गया।
एक पुराने वारंट के आधार पर गिरफ्तार बच्चा सिंह को एसीजीएम के कोर्ट में पेशी के बाद जमानत तो मिल गयी मगर किसी न्यायायिक प्रक्रिया के उन्हें रिहा नहीं किया जा सका। इन सारे घटनाक्रम से कार्यक्रम काफी प्रभावित रहा, पुलिस के इस अप्रत्याशित रवैये के खिलाफ जनता में काफी आक्रोश देखा गया।
कार्यक्रम में नक्सलबाड़ी आंदोलन के तमाम पहलुओं पर चर्चा हुई। बैठक को संबोधित करते हुए वक्ताओं ने स्पष्ट किया कि झारखंड वासियों का जन आंदोलनों से 300 साल पुराना रिश्ता है जो सि़द्धू-कान्हू चांद-भैरव, बिरसा मुण्डा, तिलका माझी की विरासत की देन है, हम शासन तंत्र के इस तरह के अलोकतांत्रिक दबाव से डरने वाले नहीं हैं।
वक्ताओं ने कहा कि सरकार जनता को कटोरा लेकर इन कारपोरेट जगत के दरवाजे पर भीख मांगते हुए खड़ा देखना चाहती है। रघुवर सरकार ने उद्योगपतियों से 210 एमओयू किया है और झारखंड की 20 लाख 57 हजार एकड़ जमीन पर नजर है, जिसे इन उद्योगपतियों को देने की तैयारी हो रही है। ऐसे में झारखंडी जनता के पास अपनी जमीन बचाने के लिए संघर्ष के सिवाय दूसरा रास्ता नहीं है।
कार्यक्रम को क्षेत्र के विस्थापित नेताओं ने विस्थापन की समस्या पर विस्तृत प्रकाश डाला एवं नक्सलबाड़ी आंदोलन की जरूरत पर जोर दिया।