बिहार में बदतर स्वास्थ्य सेवाएं, डॉक्टरों के 47 और नर्सों के 71 फीसदी पद खाली
नीतीश सरकार की सुप्रीम कोर्ट में खुली पोल, कोर्ट के आदेश पर दिये हलफनामे में स्वीकारा सरकार ने कि राज्य में उपलब्ध मानव संसाधनों की है भारी कमी, अस्पतालों में डॉक्टरों के 47 फीसदी तो नर्सों के 71 फीसदी पद हैं खाली...
जेपी सिंह की रिपोर्ट
चमकी बुखार (मस्तिष्क ज्वर) जैसी गंभीर बीमारी से जूझ रहे बिहार में स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं। राज्य सरकार ने मंगलवार 2 जुलाई को उच्चतम न्यायालय को बताया कि सरकार द्वारा संचालित स्वास्थ्य केंद्रों में स्वीकृत 12,206 पदों के लिये सिर्फ 5,205 डॉक्टर ही तैनात हैं।
उच्चतम न्यायालय में दिये गए हलफनामे में राज्य सरकार ने कहा कि सरकार की तरफ से संचालित अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्रों में स्वीकृत क्षमता 19,155 के मुकाबले सिर्फ 5,634 नर्सें ही तैनात हैं। बिहार सरकार ने कोर्ट में कहा कि राज्य में डॉक्टरों के 57 फीसद और नर्सों के 71 फीसद पद खाली हैं।
उच्चतम न्यायालय ने 24 जून को राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि वह राज्य में स्वास्थ्य सेवाओं और साफ-सफाई को लेकर एक हफ्ते में मौजूदा स्थिति से उसे अवगत कराए। मुजफ्फरपुर में मस्तिष्क ज्वर से 200 से ज्यादा बच्चों की मौत के बाद न्यायालय ने यह निर्देश दिया था।
बिहार के मुजफ्फरपुर में बच्चों की लगातार हो रही मौत के मामले में बिहार सरकार ने उच्चतम न्यायालय में हलफनामा दाखिल किया गया है। हलफनामे में बिहार राज्य सरकार ने स्वीकार किया है कि राज्य में उपलब्ध मानव संसाधनों में भी कमी है। बिहार सरकार ने कहा है कि मुजफ्फरपुर मामले पर नीतीश सरकार नजर बनाए हुए हैं। सरकार इस बीमारी पर काबू करने का हरसंभव प्रयास कर रही है।
राज्य सरकार ने सामाजिक और आर्थिक सर्वेक्षण के आधार पर बेहतर पोषण मुहैया कराने का आदेश दिया है। उच्चतम न्यायालय इस मामले पर इस सप्ताह सुनवाई कर सकता है। चमकी बुखार के संदर्भ में राज्य सरकार ने कहा है कि कुल 824 मामले सामने आएं हैं और कुल 157 मौत हुई हैं। हालांकि इसमें कहा गया कि यह नहीं पता कि मस्तिष्क ज्वर से हुई मौत के 215 मामलों में से 24 इस बीमारी से हुई हैं या नहीं।
इस बीच स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय तथा विश्वबैंक के तकनीकी सहयोग से तैयार नीति आयोग की 'स्वस्थ राज्य प्रगतिशील भारत' शीर्षक से जारी रिपोर्ट में स्वास्थ्य और चिकित्सा सेवाओं के मोर्चे पर पहले से ही पिछड़े बिहार, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और ओडिशा पहले से अधिक फिसड्डी साबित हुए हैं। इसके विपरीत हरियाणा, राजस्थान और झारखंड में हालात उल्लेखनीय रूप से सुधरे हैं।
'स्वस्थ राज्य प्रगतिशील भारत' शीर्षक से जारी रिपोर्ट में राज्यों की रैंकिंग से यह बात सामने आयी है। इस रिपोर्ट में इन्क्रीमेन्टल रैंकिंग यानी पिछली बार के मुकाबले सुधार के मामले में 21 बड़े राज्यों की सूची में बिहार 21वें स्थान पर सबसे नीचे रहा है, जबकि उत्तर प्रदेश 20वें, उत्तराखंड 19वें और ओडि़शा 18वें स्थान पर रहा है।
संपूर्ण रैंकिंग में 21 बड़े राज्यों की सूची में उत्तर प्रदेश सबसे नीचे 21वें स्थान पर है। उसके बाद क्रमश: बिहार, ओडि़शा, मध्य प्रदेश और उत्तराखंड का स्थान है। वहीं इसमें शीर्ष पर केरल है। उसके बाद क्रमश: आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात का स्थान हैं।रिपोर्ट के अनुसार संदर्भ वर्ष 2015-16 की तुलना में 2017-18 में स्वास्थ्य क्षेत्र में बिहार का संपूर्ण प्रदर्शन सूचकांक 6.35 अंक गिरा है। इसी दौरान उत्तर प्रदेश के प्रदर्शन सूचकांक में 5.08 अंक, उत्तराखंड 5.02 अंक तथा ओडि़शा के सूचकांक में 3.46 अंक की गिरावट आयी है।
यह रैंकिंग 23 संकेतकों के आधार पर तैयार की गयी है। इन संकेतकों को स्वास्थ्य योजना परिणाम (नवजात मृत्यु दर, प्रजनन दर, जन्म के समय स्त्री-पुरूष अनुपात आदि), संचालन व्यवस्था और सूचना (अधिकारियों की नियुक्ति अवधि आदि) तथा प्रमुख इनपुट / प्रक्रियाओं (नर्सों के खाली पड़े पद, जन्म पंजीकरण का स्तर आदि) में बांटा गया है।