Begin typing your search above and press return to search.
आंदोलन

हाईकोर्ट ने की मारुति मजदूरों की जमानत याचिका खारिज

Prema Negi
12 Oct 2018 4:29 PM GMT
हाईकोर्ट ने की मारुति मजदूरों की जमानत याचिका खारिज
x

मजदूरों की ओर से उच्चतम न्यायालय की वरिष्ठ अधिवक्ता रेबिका जॉन ने पैरवी की, लेकिन कोर्ट ने कर दिया किसी भी दलील को सुनने से इनकार...

खुशी राम, मारुति सुजुकी के बर्खास्त कर्मचारी

चंडीगढ़। आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे मारुति मानेसर के मजदूरों की जमानत याचिका को चंडीगढ़ हाईकोर्ट ने आज 12 अक्टूबर को हुई खारिज कर दिया।

गौरतलब है कि अन्यायपूर्ण आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे 13 मारुति मज़दूरों में से 3 मजदूर सुरेश ढुल, संदीप ढिल्लो व धनराज भम्भी की जमानत के लिए चंडीगढ़ हाईकोर्ट में याचिका लगाई गई थी, जिसकी सुनवाई आज 12 अक्टूबर को कोर्ट नंबर 9 में जज ए बी चौधरी की अदालत में थी। मजदूरों की ओर से उच्चतम न्यायालय की वरिष्ठ अधिवक्ता रेबिका जॉन ने पैरवी की, लेकिन कोर्ट ने किसी भी दलील को सुनने से इनकार कर दिया।

18 जुलाई 2012 को मारुति सुजुकी के मानेसर प्लांट में घटित साजिशपूर्ण घटना के बाद 150 मजदूर लंबे समय तक जेल में बंद रहे। 18 मार्च 2017 को सेशन कोर्ट गुड़गांव के फैसले में 117 मजदूरों को बाइज्जत बरी हुए थे, लेकिन कोर्ट ने 31 लोगों को दोषी करार दिया था, जिनमें से 13 मजदूरों को उम्र कैद की सजा सुना दी थी। साढ़े 6 साल बीत जाने के बावजूद कोर्ट आज भी इन बेगुनाह मारुति मजदूरों को जमानत तक देने को तैयार नहीं हो रहा है।

एक तरफ जहां तमाम घोटालेबाज और अपराधी शान से घूम रहे हैं, बैंक का करोड़ों रुपए लेकर चंपत हो रहे हैं, वहीं दूसरी ओर बेगुनाह मजदूरों को जमानत तक नहीं मिल रही है। यही है पूंजीवाद का न्याय, जहां पर फैक्ट्रियों में मजदूरों की मौत के बाद भी प्रबंधकों पर कोई कार्रवाई नहीं होती है, वहीं दूसरी ओर निरपराध मजदूरों के साथ अन्याय का यह उदाहरण सामने है।

यह सोचने का विषय है कि जब कोर्ट यह कह रहा हो कि मारुति मजदूरों को जमानत मिलने से निवेश प्रभावित होगा तो फिर इस व्यवस्था में मज़दूरों को न्याय की उम्मीद भी बेमानी है। फिर भी, साढ़े छह सालों से मज़दूरों का संघर्ष जारी है, और जारी रहेगा।

(खुशीराम चंडीगढ़ से मारुति के बरखास्त मजदूर और प्रोविजनल कमेटी के सदस्य हैं।)

Next Story

विविध