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राष्ट्रीय

कोरोना संकट: भूख मिटाने की जगह अब चावल से सैनिटाइजर...जरूरी, मजबूरी या फिर...?

Manish Kumar
22 April 2020 3:59 AM GMT
कोरोना संकट: भूख मिटाने की जगह अब चावल से सैनिटाइजर...जरूरी, मजबूरी या फिर...?
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सवाल चावल से सेनिटाइजर बनाने का नहीं है। सवाल इस बात का है कि जब इतने सारे विकल्प है, फिर चावल ही क्यों? वह चावल जिसे खाया जा सकता है। यदि चावल ही इस्तेमाल करना है तो खराब चावल व इसके टुकड़े का भी प्रयोग हो सकता है....

मनोज ठाकुर की रिपोर्ट

जनज्वार ब्यूरो, चंडीगढ़: फूड कारपोरेशन ऑफ इंडिया के पास चावल के अतिरिक्त भंडार से इथेनॉल बनाने का निर्णय केंद्र सरकार ने लिया है। यह निर्णय तब लिया, जब कोविड 19 संकट की वजह से देश भर में अनिश्चितता का माहौल बना हुआ है। लाखों प्रवासी मजदूर पेट भरने के लिये एक एक रोटी को मोहताज हो रहे हैं।

सरकार ने यह निर्णय तब लिया जब देश लॉकडाउन में हैं। इसका असर कृषि क्षेत्र पर भी पड़ रहा है। कृषि अर्थशास्त्री डाक्टर प्रदीप चौहान ने बताया कि चावल के अतिरिक्त भंडार को शराब फैक्टरी को देना तर्क संगत निर्णय नहीं है। उन्होंने कहा कि अभी वायरस तेजी से फैल रहा है। इससे कृषि क्षेत्र भी अछूता नहीं है। ऐसे में चावल का कम से कम ऐसा प्रयोग नहीं होना चाहिये।

सरकार ने राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति 2018 जो अनाज को इथेनॉल में बदलने की मंजूरी देता है। इस नीति को आधार बना कर पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान की अध्यक्षता में राष्ट्रीय जैव इंधन समन्वय समिति की बैठक में यह निर्णय लिया है। लेकिन सवाल यह है कि इस मौके पर चावल ही क्यों।

कोआपरेटिव चीनी मिल के पूर्व कैमिस्ट एसएस रैना ने बताया कि इस वक्त देश केा यदि इथनॉल की आवश्यकता है तो इसके लिए गन्ना बेहतर विकल्प है। इस वक्त गन्ने का सीजन चल रहा है। चीनी का उत्पादन रोक कर ज्यादा से ज्यादा मात्रा में इथनॉल बनाया जा सकता है। इस बार गन्ने की फसल अच्छी है।

रैना ने बताया कि पहले भी शराब फैक्टियों में अनाज का प्रयोग होता रहा है। लेकिन अनाज इतना खराब हो चुका होता था कि जानवरों के खाने के लायक भी नहीं बचता। इस तरह के आनाज के स्टॉक को फाइनल करने के लिये विशेषज्ञों की एक कमेटी रिपोर्ट देती है, इसके बाद ही अनाज को शराब फैक्टरी को दिया जाता रहा है। एफसीआई का चावल अभी इस स्थिति में नहीं पहुंचा है।

इधर राइस मिलर्स का कहना है कि यदि चवल से इथेनॉल बनाना है तो खुले बाजार से टुकड़ा 17 से लेकर 18 रुपए प्रति किलोग्राम आसानी से उपलब्ध है। जबकि एफसीआई का चावल सरकार को औसतन 30 रुपये किलो पड़ता है। हालांकि एफसीआई 23 रुपए प्रति किलोग्राम चावल खुले बाजार में बेच रही है। सरकार की मंशा पर इसलिए भी सवाल उठ रहे हैं, क्योंकि लॉकडाउन में जो एनजीओ गरीबों में राशन बांट रही है, यदि वह एफसीआई से चावल लेती है तो उन्हें इसके लिए 22 रुपये दाम चुकाना पड़ेगा। गेहूं के लिए सरकार को 21 रुपये चुकाने होंगे।

एक किलोग्राम गन्ने से 74 एमएल एथेनॉल बनता है, जबकि एक किलो चावल से 283 एमएल इथेनॉल बनेगा। इस हिसाब से देखा जाये तो गन्ने से 54 रुपए लीटर और चावल से 106 रुपए लीटर एथेनॉल की कॉस्ट आएगी। (नोट: एथनोल की यह मात्रा और कीमत अनुमानित है, विशेषज्ञों से बातचीत कर यह समझने की कोशिश की है कि किस उत्पाद से इसे तैयार करना सस्ता पड़ सकता है) विशेषज्ञों का कहना है कि एफसीआई के चावल का प्रयोग इथेनॉल के लिए प्रयोग करना ठीक नहीं है।

एफसीआई की पिछले साल की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में गेहूं और चावल का आठ करोड़ टन का स्टॉक है। जो कि देश की सार्वजनिक वितरण प्रणाली की कल्याणकारी योजनाओं के लिए यह तीन गुणा ज्यादा है। लेकिन यह सामान्य परिस्थितियों में हैं। अब जबकि विपरीत हालात है। ऐसे में अन्न का भंडार तो सुरक्षित रखना ही चाहिए।

राइस मिल एसोसिएशन के प्रवक्ता अश्वनी मित्तल ने बताया कि एफसीआई से चावल शराब फैक्ट्रियों को दिया जाने की जानकारी भर से खुले बाजार में परमल चावल के दाम चार रुपये प्रति किलो तक बढ़ गए। पहले यह रेट 22 रुपये प्रति किलोग्राम थे, जो अब 26 रुपये तक पहुंच गये।

अश्वनी मित्तल ने बताया कि एफसीआई का स्टॉक बाजार में चावल के रेट संतुलित करता है। क्योंकि कारोबारियों को पता होता है कि यदि दाम बढ़ते हैं तो एफसीआई अपना चावल मार्केट में उतार सकता है। इससे गरीब लोगों को किफायती दाम पर चावल उपलब्ध रहता है। उन्होंने बताया कि सरकार की इस योजना से नुकसान यह हुआ कि एक तो एफसीआई का स्टॉक कम होगा। दूसरा गरीब को यदि बाजार से चावल खरीदना पड़ गया तो उसे महंगा मिलेगा।

लेवी चावल मिलर्स एसोसिएशन के पदाधिकारी बृज भूषण गुप्ता ने बताया कि सरकार ने चावल से एथेनॉल बनाने का जो निर्णय लिया है, इसये एक ओर समस्या भी आ सकती है। वह यह है कि एफसीआई से सस्ते दाम पर चावल लेकर शराब कंपनियां इस चावल को तो खुले बाजार में बेच दें, खुले बाजार से टुकड़ा और खराब चावल लेकर इसका इथेनॉल बना दें। यह करना बहुत मुश्किल काम नहीं है। इस तरह की गड़बड़ी फूड कारपोरेशन ऑफ इंडिया में कई जगह अक्सर होती है।

जानकारों का यह भी कहना है कि यदि एफसीआई के पास कोेटे से ज्यादा चावल है तो इसे पीडीएस के माध्यम से गरीबों तक उपलब्ध कराना चाहिए। इसके लिए राशन कार्ड की बाध्यता खत्म कर देनी चाहिए। इसके लिए उनके आधारकार्ड या फिर कोई अन्य प्रमाण भी प्रयोग में लाया जा सकता है। उनका यह भी कहना है कि चावल पेट भरने के लिए हैं, इस पर पहला हक भूख का है। सेनेटाइजर बनाने के लिए विकल्प बहुत है। इसलिए सरकार को चाहिए कि वह विकल्प पर विचार करें।

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