प्रतीकात्मक
मतदान योग्य 6.5 करोड़ महिलाओं के नाम मतदाता सूची से नदारद हैं। यह संख्या कुल महिला मतदाताओं की संख्या का 20 प्रतिशत है....
बता रहे हैं वरिष्ठ लेखक महेंद्र पांडेय
हमारे देश में आजादी के बाद से ही महिलाओं को मतदान का अधिकार प्राप्त है और महिलायें मतदान में बढ़-चढ़ हर भाग भी लेती हैं। अब तो उनकी अपनी मांगें भी होती हैं और चुनावी वादों में उनके लिए अलग से कुछ होता भी है। कोई छात्राओं को साइकिल देता है, कोई अधिक छात्राओं को लैपटॉप बांटता है तो कोई गैस सिलिंडर ही बाँट रहा है।
चुनावों में खड़ा होने वाली और इसे जीतने वाली महिलाओं की संख्या भी बढ़ रही है। वर्ष 1951 के पहले लोकसभा चुनावों में महज 24 महिलायें शामिल हो पायीं थीं, जबकि 2014 के चुनावों में 660 महिला प्रत्याशी थीं। इस वर्ष होने वाले चुनावों में उम्मीद की जा रही है कि मतदाताओं में महिलायें पुरुषों से अधिक संख्या में हिस्सा लेंगी।
वर्तमान प्रधानमंत्री मोदी जी महिलाओं को बढ़ाने की बहुत सी बातें करते है, कभी उनके जीवन में उजाला की बातें करते हैं, कभी लकड़ी जलाकर खाना बनाने से स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों की बात करते हैं, एक महिला प्रतिनिधियों के सम्मलेन में तो खाना बनाने के समय हाथ जलने की ही बात कर रहे थे, मुस्लिम महिलाओं को तलाक से बचाने पर तो लगातार बोलते हैं। मोदी जी चुनावों में अधिक महिलाओं की भागीदारी की बात भी करते हैं, मगर एक दुखद तथ्य पर मोदी जी का बयान आज तक नहीं आया, वह तथ्य है करोड़ों महिलाओं का नाम वोटर लिस्ट में शामिल नहीं है।
पत्रकार प्रणव रॉय और चुनाव विश्लेषक डोरब सोपारीवाला की एक पुस्तक है, द वर्डिक्ट: डिकोडिंग इंडियाज इलेक्शन। इस पुस्तक में जनगणना में 18 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाओं की संख्या की तुलना वोटर्स लिस्ट में महिलाओं की संख्या से करने के बाद बताया गया है कि 2.1 करोड़ महिलायें मतदान के योग्य हैं, पर वोटर्स लिस्ट से गायब हैं।
इस संख्या के अनुसार तो हरेक लोकसभा क्षेत्र से औसतन 38000 महिलायें गायब हैं। कुछ राज्यों, जैसे उत्तर प्रदेश के लिए तो यह आंकड़ा 80000 महिलायें प्रति निर्वाचन क्षेत्र तक पहुँच जाता है। यहाँ इस तथ्य को जानना आवश्यक हो जाता है कि देश में 20 प्रतिशत से अधिक निर्वाचन क्षेत्रों में जीत और हार का अंतर 38000 वोटों से कम रहता है। इसका सीधा सा मतलब है, यदि मतदान के लिए योग्य सभी महिलायें चुनाव की प्रक्रिया में शामिल हो जाएँ तब परिणाम पर बहुत अंतर पड़ सकता है।
मतदाता सूची से गायब महिलाओं की संख्या सबसे अधिक उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान में है। ध्यान देने वाला तथ्य यह है कि इन तीनों राज्यों में या तो बीजेपी के सरकार है या फिर हाल-फिलहाल तक इसकी सत्ता रही है। वोटर्स लिस्ट से गायब महिलाओं में से 50 प्रतिशत से अधिक उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान में हैं। तमिलनाडु और आन्ध्र प्रदेश जैसे दक्षिणी राज्यों में स्थिति सबसे अच्छी है।
हमारे देश में महिलाओं के सशक्तीकरण का नाटक भरपूर होता है। इसे देवी का स्वरूप माना जाता है, शक्ति का भण्डार माना जाता है। बड़े बड़े होर्डिंग्स पर गाँव की मुस्कराती महिला की बड़ी तस्वीर के साथ-साथ मोदी जी की तस्वीर होती है। लड़की बचाओ, लडकी पढाओ का नारा गढ़ा जाता है और इन सबके बीच सरकारी आंकड़ों के अनुसार ही प्रतिवर्ष 6.3 करोड़ लडकियां पैदा होने से पहले या पैदा होते ही मार दी जाती हैं। ये तो सरकारी आंकड़ें हैं, वास्तविक संख्या तो इससे बहुत अधिक होगी।
इस पुस्तक के आंकड़ों से अधिक भयावह आंकड़े भी गायब महिला वोटरों के सन्दर्भ में उपलब्ध हैं। अर्थशास्त्री शमिका रवि और मुदित कपूर ने भी इस सन्दर्भ में एक स्वतंत्र अध्ययन किया है। इनके अनुसार मतदान योग्य 6.5 करोड़ महिलाओं के नाम मतदाता सूची से नदारद हैं। यह संख्या कुल महिला मतदाताओं की संख्या का 20 प्रतिशत है।
सरकारें और चुनाव आयोग तो लगातार महिलाओं को मतदान में आगे करने का दिखावा करता है। अनेक चुनाव क्षेत्र केवल महिलाओं के लिए आरक्षित हैं, मतदान के समय महिलाओं की अलग पंक्ति बनती है, हरेक चुनाव केंद्र पर एक महिला अधिकारी रहती है। पर सच तो यही है कि जिस देश में आजादी के ठीक बाद से महिलाओं को मतदान का अधिकार है, वहां आजादी से 70 वर्षों बाद भी करोड़ों महिलाएं इस अधिकार से वंचित हैं।
वोटर लिस्ट में आपका नाम है या नहीं, यह आप मिसिंग वोटर ऐप के जरिए जान सकते हैं। इस मुफ्त मोबाइल ऐप में देशभर के सभी निर्वाचन क्षेत्रों की सभी सड़कों के नाम, प्रत्येक सड़क पर मौजूद घरों की संख्या और प्रत्येक घर में मतदाताओं की संख्या का विवरण मौजूद है। इस ऐप का उपयोग मिसिंग मतदाताओं की पहचान करने, घरेलू सर्वेक्षण करने और नई मतदाता आईडी के लिए ऑनलाइन आवेदन हेतु किया जा सकता है। यह मिसिंग वोटर्स ऐप को गूगल प्ले स्टोर से या 8099683683 पर मिस्ड कॉल देने के बाद डाउनलोड की जा सकती है।
इस एप के फाउंडर खालिद सैफुल्लाह के मुताबिक देश के कुल मतदाताओं में से 15 प्रतिशत और 25 प्रतिशत मुसलमान चुनावी सूची में मौजूद नहीं हैं। यानी कुल 12.7 करोड़ मतदाता जिनमें से तीन करोड़ मुस्लिम है, इस बार के लोकसभा चुनाव 2019 में मतदान नहीं कर पाएंगे।