देश में है सिर्फ एक सरकारी आयुर्वेदिक कंपनी, जो चल रही है लाभ में, लेकिन 18 मई को नीलाम कर देगी मोदी सरकार
वर्ष 2017-18 में 10.90 करोड़ रुपए का मुनाफा कमाने वाले इस कारखाने का न्यूनतम मूल्य मोदी सरकार ने मात्र 70 करोड़ रुपए घोषित किया है, पहाड़ों की तलहटी में 40.31 एकड़ भूमि जिस पर यह कारखाना लगा है, उसी की कीमत है 100 करोड़ रुपए से ज्यादा...
सामाजिक कार्यकर्ता और स्वतंत्र पत्रकार मुनीष कुमार की रिपोर्ट
मोदी सरकार देश का एकमात्र सरकारी आयुर्वेदिक दवा बनाने का सरकारी कारखाना इंडियन मेडिसिन एंड फार्मास्युटिकल कम्पनी लिमिटेड (आईएमपीसीएल) आगामी 18 मई को बेचने जा रही है। सरकार ने आईएमपीसीएल को बेचे जाने के लिए द्विस्तरीय ग्लोबल टेंडर आमंत्रित किए हैं, जो कि 18 मई को भारत सरकार के निवेश और लोक परिसम्पत्ति प्रबन्धन विभाग के दिल्ली स्थित कार्यालय में सायं 3 बजे खोले जाएंगे।
पिछले वित्तीय वर्ष 2017-18 में 10.90 करोड़ रुपए का मुनाफा अर्जित करने वाले इस कारखाने का न्यूनतम मूल्य सरकार ने मात्र 70 करोड़ रुपए घोषित किया है। पहाड़ों की तलहटी में 40.31 एकड़ भूमि जिस पर यह कारखाना लगा है, उसकी कीमत ही 100 करोड़ रुपए से ज्यादा है। इस कारखाने की नैनीताल जिले के रामनगर शहर में स्थित लगभग 2 लाख फुट (4.61 एकड़) जमीन का बाजार मूल्य भी 100 करोड़ से कम नहीं है।
इसे बेचने के लिए निजी क्षेत्र की कम्पनी रीसर्जेन्ट इंडिया लिमिटेड को ट्रांजेक्शन एडवाइजर, एमवी किनी लाॅ फर्म को लीगल एडवाइजर व एल.एस आई. इंजीनियरिंग एंड कंसलटेंट लि. को एसेट वैल्यूअर नियुक्त किया है।
इनके द्वारा जारी प्रारम्भिक सूचना पत्र के अनुसार आईएमपीसीएल के 98.11 प्रतिशत शेयर भारत सरकार के पास हैं तथा शेष 1.89 प्रतिशत शेयर कुमाऊं मंडल विकास निगम के पास हैं। केन्द्र सरकार के इस उपक्रम में प्राचीन विधि से आयर्वेदिक व यूनानी दवाओं का उत्पादन किया जाता है, जिसे बेचे जाने के लिए देशव्यापी नेटवर्क स्थापित है। देश में 403 यूनानी व आयुर्वेदिक अस्पताल हैं।
देश में आयुर्वेदिक दवाओं का बाजार 2 हजार करोड़ व यूनानी दवाओं का बाजार 500 करोड़ रुपए सालाना का है, जिसकी 2021 तक की वृद्धि दर 16 प्रतिशत आंकी गयी है। बाबा रामदेव से लेकर देशी-विदेशी पूंजीपतियों की नजर इस पर लगी हुयी है।
मिनी नवरत्न का दर्जा प्राप्त इस कम्पनी में 111 नियमित, 15 अनुबंधित व 2 ट्रेनी कर्मचारी हैं। लगभग 200 श्रमिकों की आपूर्ति ठेकेदार के माध्यम से की जाती है। 1978 में लगाया गया यह उद्योग आसपास की आबादी से जड़ी—बूटी, गोबर के उपले व अन्य सामग्री खरीदकर रोजगार उपलब्ध कराता रहा है। कारखाना बेच दिये जाने के बाद इन सबके रोजगार पर नकारात्मक असर पड़ना तय है।
लाभ में चल रहे आईएमपीसीएल को बेचा जाना भारत सरकार की नव उदारवादी नीतियों का ही एक हिस्सा है। नवउदारवादी नीति का मूलमंत्रों में है- कल्याणकारी राज्य की समाप्ति व अर्थव्यवस्था से राज्य के नियंत्रण का खात्मा। यानी कि सरकार का काम उद्योग-धंधे चलाना नहीं है, यह काम पूंजीपतियों का है। सरकार कोई धर्मशाला नहीं है जो कि जनता के लिए स्वास्थ्य, शिक्षा आदि को लेकर कल्याणकारी याजनाएं चलाए।
कांग्रेस, भाजपा की सरकारें व उनके गठबंधन 1991 के बाद से नई आर्थिक नीति के रुप में इन्हीं नवउदारवादी नीतियों को एकमत होकर लागू करते रहे हैं। सार्वजनिक उपक्रम चाहे लाभ में चले अथवा घाटे में इनको सरकारें लगातार देशी-विदेशी पूंजीपतियों के हाथ बेच रही है। 2009-10 से विगत वित्तीय वर्ष 2018-19 तक 3.74 लाख करोड़ रुपये सरकारें सार्वजनिक परिसम्पत्तियों के विनिवेश के जरिये जुटा चुकी है।
वित्तीय वर्ष विनिवेश राशि (करोड़ रुपयों में)
2009-10 23552.94
2010-11 22144.20
2011-12 13894.05
2012-13 23956.81
2013-14 15819.46
2014-15 20068.25
2015-16 23996.80
2016-17 46246.57
2017-18 100056.91
2018-19 84972.17
2009-10 से 2018-19 तक कुल राशि 374708.16 करोड़ रुपए
वर्तमान वित्तीय वर्ष 2019-20 के लिए सरकार ने 90 हजार करोड़ विनिवेश का लक्ष्य रखा है। आईएमपीसीएल को बेचा जाना इसी 90 हजार करोड़ रु के लक्ष्य का एक हिस्सा है। देश की जनता के मालिकाने वाले सार्वजनिक उपक्रमों को बेचने के लिए सरकार ने 10 दिसम्बर, 1999 को एक विशेष विभाग बनाया था। जिसे वर्ष 2016 में निवेश और लोक परिसम्पत्ति प्रबन्धन विभाग (दीपम) में तब्दील कर दिया गया।
आईएमपीसीएल को खरीदने के लिए विदेशी निवेशक भी बोली लगा सकेंगे। विदेशी निवेश को देश की अर्थव्यवस्था के विकास का इंजन मान लिया गया है। सरकारें विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए विदेशी निवेशकों को कई प्रकार की छूटें उपलब्ध करा रही है।
अंग्रेजो भारत छोड़ो का नारा लगाने वाली सरकारें लुटेरी साम्राज्यवादी कम्पनियों को देश में एक के बाद एक करके बुला रही है। उन्हें देश के विकास के लिए अपने वैज्ञानिकों, विशेषज्ञों व मजदूर-कर्मचारियों से ज्यादा विदेशी लुटेरों पर भरोसा है। 18 मई के बाद यह कम्पनी किसी विदेशी निवेशक के हाथों में चली जाए तो भी इसमें हैरानी नहीं होगी।
वर्ष 2018 के प्रारम्भ में जब आईएमपीसीएल के विनिवेश की प्रक्रिया शुरु हुई तो ठेका मजदूर कल्याण समिति के अध्यक्ष किसन शर्मा ने प्रदेश के पांचों भाजपा सांसद,कांग्रेस के राज्यसभा सांसद प्रदीप टम्टा व सल्ट से भाजपा विधायक सुरेन्द्र सिंह जीना को पत्र लिखकर इसका विनिवेश रोकने की मांग की थी, परन्तु सभी सांसदों व विधायक ने जनहित की इस मांग पर चुप्पी साध ली। पौड़ी लोकसभा सांसद व पूर्व मुख्यमंत्री बी.सी खंडूरी के पीए ने फोन पर किसन शर्मा से कहा कि अल्मोड़ा हमारे संसदीय क्षेत्र में नहीं आता है, इस कारण हम इस मामले में कुछ नहीं कर सकते।
आईएमपीसीएल के कर्मचारी संघ ने इसके विनिवेश को रोके जाने हेतु उत्तराखंड के उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल की है। जिस पर 29 अप्रैल को उच्च न्यायालय ने 3 सप्ताह के भीतर सरकार से जबाब दाखिल करने के लिए आदेश दिया है, परन्तु न्यायालय ने 18 मई को इसे बेचने हेतु की जा रही कार्यवाही को स्टे नहीं किया है।
आईएमपीसीएल के कर्मचारी व ठेका श्रमिक आईएमपीसीएल के विनिवेश के विरोध में लामबंद हो रहे हैं, जिसके तहत उन्होंने 1 मई, 2019 अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस पर कारखाना गेट पर प्रातः 10 बजे से धरना-प्रदर्शन की घोषणा की है।
देश के वर्तमान लोकसभा चुनाव में सरकारी सम्पत्तियों का विनिवेश मुद्दा नहीं है। हमाम में नंगे राजनैतिक दल इस लूट को बढ़ाने में लगे हैं।
(मुनीष कुमार समाजवादी लोक मंच के सहसंयोजक हैं।)