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50 रुपए रोज पाने वाले 70 हजार चौकीदारों ने कहा, मोदी जी बंद करो नौटंकी
भुखमरी और तंगहाली में जी रहे यूपी के 70 हजार चौकीदार, प्रतिदिन पाते हैं 50 रुपए मजदूरी, चौकीदार की संघ की दो टूक कि अगर मोदी ने नहीं बंद किया चौकीदारों का इस्तेमाल तो वह खटखटाएंगे अदालत का दरवाजा
उत्तर प्रदेश में हैं करीब 70 हजार चौकीदार जिनके कंधों पर है गांवों की सुरक्षा का जिम्मा, लेकिन नहीं मिलती उतनी भी सैलरी जितना प्रदेश में है न्यूनतम वेतन
अरविंद गिरि की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट
जनज्वार। भाजपा की वोट की राजनीति के तहत मैं भी चौकीदार का जो कैंपेन चला है उस ओछी राजनीति से असली चौकीदार बहुत आहत हैं। वे कह रहे हैं कि मोदी सरकार हमें बख्श दे, हमारे नाम पर राजनीति करना बंद करे।
गौरतलब है कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने जबसे देश में उजागर हुए तमाम घपले-घोटालों के बाद मोदी सरकार पर हमलावर होते हुए 'चौकीदार चोर है' कहना शुरू किया, उसके बाद से मोदी समर्थकों के बीच राहुल गांधी को लेकर बहुत गुस्सा फूट रहा था। तरह—तरह के दुष्प्रचार सोशल मीडिया पर प्रचारित किये जा रहे थे।
मोदी और तमाम भाजपाई अपने को चौकीदार बता रहे हैं और राहुल गांधी समेत पूरी कांग्रेस चौकीदार को चोर कह रहे हैं। सोशल मीडिया पर तो खुद को चौकीदार बताने वालों की बाढ़ आ गई है। अपने नाम पर ये राजनीतिक ड्रामा देख उत्तर प्रदेश के चौकीदार दुःखी हैं।
लोकसभा चुनाव के समय में गांवों की सुरक्षा करने वाले चौकीदार जो खून—पसीना बहाकर गांवों में रात—रात भर जागते हैं, अचानक राजनीति के केन्द्र में आ गये हैं।
'चौकीदार चोर है' पर देश के असली चौकीदारों ने उस तरह आपत्ति दर्ज नहीं कराई, मगर जिस दिन से मोदी और मोदी के कैबिनेट मंत्रियों समेत तमाम गुंडे-मवालियों तक ने अपने नाम के आगे चौकीदार शब्द जोड़ दिया है, सोशल मीडिया पर मोदी के ट्वीट के बाद तो खुद को चौकीदार बताने की होड़ लग गई है, इससे असली चौकीदार कह रहे हैं यह हमारे साथ भद्दा मजाक है। मोदी जी नौटंकी बंद करो।
मोदी प्रधानमंत्री की कुर्सी बचाने के लिए चौकीदार को इस्तेमाल कर रहे हैं, जिससे चौकीदार खुद को सियासत के लिए मोहरा बनाए जाने से आहत और दुःखी हैं। चौकीदार विश्वभंर कुमार का कहना है कि मोदी जी चौकीदारी की नौटंकी बंद करें और बताएं की पिछले 5 साल में किए वादों का क्या हुआ?
उत्तर प्रदेश चौकीदार संघ के प्रदेश संयोजक रामानंद पासवान कहते हैं, भाजपा अपनी चुनावी राजनीति के लिए हम चौकीदारों का इस्तेमाल न करे, क्योंकि हम ईमानदारी और मेहनत करके रातभर अपनी ड्यूटी करते हैं। हम कम संसाधन होने के बावजूद गांवों में टार्च और लाठी लेकर लाल पगड़ी बांधे साइकिल से गांव-गांव जाकर रात्रि ड्यूटी करते हैं। हमारे लिए गर्मी, बरसात जाड़ा सब एक समान ही रहता है। बावजूद इसके सरकार द्वारा हमारी मेहनत के अनुरूप मानदेय भी नहीं देती है। नाममात्र के मानदेय पर हम लोगों के कंधों पर पूरी सुरक्षा का जिम्मा है।
बकौल चौकीदारों के सरकारोंं ने कभी हमारी वास्तविक स्थिति को जानने, समझने की कोशिश नहीं की है और न ही समस्याओं को दूर कराने का कोई प्रयास किया।
भाजपा के चौकीदार बनने पर असली चौकीदार रोष व्यक्त करते हुए कहते हैं, आज जिस तरह से केंद्र में सत्तासीन भाजपा द्वारा लोकसभा चुनाव में हमारे पद का खुलेआम इस्तेमाल किया जा रहा है, उससे हमारी प्रतिष्ठा को ठेस पहुंच रही है। राजनीति में तमाम गुंडे, अपराधियों की भरमार है, जो अपने आगे चौकीदार शब्द लगा रहे हैं। मोदी समेत उनके मंत्री—संत्री अपने नाम के आगे से चौकीदार शब्द हटायें, नहीं तो चौकीदार संघ अपने प्रतिष्ठा को बचाने के लिए सड़क से लेकर न्यायालय तक की लड़ाई मोदी सरकार के खिलाफ लड़ने को बाध्य होगी।
वहीं उत्तर प्रदेश चौकीदार संघ के प्रदेश सह संयोजक जितेन्द्र यादव कहते हैं, चौकीदार कभी चोर नहीं होता है और न ही हर कोई चौकीदार बन सकता है। बेहतर होगा कि हम लोगों के ईमानदार पेशे को सियासी खेल में न घसीटा जाये। मोदी जी हमारे नाम का इस्तेमाल कर नौटंकी करना बंद करें।
ताज्जुब की बात है कि देश की सुरक्षा की अहम कड़ी चौकीदारों में से 90 फीसदी गरीबी रेखा से नीचे का जीवन जीते हैं। सरकार की नजरों में ये न आवास के पात्र हैं और न ही इन्हें कोई सरकारी सुविधाएं मिलती हैं। यहां तक की सरकार की तरफ से उन्हें आईकार्ड तक नहीं दिया जाता।
जानकारी के मुताबिक उत्तर प्रदेश में लगभग 70 हजार चौकीदार हैं, जिनके कंधों पर गांवों की सुरक्षा का जिम्मा है। चौकीदार पुलिस प्रशासन के सूचनातंत्र राज की एक अहम कड़ी है जो जनता के बीच विश्वास हासिल किए हुए हैं।
2017 में उत्तर प्रदेश के चौकीदारों ने अपनी मांगों को लेकर जंतर मंतर पर धरना दिया था, मगर जो भाजपा आज अपनी सियासत के लिए चौकीदार को भुना रही है, प्रदेश और केंद्र दोनों में भाजपा की सरकार होने के बावजूद उनकी मांगों पर कोई कान नहीं दिया गया।
उत्तर प्रदेश चौकीदार संघ के संयोजक रामानंद पासवान से बातचीत
प्रधानमंत्री मोदी खुद 'मैं भी चौकीदार' अभियान चला रहे हैं, ऐसे में आपलोग खुश होंगे?
हमलोगों को काहे की खुशी होगी? महीने में 1500 रुपया पाने की या फिर भूख से मरने की हालत में लगातार रहने की। मोदी जी को लोगों को भरमाना है, इसलिए वह चौकीदार बनने का नाटक रच रहे हैं। अगर उन्हें देश की चौकीदारी की फिक्र होती तो सबसे पहले वह उन सच्चे चौकीदारों की हालत जानने की कोशिश करते, जिनके कंधों पर गांव की सुरक्षा की जिम्मेदारी होती है।
क्या आप लोगों को 1500 रुपए महीने की सैलरी मिलती है, लेकिन यह तो यूपी सरकार द्वारा तय अकुशल श्रमिक की मजदूरी 175 रुपए के आधे से भी कम है?
हम लोगों ने लखनऊ और दिल्ली दोनों जगह इन मांगों को लिए प्रदर्शन किए। हमने कहा कि प्रदेश और देश में आपकी सरकार है। हमें चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी का दर्जा दिया जाए, जैसा बिहार में है। उत्तर प्रदेश सरकार के चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी मानदंडों के तहत बंधे हुए हैं, जैसे कहीं और नौकरी नहीं कर सकते, चुनाव नहीं लड़ सकते, कोई और धंधा नहीं कर सकते। पर हमें सैलरी सरकार उतना भी नहीं देती जितनी मनरेगा मजदूरों को।
आप लोग क्या काम करते हैं गांवों के लिए?
प्रदेशभर के 70 हजार से अधिक चौकीदार थानों और नागरिकों की सुरक्षा की रीढ़ हैं। हर थाने में कमसे कम 80 से 100 चौकीदार होते हैं जो गांवों और उन इलाकों में अपराधों और अपराधियों की जानकारी देते हैं, मुखबिरी करते हैं। हमारे जरिए ही अधिकारी जान पाते हैं कि किस तरह के अपराध और अपराधी इलाके में बढ़ रहे हैं।
इन 70 हजार चौकीदारों में कितने परमानेंट हैं, किनको मेडिकल, बीमा और पीएम को सुविधा मिलती है?
एक को भी नहीं। कोई परमानेंट नहीं है। 5 साल से सैलरी में एक रुपए की बढ़ोतरी नहीं हुई। योगी जी की सरकार ने 1500 रुपए को 25 सौ किए जाने की घोषणा की थी, पर वह भी अभी मिला नहीं।
गांवों में जाने के लिए क्या सुविधा और भत्ता है?
मुलायम सरकार के समय से हम संघर्ष करते रहे तो अखिलेश सरकार में साइकिल और भत्ता मिलना शुरू हुआ। वह भी 1320 रुपए का भत्ता अखिलेश सरकार में एक बार मिला, फिर कभी दुबारा नहीं मिला।
आप लोग ठेके पर काम करते हैं, सैलरी क्या कोई थर्ड पार्टी यानी ठेकेदार या एजेंसी देती है?
ना जी ना। हमें सरकार के ट्रेजरी आफिस से सैलरी मिलती है। सुविधाओं और भत्तों में बस हमें सरकार ने दरिद्र और बेसहारा रखा है, तामझाम तो पूरा सरकारी है। ग्राम प्रधान हमें सरकारी कर्मचारी कहता है और हमारी चुनावों में ड्यूटी सरकारी कर्मचारी की तरह लगाई जाती है?
लेकिन कोई सरकार अपने ही कर्मचारी को न्यूनतम वेतन से कम कैसे दे सकती है?
यही तो खेल है सर, जिसे मोदी जी के 'चौकीदारी प्रपंच' में भुलाने की कोशिश कराई जा रही है। पूरे प्रदेश के कम से 90 फीसदी चौकीदार पिछड़ी और दलित जातियों से हैं और इनका 90 फीसदी गरीबी रेखा के नीचे जीवन बसर करता है। बीमा पर हल्ला मचाने वाली सरकार हमें कोई बीमा नहीं देती। हमें गरीबों के लिए दी जाने वाली सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं दिया जाता, क्योंकि हम सरकारी कर्मचारी हैं। किसी बदमाश की मुखबीरी पर कई बार चौकीदारों की हत्या हो जाती है, पर कोई मुआवजा या नौकरी नहीं मिलती।