किसानों के व्यापक आंदोलन के समर्थन में प्रसिद्ध रंग चिंतक मंजुल भारद्वाज की 3 कविताएं
हे भूमि पुत्रो तुम्हें सलाम
हे भूमि पुत्रो तुम्हें सलाम
अपने खेतों की मेढ से निकल
अपने गाँव से निकल कर
लाल झंडे हाथ में लिए
अपने हक्क हकूक के लिए
विकास पथ पर बढ़ते हुए
तुम्हारे क़दमों की ताल से
गूंजते तुम्हारे हौंसले को सलाम!
आज विघटित,व्यक्तिवाद की गिरफ्त में
जकड़े हुए समाज में
तुम्हारी संगठित ताकत को सलाम!
ऐ माटी के लाल अबकी बार
हाकिम को एक मांगपत्र देकर मत रुक जाना
एक जुमला सुनकर मत बहक जाना
डिजिटल इंडिया के गवरनेन्स के झांसे में मत आ जाना
आज आर पार की लड़ाई में तुम चूक मत जाना
आज तुम्हें ऐ भूमि पुत्रो
तुम्हारा हक्क दबाये हर हाकिम से लड़ना है
तुम्हारा निशाना उस ‘मीडिया’ पर भी होना है
जो तुम्हारे होने और तुम्हारे संघर्ष को नकारता है
भूमंडलीकरण के दैत्य को ईश्वरीय वरदान देते
सेंसेक्स को भी पलटना है
तुम्हारी लड़ाई अगर सिर्फ़ MSP और
कर्ज़माफ़ी तक रही तो तुम्हारे
खेत खलिहान श्मशान बनते रहगें
तुम्हें निशाना शोषण के मूल पर लगाना है
अपनी फ़सल का अब स्वयं दाम तय करना है!
केंद्र में बैठे,
तुम पर मेहरबानी की भीख के
टुकड़े फेंकने वालों से अब सत्ता छीननी है
पर उसके लिए तुम्हें अपने आप से लड़ना है
अपने अन्दर बैठे जातिवाद को हराना है
अपने अन्दर बैठे धर्म के पाखंड पर विजय पानी है
अपने अंदर बैठे सामन्तवादी ‘खाप’ से लड़ना है
तुम्हारे साथ कंधे से कन्धा मिलाती महिला को
अपने बराबर हिस्सेदारी का सम्मान देना है
और ये तुम कर सकते हो...
इसके लिए तुम्हें बाहर नहीं
अपने आप से लड़ना है
हे क्रांतिवीरो स्मरण रहे
दुनिया के हर क्रांतिकारी को पहले
अपने आप से लड़ना होता है
चाहे गांधी हो, नानक हो, बुद्ध हो
ये जब तक अपने आप पर विजय पाते रहे
तब तक क्रांति का परचम लहराते रहे
मुझे तुमसे बहुत उम्मीद है
इस भूमंडलीकरण के गुलामी काल में
इस कॉर्पोरेट लूट और पूंजी के नंगे नाच में
विकास पथ पर लाल झंडे लिए
तुम्हारे कदम क्रांति की ताल ठोंक रहे हैं
हे माटी के लाल इस ताल को स्वयं भी सुनो
इसको चंद मांगों की पूर्ति का मोर्चा भर नहीं
अब सम्पूर्ण क्रांति के मार्च का गीत बनो!
किसान आन्दोलन के समर्थन में!
वो ‘किसान’ है-1
देश की धरती को जिसने सींचा है
हर बीज को जिसने बीजा है
हर पेट को जिसने पाला है
आज का कृष्ण ‘गोपाला’ है
वो कोई और नहीं ‘किसान’ है
सरकारें जिसको ‘लील’ रही हैं
सबकुछ उसका छीन रही हैं
वो कोई और नहीं ‘किसान’ है
फंदे पर वो ‘झूल’रहा है
धरती का कलेजा ‘डोल’ रहा
जिसके हक्क में बोलना वाजिब है
पर ‘जनता’ अब भी मौन है
वो ‘किसान’ है
आज उसने ली अंगड़ाई है
देश की सत्ता ‘लड़खड़ाई’ है
किया है हुकमरानो को ऐलान
वो ‘किसान’ है
हर हुक्मरान ये जान ले
इतिहास से संज्ञान ले
जिसने जनता का दमन किया
जनता ने उसको दफ़न किया
ये जनता कोई और नहीं ‘किसान’ है
सुने लें हुक्मरान किसानों का ये ऐलान
तानशाही हुक्मरानों की लाख ‘चोट’
लोकतंत्र में जनता की ताक़त एक ‘वोट’
सत्ता के गुरुर पर करे जो चोट
वो है ‘किसान’का वोट
वो किसान हैं-2
वो मात्र बीज नहीं बोते
वो वक्त ‘बोते’ हैं
जिस पर ‘जीवन’ की
फ़सल उगती है
...वो किसान हैं
वो मिटटी का शृंगार हैं
संसार की ‘भट्टी’ यानी
पेट की आग ‘बुझाने’ वाले
‘उदर’ अग्निशमक हैं
...वो किसान हैं
धरती की ऊष्मा
सूर्य की आग
जल के प्रवाह से
‘प्राणों’ को पालने वाले
पालनहार हैं
...वो किसान हैं
भूमंडलीकरण, बाज़ार की
साज़िश में फांसी के फंदे
पर झूलने को जो विवश हैं
...वो किसान हैं
शहर जिसकी ज़मी
पर पल रहे हैं
जिसके हिस्से का पानी
पी रहे हैं, जिसकी नदियों को
प्रदूषित कर रहे हैं
...वो किसान हैं
राजनीति की बिसात पर
जात पात के मोहरे बने
वायदों के जाल में फंसे हैं
...वो किसान हैं
आज़ाद भारत में
सरकार,सत्ता की सोची
समझी साज़िश के तहत
सबसे ज्यादा जो मारे गये हैं
...वो किसान हैं
अपने ‘स्वराज’ के लिए
अब जात पात भूलाकर
एक ‘किसान’ मंच के परचम तले
देश के तख्तो-ताज को ललकारने वाले
नवभारत के खुशहाल किसान
खुशहाल देश के निर्माण का
बिगुल बजाने वाले
...वो किसान हैं