Begin typing your search above and press return to search.
समाज

जिन देशों में औरत-मर्द को बराबर का अधिकार वो हैं सबसे ज्यादा खुशहाल

Prema Negi
25 July 2019 9:09 AM IST
जिन देशों में औरत-मर्द को बराबर का अधिकार वो हैं सबसे ज्यादा खुशहाल
x

file photo

विज्ञान और विकासवाद के तथ्यों के आधार पर लड़कियाँ और महिलायें, लड़कों और पुरुषों की अपेक्षा शारीरिक और मानसिक तौर पर अधिक मजबूत होती हैं। लडकियां अधिक जीवट वाली होती हैं और कठिन परिस्थितियों को भी अपेक्षाकृत अधिक आसानी से पार करती हैं....

महेंद्र पाण्डेय की रिपोर्ट

पुरुष प्रधान समाज को यह तथ्य समझ पाना थोड़ा कठिन है कि महिलायें विकास का दूसरा नाम हैं। मानवाधिकार, महिला सशक्तीकरण और लैंगिक समानता केवल महिलाओं को ही आगे बढ़ने में मदद नहीं करते, बल्कि पूरी अर्थव्यवस्था और देश को आगे बढ़ने में मदद करते हैं।

हाल में ही बीजेएम ओपन नामक जर्नल में प्रकाशित एक शोधपत्र के अनुसार जिन देशों में महिलाओं को अधिक अधिकार दिए गए हैं और जिन देशों में लैंगिक बराबरी है, उन देशों में लोगों का स्वास्थ्य अधिक अच्छा रहता है और वह देश सतत विकास की तरफ तेजी से बढ़ता है। इस शोधपत्र के लिए दुनिया के 162 देशों के वर्ष 2004 से 2010 तक के आंकड़ों का अध्ययन किया गया है। इसके लिए लैंगिक समानता, स्वास्थ्य और आर्थिक विकास के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया है।

ससे पहले भी लैंगिक समानता पर अनेक शोध किये गए हैं। महिलाओं की भागीदारी बढाने पर किसी भी देश का पर्यावरण विनाश रुक जाते हैं और देश पर्यावरण अनुकूल विकास की तरफ बढ़ता है। जिन देशों में लैंगिक समानता है, वहां शिशु मृत्यु दर कम हो जाती है।

बसे बड़ी बात है की लैंगिक समानता के मामले में जो देश आगे हैं, वही देश हैप्पीनेस इंडेक्स में भी ऊपर हैं, यानि वहां के लोग अधिक खुश हैं। फ़िनलैंड, स्वीडन, नोर्वे, डेनमार्क, नीदरलैंड और आइसलैंड कुछ ऐसे ही देश हैं, जहां पूरी तरह से लैंगिक समानता है और सामाजिक विकास और पर्यावरण के किसी भी इंडेक्स में यही देश सबसे आगे भी रहते हैं।

मारे देश का उदाहरण सबके सामने है। अर्थव्यवस्था बढ़ती जा रही है, पर इससे अधिक अमीरों और गरीबों के बीच खाई बढ़ रही है। लैंगिक समानता इंडेक्स में 126 देशों में हम 95वें स्थान पर हैं, हैप्पीनेस इंडेक्स में 156 देशों में 140वें स्थान पर हैं और पर्यावरण इंडेक्स में 180 देशों में 177वें स्थान पर हैं।

जाहिर है, लाख दावों और नारों के बीच सामाजिक विकास नहीं हो रहा है। स्वास्थ्य सेवाओं का हाल कभी गोरखपुर तो कभी मुजफ्फरपुर खुद ही बयान कर देते हैं। पर्यावरण का हाल तो सभी देख ही रहे हैं।

विज्ञान और विकासवाद के तथ्यों के आधार पर लड़कियाँ और महिलायें, लड़कों और पुरुषों की अपेक्षा शारीरिक और मानसिक तौर पर अधिक मजबूत होती हैं। लडकियां अधिक जीवट वाली होती हैं और कठिन परिस्थितियों को भी अपेक्षाकृत अधिक आसानी से पार करती हैं। पर नए अनुसंधान बताते हैं कि विकासवाद के इस तथ्य को भी हमारा समाज भेदभाव के कारण अब झूठा साबित करने पर तुला है।

बीएमजे ग्लोबल हेल्थ नामक जर्नल के नवीनतम अंक में प्रकाशित एक शोध पत्र के अनुसार लड़कों और लड़कियों में भेदभाव के कारण पांच वर्ष से कम उम्र की लड़कियों का अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाता है। यह भेदभाव इतना गहरा है कि, जीव विज्ञान द्वारा लड़कियों में प्रदत्त मजबूती भी बेकार हो चली है।

स अध्ययन को लन्दन स्थित क्वीन मैरी यूनिवर्सिटी की विशेषज्ञ वलेन्तीना गैल की अगुवाई में एक दल ने किया है। इस दल के अनुसार दुनियाभर में प्राकृतिक कारणों से अभी भी पांच वर्ष से कम उम्र में लड़कों की अधिक मौतें होती हैं, पर यह अंतर गरीब देशों में लगातार कम होता जा रहा है।

प्रोसीडिंग्स ऑफ़ नेशनल अकैडमी ऑफ़ साइंसेज के 8 जनवरी 2018 के अंक में प्रकाशित साउथर्न यूनिवर्सिटी ऑफ़ डेनमार्क की वर्जिनिया ज़रुली के एक शोध पत्र के अनुसार महिलायें और लड़कियां अधिक जीवट वाली और जुझारू होती हैं और यहाँ तक कि प्राकृतिक आपदा के समय भी इनकी मृत्यु दर कम रहती है। प्राकृतिक आपदा के समय भूख, प्यास, स्वास्थ्य पर काबू पाने वाली लड़कियों के साथ हम किस कदर का भेदभाव करते होंगे, इसे एक बार तो सोच कर देखिये।

वम्बर 2018 में येल यूनिवर्सिटी द्वारा प्रकाशित एक अध्ययन में बताया गया था कि अमेरिका की महिलायें जलवायु परिवर्तन का विज्ञान पुरुषों की तुलना में कम समझ पाती हैं, पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों पर पुरुषों से अधिक यकीन करती हैं और यह मानती हैं कि इसका प्रभाव इन तक भी पहुंचेगा।

सके बाद एक दूसरे अध्ययन में दुनियाभर के तापमान बृद्धि के आर्थिक नुकसान के आकलनों से सम्बंधित शोधपत्रों के विश्लेषण से यह तथ्य उभर कर सामने आया कि महिला वैज्ञानिक इन आकलनों को अधिक वास्तविक तरीके से करती हैं और अपने आकलन में अनेक ऐसे नुकसान को भी शामिल करती हैं, जिन्हें पुरुष वैज्ञानिक नजरअंदाज कर देते हैं या फिर इन नुकसानों को समझ नहीं पाते।

बीजेएम ओपन नामक जर्नल में प्रकाशित शोधपत्र के अनुसार जिन देशों में स्वास्थ्य सेवायें जनसंख्या के अनुसार पर्याप्त नहीं हैं, पर लैंगिक समानता के स्तर पर आगे हैं, वहां भी लोग अपेक्षाकृत अधिक स्वस्थ्य रहते हैं। इसका कारण यह है की अधिकतर बीमारियाँ पर्यावरण के विनाश के कारण पनपतीं हैं और जब लैंगिक समानता होती है, तब पर्यावरण का विनाश कम हो जाता है।

हिला समानता का मुद्दा केवल महिलाओं को आगे बढाने का मुद्दा नहीं है बल्कि आर्थिक, सामाजिक, मानवाधिकार, स्वास्थ्य और सतत विकास का मुद्दा है।

Next Story