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अपने पिता को कंधा देते समय बेटों तक के पैर थरथराने लगते हैं, मगर यहां बेटियां ढोल की थाप पर थिरक रही थीं...
नोएडा। पिता की अर्थी के साथ डांस करती बेटियां, सुनकर अजीब सा लगा न। लेकिन यह सच है, गुटखा किंग के नाम से चर्चित प्रसिद्ध उद्योगपति और प्रिंस गुटखा के मालिक हरिभाई लालवानी की अंतिम यात्रा में उनकी चारों बेटियों न न सिर्फ जमकर डांस किया, बल्कि सज—धजकर ढोल—नगाड़ों के साथ अंतिम यात्रा में शामिल अन्य लोग भी थिरकते नजर आए।
65 वर्षीय उद्योगपति हरिभाई लालवानी की ब्रेन स्ट्रोक के कारण शनिवार 11 नवंबर की रात को मौत हो गई थी। हरिभाई लालवानी की शव यात्रा रविवार 12 नवंबर को सुबह नोएडा के सेक्टर-40 स्थित घर से गाजे-बाजे के साथ निकाली गयी और उनकी एक बेटी ने उन्हें मुखाग्नि दी।
अपने पिता को कंधा देते समय बेटों तक के पैर थरथराने लगते हैं, मगर यहां बेटियां ढोल की थाप पर थिरक रही थीं। बेटियों के मुताबिक ऐसा वो इसलिए कर रही थीं, क्योंकि उनके पिता की यही अंतिम इच्छा थी। नोएडा एंट्रेप्रीनिर्योस एसोसिएशन (एनईए) के पूर्व अध्यक्ष रहे 65 वर्षीय हरिभाई लालवानी की शवयात्रा में शामिल रहे लोग कह रहे हैं कि ऐसा लग रहा था जैसे शवयात्रा नहीं किसी शादी का जश्न मनाया जा रहा हो।
हरिभाई के नोएडा के सेक्टर-40 स्थित घर से अंतिम यात्रा निकालने से पहले ढोल—नगाड़े वाले शादी वाले घर की तरह तैयार बैठे थे। हरिभाई की चारों बेटियों ने खुद को मानसिक रूप से तैयार करते हुए एक भी आंसू नहीं बहाया, उल्टा अर्थी को कंधा देते हुए डांस किया।
हरिभाई के मित्र कहते हैं, हमें अपने दोस्त से बिछुड़ने का गम तो था, लेकिन यह उसकी अंतिम इच्छा थी। इसलिए गम को अंदर छिपाए हुए हम शादी जैसे माहौल में निकली शवयात्रा में शामिल रहे।
गौरतलब है कि हरिभाई ने दिल्ली स्थित दरियागंज में एक छोटी सी पान की दुकान से अपने कारोबार की शुरुआत की थी। उनकी मेहनत और लगन का परिणाम था कि पान के खोखे से शुरू हुआ उनका कारोबार मुंबई तक फैल गया।
हरिभाई के रिश्तेदार कहते हैं अपनी जिंदगी अपनी शर्तों के मुताबिक शान से जीते हुए हरिभाई हमेशा कहते थे कि मेरी चार बेटियां हैं, जो बेटों से किसी मायने में कम नहीं हैं। उनकी चारों बेटियां अनीता, दीप्ती, रसिका और यामिनी शादीशुदा हैं।
करीब 20 साल पहले जब वे एनईए के अध्यक्ष थे तो उन्होंने सेक्टर-94 में अंतिम निवास निर्मित करवाया था, जहां पेड़ पौधों के साथ-साथ भक्तिमय संगीत हमेशा बजता रहता। हरिभाई कहते थे, एक दिन सबको अंतिम निवास में ही आना है।
उन्होंने अपने परिजनों और मित्रों से कहा हुआ था कि मेरे मरने पर कोई आंसू नहीं बहाएगा। मेरी इच्छा है कि मेरे मरने का जश्न उसी तरह किया जाना चाहिए, जिस तरह जब कोई बच्चा पैदा होता है तो परिजन खुशियां मनाते हैं। हरिभाई की इच्छा का मान रखा उनकी बेटियों ने।
हरिभाई की बड़ी बेटी अनीता के मुताबिक, उनके पिता की इच्छा थी कि जिस तरह बच्चे के जन्म के समय उत्सवपूर्ण माहौल होता है, ठीक उसी तरह उनकी मौत के बाद अंतिम यात्रा को अंतिम उत्सव की तरह मनाया जाए। मेरे पापा का मानना था कि शायद मौत जिंदगी से भी खूबसूरत होगी, जिसे पाने के लिए जिंदगी को गंवाना पड़ता है। इसीलिए वो चाहते थे कि खूबसूरत मौत से मिलने का उनका सफर इस दुनिया में अंतिम उत्सव के रूप में मनाया जाए।