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राजनीति

भाजपा ने काटा भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाले अपने ही मंत्री सरयू राय का टिकट

Prema Negi
18 Nov 2019 6:19 AM GMT
भाजपा ने काटा भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाले अपने ही मंत्री सरयू राय का टिकट
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चारा घोटाले में स्कूटर से चारा ढोया गया था और झारखंड में हुए कंबल घोटाले में बिजली की रफ्तार से चलते ट्रकों से धागे ढोये गए, सीएजी की रिपोर्ट तब आई थी सामने जब झारखंड में सत्ता पर काबिज बीजेपी की रघुवर दास मना रही थी अपनी चौथी सालगिरह...

जेपी सिंह की रिपोर्ट

जनज्वार, रांची। भाजपा का चाल, चरित्र और चेहरा सचमुच बदल गया है। अब भ्रष्टाचार और सार्वजनिक धन, संसाधनों की लूट भाजपा के लिए ग्राह्य हो गया है, क्योंकि इस लूट के विरुद्ध जो आवाज उठाता है उसी को बाहर का रास्ता दिखा जाता है या ऐसी परिस्थितियां पैदा की जाती हैं कि वह अपमानित होकर स्वयं पार्टी छोड़कर बाहर चला जाय।

सा ही मामला का है, जिन्हें झारखंड में चल रही लूट के खिलाफ आवाज उठाने का खामियाजा उठाना पड़ रहा है और रघुबर सरकार में खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री सरयू राय का टिकट काट दिया गया है। टिकट क्यों काटा गया इसका कारण स्पष्ट नहीं है, लेकिन जो बातें सामने आ रही हैं उनके आधार पर कयास लगाये जा रहे हैं कि चूंकि राय मुख्यमंत्री रघुबर दास के घोर आलोचक रहे हैं, इसीलिए उनका टिकट काट दिया गया है। वह अब मुख्यमंत्री रघुबर दास के खिलाफ स्वतंत्र उम्मीदवार के बतौर चुनावी मैदान में उतरेंगे।

खिर रघुबर दास के आलोचना के पीछे का कारण क्या है, यह पड़ताल का विषय है। सरयू राय पर किसी खास प्रकार के भ्रष्टाचार आरोप नहीं है। वे भाजपा के पुराने कार्यकर्त्ताओं में से एक हैं। उन्होंने राजनीति की यात्रा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् से प्रारंभ की थी। ऐसे में सरयू राय का टिकट कटना गहरी राजनीतिक साजिश की ओर इशारा करता है।

राजनीतिक विश्लेषकों की राय में आज से ढाई साल पहले से राय रघुबर मंत्रिमंडल की बैठकों का बहिष्कार प्रारंभ कर दिया था। इसके बारे में बताया जाता है कि मंत्रिमंडल ने कुछ ऐसे निर्णय लेने प्रारंभ कर दिए थे जो स्थापित विधान के खिलाफ था। सरयू राय के निकटस्थ बताते हैं, इसी बात को लेकर राय ने रघुबर मंत्रिमंडल की बैठकों में जाना छोड़ दिया था।

राय भाजपा के लड़ाकू नेता माने जाते हैं। उन्होंने जदयू और भाजपा को करीब लाने में अहम भूमिका निभाई थी। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से राय के बेहतर ताल्लुकात हैं। चारा घोटाले को उजागर करने में राय ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इस संदर्भ में उनके द्वारा लिखित पुस्तक चारा चोर, खजाना चोर चर्चित रही। साइंस कालेज, पटना के मेधावी छात्र रहे राय 74 के जेपी आंदोलन के प्रमुख नेताओं में शुमार रहे हैं। मधु कोड़ा लूटकांड भी इनकी चर्चित पुस्तक है। मधु कोड़ा द्वारा किए गए घोटालों को उजागर करने में भी उन्होंने बड़ी भूमिका निभाई थी।

राय पर्यावरणविद भी हैं। दामोदर नदी को प्रदूषण मुक्त कराने के लिए उनके प्रयास की सराहना की जाती है। राय संसदीय मामलों के जानकार भी माने जाते हैं। सरयू राय ने 1980 में किसानों को आपूर्ति होने वाले घटिया खाद, बीज तथा नकली कीटनाशकों का वितरण करने वाली शीर्ष सहकारिता संस्थाओं के विरूद्ध भी आवाज उठायी थी। तब उन्होंने किसानों को मुआवजा दिलाने के लिए सफल आंदोलन किया था। सरयू राय ने ही संयुक्त बिहार में अलकतरा घोटाले का भी भंडाफोड़ किया था। इसके अलावा झारखंड के खनन घोटाले को उजागर करने में सरयू राय की अहम भूमिका रही है।

तने घोटालों के पदार्फाश के बाद तो सरयू राय का नाम भ्रष्ट अधिकारियों में खौफ का पर्याय बन गया था। एक ओर राय घोटालेबाजों के खिलाफ लड़ाई लड़ते रहे तो दूसरी ओर रघुवर दास की सरकार ने एक ऐसे अधिकारी को आगे बढ़ाया, जो संयुक्त बिहार में चारा घोटाले से लेकर कई प्रकार के भ्रष्टाचार में संलिप्त रही। राय का इसी बात को लेकर रघुबर दास से मतभेद हुआ। केन्द्रीय नेतृत्व ने इस मामले में रघुबर दास को साथ दिया, जबकि घोटालों को उद्भेदन करने वाले राय की उपेक्षा प्रारंभ की।

बिहार के चारा घोटाला की तरह झारखंड में कम्बल घोटाला हुआ था। इस घोटाले के सामने आने से रघुवर सरकार निशाने पर आ गई थी। एक ट्रक की अधिकतम स्पीड क्या हो सकती है। 20, 25 या फिर 30 किलोमीटर प्रति घंटा। आप इस पर अलग राय रख सकते हैं। संभव है कोई ड्राइवर ट्रक को 40 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से भी चला सकता है, लेकिन 250 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से ट्रक नहीं चल सकता है।

झारखंड सरकार की संस्था झारक्राफ्ट ने कुछ ट्रकों को इसी स्पीड से चलवाया है। उन ट्रकों में ऊनी धागे लदे थे, जिनसे राज्य में कंबलों की बुनाई की जानी थी। झारक्राफ्ट का दावा है कि इन धागों से बने कंबल बुने भी गए और गरीबों में बांटे भी गए। इसकी एवज में सरकार की ओर से करोड़ों का भुगतान भी किया गया, लेकिन सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में इन दावों को फर्जी करार दे दिया था।

स रिपोर्ट ने झारखंड में कंबल घोटाले की पुष्टि कर दी, जिसके बाद इसकी सीबीआई जांच की मांग की गयी थी, लेकिन जांच अभी तक नहीं हुई। इस मामले में रघुवर सरकार कैबिनेट मंत्री सरयू राय ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर कहा थी कि यह घोटाला बहुचर्चित चारा घोटाले की तर्ज पर किया गया था।

गौरतलब है कि चारा घोटाले में स्कूटर से चारा ढोया गया था और झारखंड में हुए इस कंबल घोटाले में बिजली की रफ्तार से चलते ट्रकों से धागे ढोये गए। यह इत्तफाक ही है कि सीएजी की रिपोर्ट तब सामने आई, जब झारखंड में सत्ता पर काबिज बीजेपी की रघुवर दास सरकार अपनी चौथी सालगिरह मनाने की तैयारियों में लगी थी। 28 दिसंबर को इस सरकार की चौथी सालगिरह से ठीक एक दिन पहले सीएजी ने अपनी रिपोर्ट सार्वजनिक की।

27 दिसंबर को विधानसभा के शीतकालीन सत्र का आखिरी दिन था। लिहाजा, सीएजी की यह चर्चित रिपोर्ट उसी दिन सदन के पटल पर भी रखी गई। अव्वल तो यह कि सीएजी रिपोर्ट के हवाले से यहां हुए कंबल घोटाले की खबर जिन अखबारों में छपी, सरकार ने उन्हीं अखबारों के पहले पन्ने पर भ्रष्टाचार मुक्त शासन के अपने दावे से संबंधित विज्ञापन भी प्रकाशित करवाए थे। सीएजी ने कंबल घोटाले के साथ ही कुछ और गड़बड़ियां भी पकड़ी हैं, जिनसे राज्य में हुई वित्तीय अनियमितताओं और अपव्यय की पुष्टि होती है।

रकार ने इस गड़बड़ी के उजागर होने से पहले ही 28 सदस्यीय समिति बनाकर इसकी जांच के आदेश दे दिए थे, लेकिन अभी तक इसकी रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की गई है। जांच कमेटी बनने के कुछ ही दिन बाद झारक्राफ्ट के तत्कालीन प्रबंध निदेशक (एमडी) मंजूनाथ ने इन गड़बड़ियों की मुख्य आरोपी तत्कालीन सीईओ रेणु गोपीनाथ परिक्कर का अधिकार सीज कर दिया था। इसके बाद परिक्कर ने मंजूनाथ भजंत्रि के पूर्ववर्ती एमडी के रवि कुमार पर कई संगीन आरोप लगाते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया था।

ब वरिष्ठ आईएएस अधिकारी के. रवि कुमार (वर्तमान उद्योग सचिव) ने परिक्कर के खिलाफ मानहानि का मामला दर्ज करवा दिया, लेकिन सरकार ने उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की। इस मामले में उद्योग सचिव का तर्क है कि अभी इस मामले की जांच चल रही है, ऐसे में इस दौरान कोई कार्रवाई कैसे की जा सकती है। हमें जांच पूरी होने तक इंतजार करना चाहिए।

गौरतलब है कि झारखंड सरकार ने साल 2017-18 के दौरान गरीबों के बीच बांटने के लिए करीब 10 लाख कंबल बनाने का जिम्मा झारक्राफ्ट को सौंपा था। तब मुख्यमंत्री रघुवर दास ने कहा था कि हर साल यह काम टेंडर कर निजी कंपनियों को दिया जाता था लेकिन इस बार हम लोग कंबल बुनाई का काम राज्य की सखि मंडलों और बुनकर समितियों को देंगे, ताकि वे आर्थिक तौर पर मजबूत हो सकें। यह काम झारक्राफ्ट के जरिये होगा। सरकार इन कंबलों को खरीदेगी और इन्हें गरीबों में बांटा जाएगा। लिहाजा, इसके लिए टेंडर की जरूरत नहीं। इसके बाद झारक्राफ्ट ने कंबल बुनाई के लिए पानीपत से 18.81 लाख किलो ऊनी धागा ट्रकों से मंगाने और उसकी बुनाई के बाद फिनिशिंग टच के लिए कंबलों को पानीपत भेजने के लिए कुछ कंपनियों से करार किया।

जी की रिपोर्ट कहती है कि झारक्राफ्ट ने जिन ट्रकों से धागा मंगवाने और फिर उन्हें फिनिशिंग के लिए पानीपत भेजने का दावा किया है, वे जांच में फर्जी पाए गये। एजी ने इन ट्रकों के पानीपत से झारखंड आने के दौरान विभिन्न टोल प्लाजा से उनके गुजरने के दावे का जब एनएचएआई (नेशनल हाईवे अथॉरिटी आफ इंडिया) के दस्तावेजों से मिलान किया, तो वे दावे फर्जी पाए गए। दरअसल, उन तारीखों पर वे ट्रक इन टोल प्लाजा से गुजरे ही नहीं। झारक्राफ्ट ने 144 ट्रकों के 320 फेरे लगाने का तारीखवार दस्तावेज सौंपा था। इनमें से 318 ट्रिप फर्जी पाए गए।

पानीपत से 19.93 लाख किलो ऊनी धागा मंगवाने के दावे की जांच के क्रम में एजी ने पाया कि इनमें से 18.81 लाख किलो धागा मंगाया ही नहीं गया और इसके एवज में करीब 14 करोड़ का भुगतान कर दिया गया। ऐसे कुछ और भुगतान भी फर्जी दस्तावेजों के आधार पर किए गए। एक-एक सखि मंडल से एक दिन में तीन-तीन लाख पीस कंबलों की बुनाई के दावे किए गए, जो संभव ही नहीं थे।

पानीपत से झारखंड आने के क्रम में कुछ वैसे ट्रकों का जिक्र है, जिन्होंने यह दूरी सिर्फ 24 घंटे या उससे भी कम समय में तय कर ली। इसी तरह कुछ ट्रकों ने एक ही वक्त पर दो अलग-अलग रूटों पर सफर किया। आडिट में यह गड़बड़ी भी पकड़ी गई, क्योंकि उस स्पीड पर ट्रक का चलना संभव ही नहीं।

रअसल झारक्राफ्ट ने एनुअल वूलन मिल्स और उन्नति इंटरनेशनल नामक कंपनियों से धागे की सप्लाई और हरियाणा की ही ट्रांसपोर्ट कंपनियों से माल ढुलाई के लिए ट्रकों का करार किया था। इस कंपनी ने एक ही नंबर के ट्रक को एक ही वक्त में दो अलग-अलग रूटों में चलना दिखाया। ऐसा तभी संभव होता जब कोई ट्रक 250 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से चले। इस तरह की कई और गड़बड़ियां भी की गई हैं।

ब जरा रेणु परिक्कर के बारे में जान लीजिए। मूलत: केरल की रहने वाली रेणु परिक्कर को रघुवर दास का करीबी माना जाता है। उनकी पढ़ाई-लिखाई जमशेदपुर में हुई है। मुख्यमंत्री का विधानसभा क्षेत्र भी वही है। झारखंड में रघुवर दास के सत्ता में आने के बाद रेणु सक्रिय हो गईं थी और सरकार ने बगैर वांक्षित योग्यता के उन्हें झारक्राफ्ट का सीईओ बना दिया। इसके साथ ही उन्हें लघु उद्यमी बोर्ड का सदस्य भी बना दिया गया था। कहा यह जाता है कि वह बीजेपी की सदस्य भी हैं और उनकी नियुक्ति के लिए राजनीतिक लॉबी काम कर रही थी।

स प्रकार जब रघुबर-सरयू के बीच के जंग को गहराई से देखते हैं तो उसमें भी घोटाले, घपले और भष्टाचार ही महत्वपूर्ण कारण दिखता है। हो सकता है राय भी किसी मामले में अनियमितता किए हों, लेकिन राय की चरित्र बगावती रहा है। अपनी प्रकृति के अनुरूप उन्होंने रघुबर के खिलाफ भी मोर्चा खोला और परिणाम यह रहा कि लाख उपयुक्त रहने के बाद भी उनका टिकट काट दिया गया। राय अब पार्टी से बगावत कर चुके हैं।

वे मुख्यमंत्री रघुबर के खिलाफ मैदान में उतरने के मूड में हैं। सदा की तरह इस बार इस लड़ाई में राय जीतते हैं या रघुबर यह तो समय बताएगा, लेकिन राय सदा की तरह इस बार भी जंग का ऐलान कर दिया है।

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