कश्मीर में मर रहे लोगों को मृत्यु प्रमाणपत्र नहीं दे रही सरकार
कश्मीरी परिवारों का कहना है कि क्षेत्र में स्वायत्तता हटाने के फैसले की भारत की घोषणा के बाद से सुरक्षा बलों और प्रदर्शकारियों के बीच झड़पों में कई नागरिकों की मौत हुई है, हालांकि सरकार का आधिकारिक रुख़ यही है कि अब तक कोई मौत नहीं हुई...
ज़ुबैर सोफी और ऐडम इथनॉल की रिपोर्ट
कश्मीर में पुलिस अधिकारी फख्र से कहते हैं कि नरेन्द्र मोदी के कश्मीर का विशेष दर्जा हटाने के फैसले से 'एक भी मौत नहीं हुई'। पर ज़मीनी हकीकत शीशे की तरह साफ़ है।
कश्मीर में परिवारों का कहना है कि क्षेत्र में स्वायत्तता हटाने के फैसले की भारत की घोषणा के बाद से सुरक्षा बलों और प्रदर्शकारियों के बीच झड़पों में कई नागरिकों की मौत हुई है, हालांकि सरकार का आधिकारिक रुख़ यही है कि अब तक कोई मौत नहीं हुई।
भारत ने अशांत जम्मू एवं कश्मीर क्षेत्र में नरेन्द्र मोदी सरकार के राज्य को दो हिस्सों में बांटने और इसके विशेष संवैधानिक दर्जे को समाप्त करने के फैसले के बाद यानी 5 अगस्त से अभूतपूर्व सैन्य घेराबंदी की हुई है।
सड़क नेटवर्क और संचार के सभी साधनों के लगभग पूर्ण बंद होने के बावजूद समूचे राज्य से छोटे पैमाने पर विरोध प्रदर्शन होने की प्रत्यक्षदर्शी रिपोर्टें सामने आई हैं, जिनमें तीन नागरिकों की मौत हुई है, जो उनके परिवारों के हिसाब से सुरक्षा बलों के आंसू गैस, मिर्च पावडर छिड़कने, शॉटगन पैलेट और अन्य तरीके इस्तेमाल करती कार्यवाहियों के नतीजतन हुआ है।
प्रतिबंध लागू करने के दस दिन बाद प्रदेश के पुलिस प्रमुख दिलबाग सिंह ने शेखी बघारी कि 'कठोर प्रतिबंधों के नतीजतन एक भी मौत नहीं हुई है।' और एक हालिया प्रेस कांफ्रेंस में सरकारी प्रवक्ता रोहित कंसल ने कहा कि उनके पास नागरिकों की मौत की रिपोर्ट नहीं है।
लेकिन क्षेत्र की राजधानी श्रीनगर में 'द इंडिपेंडेंट' से बातचीत में एक डॉक्टर, जो अपनी पहचान ज़ाहिर नहीं होने देना चाहते थे, ने बताया कि अस्पताल के स्टाफ को अधिकारियों से स्पष्ट मौखिक निर्देश मिले हैं कि झड़पों से सम्बंधित भर्तियाँ न्यूनतम रखें और पीड़ितों को तुरंत छुट्टी दें, ताकि आंकड़े कम हों।
और इन तीन मौतों के मामले में झड़पों की भूमिका औपचारिक रूप से स्वीकारने या मृत्यु प्रमाण पत्र जारी करने के लिए डॉक्टरों को मनाने की हताश कोशिशों के बारे में रिश्तेदारों ने बताया।
9 अगस्त की देर दोपहर, दो छोटे बच्चों की माँ, 35 वर्षीय फहमीदा बानो, श्रीनगर के किनारे बेमिना में अपने घर में थीं जब बाहर सुरक्षा बलों और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़पें शुरू हुईं। उनके शौहर 42 वर्षीय रफीक शगू बच्चों को एक कमरे के अन्दर ले गए, क्योंकि वह घबराने लगे थे।
शगू बताते हैं, "प्रदर्शनकारियों को तितर—बितर करने के बाद, सुरक्षा बलों ने घरों पर पत्थर फेंकने शुरू किये और खिड़कियों के शीशे तोड़ने लगे। यदि घर के बाहर पार्क किया कोई वाहन बीच में आ रहा था, तो उसे भी क्षतिग्रस्त किया गया।"
रफ़ीक़ शागू अपनी पत्नी फहमीदा बानो और दो बच्चों की तस्वीर पकड़े हुए। फहमीदा की मौत आंसू गैस की वजह से हुई है। (फोटो क्रेडिट : ज़ुबैर सोफी, 'द इंडिपेंडेंट')
उनकी पत्नी हाथों में चद्दर लेकर ऊपर भागीं, ताकि खिड़कियों को ढंका जा सके। शगू के अनुसार उन्होंने घर के बाहर पुलिस के कम से कम चार आंसू गैस के गोले दागने की आवाज़ सुनी। उनकी पड़ोसी तसलीमा भी उस समय खिड़कियों को ढंकने की कोशिश कर रही थीं, उन्होंने बताया उन्होंने घर को आंसू गैस और मिर्च के धुंए के बादल में ढंकते देखा।
वह बताती हैं, "फहमीदा खिड़की पर थीं जब बड़ी मात्रा में धुंआ खिड़की से उनके घर में घुस गया। मैं उसकी खांसी की आवाज़ सुन पा रही थी।"
उन्हें छाती में दर्द और सांस लेने में दिक्कत की शिकायत होने लगी। शगू बताते हैं, "मैं देख रहा था कि उन्हें सांस लेने में दिक्कत हो रही थी। उन्होंने बड़ी मात्रा में आंसूगैस अन्दर ले लिया था।"
उन्होंने बताया कि उन्होंने पत्नी को अस्पताल ले जाने का फैसला किया, लेकिन इसके लिए उन्हें अपने एक पड़ोसी को मनाना पड़ा, क्योंकि अपनी कार वह झड़पों से सुरक्षित रखने के लिए घर से दूर पार्क कर आये थे।
जब वह एक किलोमीटर दूर स्थित झेलम वैली कॉलेज अस्पताल पहुंचे, बानो के इमरजेंसी वार्ड चार्ट के अनुसार, बड़ी मात्रा में धुआं शरीर के भीतर जाने के कारण उनके फेफड़ों को काफी क्षति पहुंची थी और वह बहुत तकलीफ में थीं। अस्पताल पहुँचने के 40 मिनट में उनकी मौत हो गयी।
चार दिन के बाद शगू पत्नी का मृत्यु प्रमाणपत्र लेने अस्पताल गए, पर मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) ने उन्हें कहा कि प्रमाणपत्र पुलिस के पास था।
काफी मशक्कत के बाद प्रमाणपत्र मिला, एक डॉक्टर और एक मित्र के हस्तक्षेप से। दस्तावेज़ पर, जो द इंडिपेंडेंट को दिखाया गया, मौत का कारण "सडन कार्डियाक पल्मोनरी अरेस्ट" लिखा था।
एकमात्र संकेत कि उनकी मौत गैरकानूनी थी, वह उसके बाद की पंक्ति में था कि मौत का संभावित कारण "विषैली गैस ग्रहण करना?" हो सकता है। प्रमाणपत्र के अनुसार "वास्तविक कारण" पोस्टमार्टम से निर्धारित होना चाहिए, जो परिवार को लगता है कि होगा ही नहीं क्योंकि "यह पुलिस केस नहीं है", ऐसा उन्हें सीएमओ ने बताया।
शगू कहते हैं, "उन्होंने झूठ बोला, उन्होंने टालमटोल की। जब मैंने किसी तरह प्रमाणपत्र हासिल किया, तो इसमें मौत का वास्तविक कारण नहीं लिखा। मैं अपनी पत्नी की मौत का वास्तविक कारण दर्ज नहीं करवा पा रहा हूँ। उन्हें अधिकारियों ने कहा है कि मौतों का रिकॉर्ड साफ़ रखने के लिए मौत के असली कारण को छुपाओ।"
बानो के रिश्तेदारों को कम से कम मृत्यु प्रमाणपत्र मिल गया। लेकिन 55 वर्षीया तीन बेटियों के पिता अयूब खान, जो अपने परिवार के इकलौते कमाने वाल शख्स थे, के मामले में अभी इसका इंतज़ार ही किया जा रहा है।
17 अगस्त को शाम चार बजे श्रीनगर के यारीपोरा में सुरक्षा बलों और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़पें शुरू हुईं। गवाहों के अनुसार बेमिना की ही तरह, प्रदर्शनकारियों को भगाने के बाद सुरक्षा बलों ने क्षेत्र के घरों पर पत्थर फेंकने शुरू किये।
खान घर पर थे जब उन्होंने एक मस्जिद से यह घोषणा सुनी, जिसमें लोगों से घरों के बाहर आने के लिए कहा जा रहा था क्योंकि पुलिस निजी संपत्तियों को नुकसान पहुँचा रही थी।
खान ने अपनी सात वर्षीय बेटी मेहरीन को घर में ही रहने की हिदायत दी और बाहर गए। मुख्य सड़क पर वह अपने एक 60 वर्षीय मित्र फ़याज़ अहमद खान से मिले।
उनके दोस्त ने बताया, "हम दोनों खड़े थे जब सुरक्षा बलों ने आंसू गैस गोले फेंकने शुरू किये। दो गोले अयूब के पैरों के बीच फटे और उनका दम घुटने लगा। उन्हें तुरंत श्री महाराजा हरी हॉस्पिटल (एसएमएचएस) ले जाया गया।"
खान के भाई शबीर बताते हैं कि अस्पताल ले जाते समय ऑटो में जब अयूब उनकी गोद में लेटे थे तो उन्होंने अयूब के मुंह से खून निकलते देखा था।
उन्होंने बताया, "जब हम अस्पताल पहुंचे, डॉक्टरों ने बताया कि उनकी मौत हो चुकी थी। हमने उन्हें कहा कि रिकॉर्ड में दर्ज किया जाए कि उनकी मौत आंसू-गैस से हुई है, पर उन्होंने इनकार कर दिया।"
खान की मौत पर बवाल मचने की आशंका से पुलिस ने परिवार को आदेश दिया कि अंतिम यात्रा जुलूस न निकला जाए और अंत्येष्टि में 10 से ज्यादा लोग शरीक न हों।"
एम्बुलेंस में शव घर ले जाने के बाद भी सुरक्षा बलों ने घर के बाहर जमा भीड़ को तितर बितर करने के लिए शॉटगन पैलेट से फायरिंग की जिसमें शबीर और परिवार के अन्य सदस्य घायल हुए।
कुछ दिनों बाद, परिवार ने अस्पताल से मृत्यु प्रमाणपत्र के लिए संपर्क किया, तो डॉक्टरों ने उन्हें कहा कि पहले उन्हें पुलिस से एफआईआर लानी होगी, जो कि परिवार के अनुसार ऐसे माहौल में असंभव-सा कार्य है।
शबीर कहते हैं, "यह साफ है कि पुलिस के खिलाफ किसी भी मामले में, वह मौत का वास्तविक कारण नहीं दर्शाएंगे। यह अन्याय है, हम मौतों को दर्ज नहीं कर पा रहे हैं। हम बेबस हैं।"
वर्तमान कश्मीर संकट में पहली मौत हालांकि 5 अगस्त को ही हुई थी। 17 वर्षीय ओसैब अल्ताफ के परिजनों और दोस्तों के अनुसार सुरक्षाकर्मी उत्तर पश्चिम श्रीनगर में प्रदर्शनकारियों का पीछा कर रहे थे, जब कासिब ने झेलम नदी में छलांग लगा दी।
अल्ताफ अहमद मराज़ी अपने 17 साल के बेटे ओसैब अल्ताफ की तस्वीर पकड़े हुए, जिनकी मौत 5 अगस्त को सुरक्षाबलों से बचते वक़्त नदी में गिरने से हुई (फोटो क्रेडिट : ज़ुबैर सोफी, 'द इंडिपेंडेंट')
बातचीत में एक दोस्त, जिसने खुद की पहचान केवल "एस" के रूप में बतायी, ने कहा ओसैब और अन्य दोस्त पुल पर दोनों तरफ से पुलिस के आने से फंस गए थे। एस के अनुसार, "ओसैब को तैरना नहीं आता था। जब हमने छलांग लगाई, मैंने उसे अपनी पीठ पर लेने का फैसला किया, लेकिन एक सैन्यकर्मी ने आकर एक डंडा उसके हाथ पर मारा।"
ओसैब को एसएमएचएस अस्पताल ले जाया गया, पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी। उसके पिता अल्ताफ अहमद मराज़ी ने बताया कि न सिर्फ डॉक्टरों ने उन्हें उनके बेटे का मृत्यु प्रमाणपत्र नहीं दिया, बल्कि उसे भर्ती किया गया था इसकी पुष्टि करते दस्तावेज़ भी नहीं दिए।"
वह कहते हैं, "डॉक्टरों पर दबाव है कि मृत्यु प्रमाणपत्र न दिए जाएँ। भारत दावा करता है कि कश्मीर में हालात सामान्य हैं, जो सच नहीं है। यदि वह संचारबंदी उठाएंगे तो सच सामने आयेगा।"
कश्मीर में 5 अगस्त से अब तक भारत सरकार की घायलों और मौतों की संख्या के बारे में पूछने की कोशिश की गयी तो दिल्ली में अधिकारी टिप्पणी के लिए उपलब्ध नहीं हो पाए।
श्रीनगर में पुलिस अधिकारी कहते हैं कि वह ऐसी किसी मौतों का सही आंकड़ा नहीं बता सकते, पर द इंडिपेंडेंट के बताये मामलों की जांच कर रहे हैं।
बानो का इलाज जिस जेवीसी अस्पताल में हुआ, उसके मुख्य चिकित्सा अधिकारी ने अपने डॉक्टरों के व्यवहार का यह कहते हुए बचाव किया कि जब तक यह निश्चित तौर पर सिद्ध नहीं होता वह आंसू गैस को मौत का कारण नहीं लिख सकते। "प्रमाणपत्र पर 'सवालिया निशान' लिखा है जिसका मतलब है 'हो सकता है'। हमने मौत का वास्तविक कारण नहीं दर्शाया है", डॉक्टर ने कहा।
20 दिन से ज़्यादा हो गए जब कश्मीर में असाधारण पाबंदियां लगाई गयीं, अधिकारी कहते हैं कि उन्हें लगता है कि घाटी में स्थिति "सामान्य होने लगी है", वह यह भी कहते हैं कि संचारबंदी कब समाप्त होगी उस बारे में वह टिप्पणी नहीं कर सकते, पर यह ज़रूर कहते हैं कि ऐसा उन्हें 'निकट भविष्य में' होता दिखाई नहीं देता।
(ज़ुबैर सोफी व ऐडम इथनॉल की 'इंडीपेंडेंट, यू.के' में 26 अगस्त को छपी इस रिपोर्ट का 'कश्मीर ख़बर' द्वारा अनुवाद किया गया है।)