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आंदोलन

क्यों बनाती हो ऐसे ब्वॉयफ्रेंड जो हिंदू-मुसलमान करता है — रवीश कुमार

Janjwar Team
19 March 2018 4:59 PM GMT
क्यों बनाती हो ऐसे ब्वॉयफ्रेंड जो हिंदू-मुसलमान करता है — रवीश कुमार
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जिन लड़कों को बॉयफ़्रेंड बनाने को हैबिटेट सेंटर में वो मना कर रहे थे, जो लड़के पिछले चार सालों से उन्हें ट्रोल कर रहे थे, जो मेट्रो में गालियाँ दिया करते थे। सब माफ़ी माँग रहे थे। क़रीब 100-150 फ़ोन आए कि हम आज से न ही ख़ुद हिंदू-मुसलमान करेंगे न ही ऐसा कोई कार्यक्रम TV पर देखेंगे और न ही ऐसे किसी मेसेज को आगे शेयर करेंगे...

कल एल लम्बा लेख पढ़ा, जो किसी सज्जन ने Ravish Kumar के ख़िलाफ़ लिखा था।

कांग्रेस गवर्नमेंट के समय शायद, एक बार रवीश जी ने कहा था, कि हैदर साहब मुझे मेरे जैसे चार पत्रकार और मिल जाएँ तो सरकारों को लाइन पर ले आएँगे हम लोग। लेकिन मेरी कहानी उसके काफ़ी बाद से शुरू होती है।

2015 के बुक फ़ेयर में जब रवीश कुमार मिले तो काफ़ी ख़ुश थे। पार्किंग की दिक़्क़त पर चर्चा होते समय उन्होंने बताया कि मैं तो इसीलिए मेट्रो पकड़ कर आ गया। उसके दो-तीन दिन बाद जब बात हुई तो तो वो आश्चर्यचकित थे। उन्होंने बताया कि उस रोज़ मेट्रो से लौटते समय मेट्रो में लोगों ने उन्हें बुरा-भला कहा, अपशब्द बोले और मेट्रो से सफ़र करने को केजरीवाल जैसा प्रपंच बोला।

मुझे यक़ीन नहीं हुआ, कि दिल्ली इतना बे मुरव्वत कैसे हो सकता है। धीरे-धीरे रवीश के ख़िलाफ़ लोग मुखर होते गए और रवीश के स्वभाव में मुझे पहले जैसा जोश कम दिखने लगा। अब उस पुरानी ऊर्जा की जगह चेहरे पर एक अजब सी बेचैनी और चिंता दिखा करती थी। ये वही समय था जब उनको इतना अधिक बुखार हो चुका था कि होंठ तक पक गए थे। हमें काफ़ी चिंता हुई और किसी बहाने से मैं और मेरी पत्नी उनसे मिलने उनके घर पहुँचे। अब चिंता और बेचैनी की जगह एक शांति थी। उस दिन वो जो बातें कर रहे थे उससे वो आश्चर्यचकित नहीं थे, वो आश्वस्त थे कि ऐसा ही होगा अब। उन्होंने बताया कि डिपार्टमेंटल स्टोर पर जब वो बिल करवाने पहुँचे तो उनका चेहरा देखकर दुकान मालिक ने उनका सौदा वापस ले लिया और कहा हम देशद्रोहियों को सामान नहीं देते हैं।

ये वही वक़्त था जब देश में यह बहस चल रही थी कि देश में असहिष्णुता बढ़ी है या फिर ये सिर्फ़ हैशटैग द्वारा फैलाया हुआ भ्रम है। रवीश शांत भाव से बैठे हुए कह रहे थे, हैदर जी अब मुझे शांति चाहिए। घर बाहर भरा-भरा लगता है ये सोफ़ा कुर्सी सब बेच रहा हूं। मुझे सब खुला-खुला चाहिए, सामान बर्दाश्त नहीं होता।

इसके बाद रवीश कुमार से एक लम्बे अरसे तक कोई ख़ास मुलाक़ात नहीं हो पाई। कभी किसी समारोह में मिल गए हाय हेलो हो गयी बस। हालाँकि माहौल की ख़बर हमारे पास मौजूद थी। फिर कई बातें आयीं जैसे NDTV बंद हो जाएगा। या जब रवीश कुमार छुट्टी पर गए तो एक अफ़वाह उड़ी की रवीश को NDTV ने निकाल दिया है, या फिर NDTV पर सरकार ने इतने केस कर दिए हैं कि अब ये चैनल सर्वाइव नहीं कर पाएगा। चिंता तो हुई लेकिन पूछने की हिम्मत नहीं हुई।

फिर एक दिन फ़ेसबुक पर देखा एक छोटा सा प्रोग्राम है हैबिटेट सेंटर में, जहाँ रवीश कुमार बोलने वाले हैं। जाने मुझे क्या हुआ कि बिना किसी इंविटेशन पहुँच गया वहाँ। और अच्छा हुआ पहुँच गया। वहाँ मैंने जिस रवीश कुमार को देखा ये वही रवीश थे जो रवीश की रिपोर्ट में दिखायी दिया करते थे। किसी ने NDTV बंद होने पर या उनकी नौकरी जाने पर सवाल पूछ लिया। रवीश ने पूरे विश्वास से कहा, कि जो काम करता हूंँ अच्छा करता हूंँ, और वही काम मुझे आता है। चैनल नहीं होगा तो ऑटो के ऊपर लाउडस्पीकर लगाकर पूरी दिल्ली में घूम-घूम कर जनता तक अपनी ख़बरें पहचाऊँगा। चैनल बैन हो जाएगा ऑटो थोड़ी। वहाँ बैठी लड़कियों को उन्होंने डाँटा कि क्यूँ घूमती हो ऐसे लड़कों के साथ जो हिंदू-मुसलमान करता है। मत बनाओ ऐसे बॉयफ़्रेंड। एक अलग उत्साह था रवीश में, जैसे उन्होंने कमर कस ली हो।

अभी जब पिछले हफ़्ते उनसे बात हुई तो बहुत उत्साह था उनकी आवाज़ में। जिन लड़कों को बॉयफ़्रेंड बनाने को हैबिटेट सेंटर में वो मना कर रहे थे, जो लड़के पिछले चार सालों से उन्हें ट्रोल कर रहे थे, जो मेट्रो में गालियाँ दिया करते थे। सब माफ़ी माँग रहे थे। क़रीब 100-150 फ़ोन आए कि हम आज से न ही ख़ुद हिंदू-मुसलमान करेंगे न ही ऐसा कोई कार्यक्रम TV पर देखेंगे और न ही ऐसे किसी मेसेज को आगे शेयर करेंगे।

रवीश ने कहा ऐसे नहीं मानूँगा, यदि वास्तव में पश्चाताप है तो 200 रुपए के स्टांप पेपर पर अपने हाथ से माफ़ी नाम लिख कर भेजो। आज NDTV के दफ़्तर में ऐसे माफ़ीनामों का एक गटठर इकट्ठा हो चुका है। दस हज़ार से ज़्यादा माफ़ी नामे हैं और उनके फ़ोन और मेल के इन्बाक्स में सैंकड़ों ऑडीओ फ़ाइल्ज़ जिनमे लड़कों ने हिंदू-मुसलमान न करने की शपथ ली है।

रवीश कुमार का यह तीन साढे तीन साल का सफ़र मेरे नज़रिए से लिखना ज़रूरी लगा मुझे। क्यूँकि मैंने अपने सामने किसी को इस तरह देश-समाज से अकेले संघर्ष करते देखा था, और अगर इसको स्क्रिप्ट न करता तो यह अन्याय होता अगली पीढ़ी के उन पत्रकारों के साथ जो कुछ कर गुज़रने का सपना रखेंगे। मेरा अपना मानना है कि शायद रवीश कुमार को लोगों द्वारा इतने गंदे विरोध और बदतमीजियों की आशा नहीं थी लेकिन जब ऐसा हुआ तो उनके अंदर उससे लड़ने का जज़्बा और ज़्यादा जोश मार गया। ग़ालिब ने कहा है न-

रंज से खूंगर हुआ इंसाँ, तो मिट जाता है रंज /मुश्किलें इतनी पड़ीं, कि ख़ुद ही आसाँ हो गयीं...

(यह लेख हैदर रिजवी की वाल से)

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