मजदूरों के हक में मैदान में उतरीं पहाड़ के उद्योगों की लाल सिपाही महिलाएं
हमें कहा गया कि आप महिलाओं को डीएम साहब से मिलने की कोई वजह नहीं, क्योंकि काम तो आपके पति करते हैं, पर महिलायें जिद करके डीएम से मिलीं....
उमेश चंदोला की रिपोर्ट
रुद्रपुर, जनज्वार। चाहे गुजरात अंबुजा के मजदूर परिवारों की महिलाएं हो या इन्टार्क के मजदूर परिवार की महिला कर्मचारी या फिर डेल्टा कंपनी रामनगर की मजदूर श्रमिक आजकल उद्योगपतियों के खिलाफ शासन-प्रशासासन, श्रम विभाग, न्यायालय के गठजोड़ के खिलाफ कमर कसकर मैदान में धरना, प्रदर्शन, जुलूस कर रही हैं।
23 सितंम्बर को भी अम्बेडकर पार्क, रूद्रपुर में लगभग 1100 इन्टार्क के मजदूरों के साथ अपने छोटे-छोटे बच्चों के साथ 300 महिलायें भी शामिल थीं। सभी ने जोरदार तरीके से इस धरना—प्रदर्शन में शिरकत की। 5 घंटे तक चली इस सभा के बाद बेहद अनुशासित तरीके से शहर में जुलूस निकाला गया।
मनोवैज्ञानिक दबाब डालने के लिए पुलिस ने आंदोलनरत मजदूरों से जुलूस की अनुमति न होने की बात कही। पर छोटे-छोटे बच्चों, महिलाओं और मजदूरों के जोश को देखते हुए टाटा, ब्रिटानियां, नेस्ले जैसे पूंजीपतियों के साम्राज्य की रक्षा में उतरी पुलिस के भी होश ठिकाने आ गये।
इस आंदोलन में सिडकुल संयुक्त मोर्चा की तरफ से भी कई यूनियन नेताओं ने आकर समर्थन दिया। इन्टार्क के आन्दोलन में बेहद सक्रिय इंकलाबी मजदूर केन्द्र के होने से मजदूरों में राजनीतिक शिक्षा भी ठीक तरह संपन्न हो रही है।
आंदोलन का नेतृत्व कर रहे मजदूर नेताओं और वक्ताओं ने कहा कि किस प्रकार पूरी कार्यपालिका, न्यायपालिका, विधायिका यानी पुलिस, अदालतें एवं मीडिया पूंजीपतियों के पक्ष में खड़ा है। कैसे मारूती मजदूरों के मामले में चंड़ीगढ़ हाईकोर्ट के जज ने कहा था ‘मारूती मजदूरों को जमानत दे दी जो कि 90 दिन चार्जशीट न पेश होने पर कानूनन मिल जाती है, तो विदेशी निवेश प्रभावित होगा।
मजदूर नेताओं ने बताया की कैसे रूस में इसीलिए 1917 में पूरी राज्य व्यवस्था, पुलिस, फौज, न्यायालय को बदला गया। जैसे न्यायालयों में खुद आम मजदूर किसानों को शुरू में सहायक जज बनाया जाता था। फिर पूर्णकालिक जज का काम सौंपा जाता था। अतः इसके लिए इस पूंजीवादी व्यवस्था को बदलकर रूस की तरह समाजवाद लाए बिना इस रोग को जड़ से खत्म नहीं किया जा सकता।
एक महिला ने बताया कि हमें कहा गया कि आप महिलाओं को डीएम साहब से मिलने की कोई वजह नहीं, क्योंकि काम तो आपके पति करते हैं, पर महिलायें जिद करके डीएम से मिलीं। महिलाओं ने अपने पतियों और मजदूर भाइयों के लिए धरने में बढ़—चढ़कर हिस्सेदारी की।
धरने में शामिल महिलाएं कहती हैं हमें उस समय बहुत गुस्सा आया और खुद को अपमानित महसूस किया जब पूंजीपतियों ने टुकड़खोर श्रम विभाग के अफसरों के इशारे पर श्रम विभाग के शौचालय में ताले जड़ दिए। इस अपमान का बदला भी बाद में महिलाओं ने डीएम से लिया। डीएम से महिलाओं ने जिस तरह से बात की शायद उस तरीके से कोई मंत्री भी नहीं कर पाता।
इंकलाबी मजदूर केन्द्र के कैलाश भटट ने कहा कि अब महिलाओं की अगली योजना विधायक का घेराव करने की है। ऐसा लगता है जैसे एक द्रौपदी का अपमान सौ कौरवों के नाश का कारण बना, वैसे ही ‘राम-राज्य’ का वादा करने वाली धृतराष्टशासित भाजपा सरकारें आने वाले समय में मजदूरों को अर्थवाद से कहीं आगे ‘राजनीतिक चेतना’ से संपन्न करवा देगीं।
भगत सिंह के विचार साल दर साल मजदूरों के सामने ऐसे ही नहीं आ रहे हैं। ‘काले अंग्रेज’ दरअसल पिछले 70 सालों से वैचारिक बम को फटने से बचाने की योजना बना रहे थे, पर विचारों को जनता की चेतना खुद जिंदा रखती है।