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उत्तराखंड की इकलौती सरकारी दवा कंपनी को प्राइवेट हाथों में बेच रही मोदी सरकार

Janjwar Team
27 Dec 2017 11:49 AM GMT
उत्तराखंड की इकलौती सरकारी दवा कंपनी को प्राइवेट हाथों में बेच रही मोदी सरकार
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चाटुकार बुद्धिजीवियों ने देश की जनता के बीच कुत्सा प्रचार करके सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के खिलाफ माहौल किया तैयार , उत्तराखंड में यही है केंद्र की इकलौती सरकारी दवा कंपनी

उत्तराखंड से मुनीष कुमार की रिपोर्ट

भारत सरकार ने उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के मोहान गांव में स्थित आयुर्वेदिक दवा कारखाने इंडियन मेडिसिन फर्मास्युटिकल कार्पोरेशन लिमिटेड (आई.एम.पी.सी.एल) को निजी हाथों में बेचने की घोषणा कर दी है। सरकार ने आई.एम.पी.सी.एल को उन 34 बीमार कम्पनियों में शामिल है जिनकी नीति आयोग ने विनिवेश करने की भारत सरकार से सिफारिश की है।

नीति आयाग के सीइओ अमिताभकांत ने विगत 26 अक्टूबर को बताया कि पब्लिक सेक्टर की 34 कम्पनियों के विनिवेश के द्वारा सरकार 72500 करोड़ रु इकट्ठा करेगी। इन 72500 करोड़ रु. की राशि में 46500 करोड़ रु. माइनाॅरिटी स्टेक सेल के द्वारा, 11000 करोड़ रु. लिस्टिंग आॅफ पीएसयू इन्श्यूरेंस कम्पनी के द्वारा तथा 15000 करोड़ रु. स्ट्रेटेजिक डिसइन्वेस्ट के द्वारा जुटाए जाऐंगे। आई.एम.पी.सी.एल कोे स्ट्रेटेजिक डिसइन्वेस्ट के तहत पूर्णतः 100 प्रतिशत निजी हाथों में बेचा जाऐगा।

आई.एम.पी.सी.एल भारत सरकार की मिनी नवरत्न कम्पनियों में शुमार रही है। नैनीताल-अल्मोड़ा जिले की सीमा पर स्थित इस कारखाने की विशेष महत्ता है। इस कारखाने के पास 100 साल की लीज पर 40.3 एकड़ जमीन समतल जमीन है। जिसमें कारखाने के साथ स्टेट बैंक की शाखा, कुमाऊं मण्डल विकास निगम का रिर्जोट भी लगा हुआ है। आई.एम.पी.सी.एल की ही 4.6 एकड़ भूमि नैनीताल जिले के रामनगर शहर में भी है।

नीति आयोग की सिफारिशों अनुरुप सरकार के निवेश और लोक परिसम्पति प्रबन्धन विभाग (डी.आई.पी.ए.एम) ने आई.एम.पी.सी.एल को बेचने के लिए विगत् 16 नवम्बर को 11 सदस्यी कमेटी गठित कर दी है।

इस कमेटी ने कारखाने की 40.3 एकड़ भमि व रामनगर, की 4.6 एकड़ भूमि भवन, मशीनें व अन्य सामग्री की कीमत आंकने के लिए टेन्डर भी जारी कर दिए हैं। जो कि 15 जनवरी को दिल्ली स्थित आयुष भवन में खाले जाऐगे। भूमि,भवन मशीनों आदि की बाजार दर पर कीमत के निर्घारण के बाद कारखाने को निजी हाथों में बेच दिया जाऐगा।

आई.एम.पी.सी.एल के 98.11 प्रतिशत शेयर केन्द्र सरकार के अधीन आयुष मंत्रालय के पास हैं तथा 1.89 प्रतिशत शेयर राज्य सरकार के अधीन कुमाऊं मण्डल विकास निगम के पास है।

आयुष मंत्रालय द्वारा 20 दिसम्बर को जारी निविदा में आई.एम.पी.सी.एल की सम्पत्ति का कुल मूल्य 58.79 करोड़ रु. तथा कम्पनी का वार्षिक टर्नओवर 66.45 करोड़ रु बताया गया है। आई.एम.पी.सी.एल में 120 नियमित कर्मचारी/श्रमिक हैं जिसमें से मैनेजमेंट के अधिकारियों की संख्या 21 है। 200 से अधिक ठेका श्रमिक भी कारखाने में काम करते हैं।

कारखाने की भूमि पर लगे कुमाऊं मंडल विकास निगम के रिजोर्ट में नियमित व अनियमित कर्मचारियों की संख्या लगभग 1 दर्जन है। पहाड़ी क्षेत्र में लगे इस कारखाने से वहां के कर्मचारियों को ही नहीं बल्कि आसपास की स्थानीय आबादी को भी रोजगार मिलता है। गोबर के कंडे, गौ मूत्र व जड़ीबूटियां आदि सप्लाई करके स्थानीय व आसपास की आबादी की जीविका भी इस कारखाने से चलती है।

अल्मोड़ा जिला का नाम वर्ष 2011 की जनगणना में नकारात्मक जनसंख्या वृद्धि दर वाले जिले के रुप में दर्ज है। आई.एम.पी.सी.एल के विनिवेशीकरण से क्षेत्रीय जनता के बीच में रोजगार का संकट और भी ज्यादा गहराएगा जो कि पहाड़ों से पलायन को बढाने वाला ही साबित होगा। पलायन रोकने के लिए राज्य सरकार की वचनबद्धता कोरा ढोंग बनकर रह गयी है।

आई.एम.पी.सी.एल पर बाबा रामदेव नजर लगी हुयी है। इसकी खरीद में वे सबसे आगे बताए जा रहे हैं। पिछले दिनों उत्तराखंड सरकार उन्हें प्रदेश में जड़ीबूटियों के दाम तय करने का अधिकार दे चुकी है उसके बाद से ही इस बात का आकलन लगने लगा था कि देर-सवेर रामदेव इस कारखाने को भी हथियाने की कोशिश करेंगे।

बताया जा रहा है कि जानबूझकर बाबा रामदेव को फायदा पहुंचानें के लिए भारत सरकार की इस मिनी नवरत्न कम्पनी को एक साजिश के तहत बीमार घोषित किया गया है। अल्मोड़ा जिले के पहाड़ी ढालदार क्षेत्र में 40 एकड़ भूमि का समतल टुकड़ा मिल पाना आसान नहीं है। भूमि के मालिकाने की दृष्टि से भी आई.एम.पी.सी.एल की डील किसी भी पूंजीपति के लिए बेहद बेशकीमती है।

पब्लिक सेक्टर की कम्पनियों का विनिवेश कर निजी हाथों में सौंपा जाना देश में कोई नई बात नहीं है। 1991-92 में भारत के प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव व वित मंत्री मनमोहन सिंह ने देश की अर्थव्यवस्था को जिस उदारीकरण, वैश्वीकरण, निजीकरण की नीति पर धकेला था उसी का परिणाम है कि आज सरकारें जनता के खून-पसीने की कमाई पर खड़े सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को दोनों हाथों से पूंजीपतियों को लुटा रही हैं।

1992 से अब तक दिल्ली की गद्दी पर बैठी सरकारें चाहे वह किसी भी दल की रही हो, सभी ने जनता की सम्पत्तियों को पूंजीपतियों के हाथों बेचने की नीति को आगे बढ़ाने का काम किया है। निवेश और लोक परिसम्पति प्रबन्धन विभाग के अनुसार देश की सरकारों द्वारा 1991-92 से अब तक 300025.92 करोड़ रु.की सार्वजनिक क्षेत्र की सम्पत्ति को निजी हाथों में बेचा जा चुका है।

पिछले 4 वित्तीय वर्षों 2013-13 से 2016-17 तक सरकार पूर्ण विनिवेश अथवा उनके शेयर बेचकर 47 कम्पनियों से 100412 करोड़ रु. जुटा चुकी है। देश के खजाने में जमा हुयी यह राशि जनता के लिए अस्पताल, रोजगार व शिक्षा में खर्च नहीं हुयी है बल्कि इस राशि का उपयोग देश के पूंजीपतियों के कर्ज माफ करने के लिए किया गया है।

देश संसद व विधान सभाओं में मजदूरों कर्मचारियों का कोई भी वास्तविक प्रतिनिधि मौजूद नहीं है। जनता के वोटों के दम पर चुनकर संसद व विधानसभाओं तक पहुंचे चिदम्बरम्-गडकरी जैसे लोग स्वयं पूंजीपति हैं और मोदी-मनमोहन उनके वफादार सेवक हैं। यही कारण है कि सरकार में बैठे लोग जनता की सम्पत्ति को खुलेआम खुर्द-बुर्द करने में लगे है।

सरकारों व उनके चाटुकार बुद्धिजीवियों ने देश की जनता के बीच कुत्सा प्रचार करके देश के सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के खिलाफ माहौल तैयार करने का काम किया है। यही कारण है कि सरकारें एक के बाद एक करके जनता के खून-पसीने की कमाई को लुटा रहीं हैं और जनता खामेश होकर तमाशा देख रही है।

आई.एम.पी.सी.एल के विनिवेश के खिलाफ कारखाने के कर्मचारियों व क्षेत्रीय जनता में आक्रोश पनप रहा है जो कभी भी फूट सकता है। सरकार द्वारा आई.एम.पी.सी.एल कारखाने समेत सार्वजनिक क्षेत्र की सम्पत्तियों का विनिवेश सरकार की खुली डाकेजनी है जिसे कानूनी लबादे से ढंक दिया जा रहा है।

(मुनीष कुमार समाजवादी लोक मंच के सहसंयोजक हैं।)

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