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विमर्श

तो क्या नए भारत का आधार है राम मंदिर!

Prema Negi
10 Nov 2019 5:28 PM GMT
तो क्या नए भारत का आधार है राम मंदिर!
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कुछ भी हो, नए भारत के नीव के अवशेष मिल गए हैं और इस पर एक भव्य मंदिर बनेगा और देश से गरीबी, बेरोजगारी ख़त्म हो जायेगी, किसान खुशहाल हो जायेंगे और अर्थव्यवस्था दुरुस्त...

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

क विशेष दिन और एक विशेष मुहूर्त पर अयोध्या का फैसला आ गया, सरकार और अतिवादी हिन्दू संगठनों की मुंहमांगी मुराद पूरी हो गयी। जो तथ्य और अवशेष कभी नहीं मिले थे, वे सभी मिल गए। प्रधानमंत्री जी ने देश को बड़े धैर्य और शिष्टता से संबोधित कर दिया। अगले किसी चुनाव का इंतज़ार कीजिये, यही शिष्टता तब दूसरी भाषा में नजर आयेगी।

रकारी खुशी छिपाए नहीं छिप रही है, क्योंकि अगल चुनाव जीतना तो तय है। जनता भी यही चाहती है, मंदिर सबसे बड़ा मुद्दा है। मंदिर बनेगा तो देश में गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी, अर्थव्यवस्था, बाढ़ और सूखा जैसी समस्याएं तो “जय श्री राम” हल कर ही देंगे।

प्रधानमंत्री मोदी ने अपने संबोधन का लगभग एक-चौथाई भाग सर्वोच्च न्यायालय के गुणगान में लगाया। लगातार सुनवाई, सभी पक्षों की दलील सुनने और ऐतिहासिक फैसले बी बात बताई गयी। जब सर्वोच्च न्यायालय को किसी एक फैसले पर सरकार के मुखिया से वाहवाही मिलती है, तब क्या यह साबित नहीं होता कि न्यायालयें हरेक मुकदमे में एक जैसी मुस्तैदी नहीं दिखातीं। कम से कम इस फैसले पर वाहवाही से तो यही लगता है।

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा अब नई पीढ़ी को नए भारत के निर्माण में नए सिरे से जुटने की जरूरत है। तो क्या नए भारत का आधार राम मंदिर है, यदि यह मंदिर नहीं बन पाता तब क्या नया भारत भी नहीं बनता। सत्ताधारी और अतिवादी हिन्दू संगठनों के अनेक नेताओं ने फैसला आने के पहले से ही काशी और मथुरा की चर्चा छेड़ दी है, ताजमहल पर पहले से ही नजर थी। क्या प्रधानमंत्री को तथाकथित नए भारत के इन चर्चाओं की खबर नहीं है, या फिर वह इस पर इन संगठनों के उबाल का इंतज़ार कर रहे हैं।

स फैसले से एक और तथ्य स्पष्ट होता है कि समाज में उपद्रव कहाँ से और कौन सा वर्ग शुरू करता है। अभी सारे लोग खुश हैं कि कहीं कोई वारदात नहीं हुए। इसका सीधा सा कारण है कि हिन्दुओं को वह सब कुछ मिल गया जो उन्हें चाहिए था। जाहिर है दूसरे वर्ग को वह नहीं मिला जिसकी उम्मीद थी, हालांकि मीडिया बार-बार यह बताने से नहीं चूक रहा है कि किसी की हार नहीं हुए, किसी की जीत नहीं हुई।

रा कल्पना कीजिये कि इस फैसले को सुरक्षित रख दिया जाता या फिर इसमें थोड़ा बहुत अंतर होता तब भी क्या हालात ऐसे ही रहते? यदि आपको लगता है कि तब हालात निश्चित तौर पर ऐसे नहीं होते तब शायद आप समझ जायेंगे कि दंगों, उपद्रव और सामाजिक समरसता में दरार का काम कौन सा वर्ग शुरू करता है।

सी बहाने सरकार को प्रत्यक्ष तौर पर सबके सोशल मीडिया अकाउंट में ताक-झांक का मौका मिल गया। वैसे तो यह हमेशा ही होता रहा है, पर अभी तो सरकारी तौर पर यह मौका है। उम्मीद है कि ट्विटर जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्म जो देश में सरकारी संरक्षण में पनप रहे हैं, कई अकाउंट को और मैसेज को ब्लाक करने का मौका मिलेगा।

कुछ भी हो, नए भारत के नीव के अवशेष मिल गए हैं और इस पर एक भव्य मंदिर बनेगा और देश से गरीबी, बेरोजगारी ख़त्म हो जायेगी, किसान खुशहाल हो जायेंगे और अर्थव्यवस्था दुरुस्त हो जायेगी।

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