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सिक्योरिटी

वाराणसी में होती थी एक अस्सी नदी, जो अब खोजे नहीं मिलती

Prema Negi
20 Jun 2019 4:35 AM GMT
वाराणसी में होती थी एक अस्सी नदी, जो अब खोजे नहीं मिलती
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वाराणसी की आज की पीढ़ी को तो शायद पता भी नहीं होगा कि अस्सी नाला पहले एक नदी थी। उन्हें तो यह भी नहीं पता होगा कि अस्सी घाट का नाम ही अस्सी नदी के नाम पर रखा गया था....

महेंद्र पाण्डेय, वरिष्ठ लेखक

काशी के अनेक नाम हैं, वाराणसी भी उनमें से एक है। अनेक प्राचीन ग्रंथों में भी इसका उल्लेख है। यह नाम ऐसे भू-खंड को दिया गया था जो वरुणा नदी और अस्सी नदी के बीच में स्थित था। ये दोनों नदियां ही गंगा में मिलती हैं। बनारस भी एक प्रचलित नाम है, जिसे मुग़लों ने दिया था और बाद में अंग्रेजों ने भी इसी नाम को आगे बढ़ाया। वाराणसी के पूर्वी हिस्से में गंगा नदी बहती है, दक्षिणी छोर पर अस्सी नदी मिलती थी जबकि वरुणा नदी उत्तरी सीमा बनाती थी।

अस्सी नदी पहले अस्सी घाट के पास गंगा में मिलती थी, पर गंगा कार्य योजना के बाद से इसे मोड़कर लगभग दो किलोमीटर पहले ही गंगा में मिला दिया गया है। यही नहीं, सरकारी फाइलों में भी इसे अस्सी नदी नहीं बल्कि अस्सी नाला का नाम दे दिया गया।

वाराणसी की आज की पीढी को तो शायद पता भी नहीं होगा कि अस्सी नाला पहले एक नदी थी। उन्हें तो यह भी नहीं पता होगा कि अस्सी घाट का नाम ही अस्सी नदी के नाम पर रखा गया था। लोग और सरकारें नदियों के प्रति कितने उदासीन हैं, इसका इससे बड़ा उदाहरण और क्या हो सकता है? एक नदी जिससे वाराणसी शब्द बना, उसे विस्थापित कर दिया गया और नाले का नाम दिया गया, पर कोई विरोध नहीं हुआ।

वरुणा नदी भी अब तो नाला बन गयी है, पर इसके नाम से नदी शब्द आज भी जुड़ा है। यह अल्लाहाबाद के फूलपुर के पास से निकल कर 106 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद वाराणसी में गंगा से मिलती है। कहा जाता है कि पहले इसका पानी औषधीय गोनों से युक्त माना जाता था और इसके किनारों पर औषधीय पौधे बड़ी संख्या में पनपते थे।

अस्सी नदी वाराणसी के घमहापुर नामक गाँव में स्थित कर्मदेश्वर महादेव कुण्ड से शुरू होकर लगभग 8 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद गंगा में मिलती है। इसका जल-ग्रहण क्षेत्र लगभग 14 वर्ग किलोमीटर के दायरे में है। इसमें औसतन 3 करोड़ लीटर पानी प्रतिदिन बहता है।

ये दोनों नदियाँ भौगोलिक और जल के सन्दर्भ में महत्वपूर्ण थीं। गंगा नदी को इन्ही नदियों के कारण स्थिरता मिली थी और पद्म पुराण के अनुसार ये दोनों पवित्र नदियाँ थीं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार देवी दुर्गा ने शुम्भ-निशुम्भ नामक असुरों का वध करने के बाद जहां अपनी तलवार फेंकी थी, उस स्थान पर ही महादेवकुण्ड बना और इससे निकले पानी से ही अस्सी नदी का उदगम हुआ। अस्सी नदी और अस्सी घाट का वर्णन गोस्वामी तुलसीदास की मृत्यु में भी मिलता है।

सम्बत सोलह सौ असी, असी गंग के तीर

श्रावण शुक्ल सप्तमी, तुलसी तज्यो शरीर।

पद्म पुराण के अतिरिक्त इस नदी के महत्व को मत्स्य पुराण, अग्नि पुराण और कूर्म पुराण में भी बताया गया है। गंगा के बहाव को स्थिर रखने के साथ-साथ पूरे क्षेत्र में भूजल का संतुलान कायम रखने में इन नदियों की महत्वपूर्ण भूमिका थी। सितम्बर 2017 में नेशनल कांफ्रेंस ऑफ़ सस्टेनेबल डेवलपमेंट ऑफ़ स्मार्ट सिटीज का 31वां अधिवेशन आयोजित किया गया था।

इस कांफ्रेंस में मनोज श्रीवास्तव, अरुण गोयल और अनुराग ओहरी ने एक शोधपत्र प्रस्तुत किया था, “लैंड यूज़ क्लासिफिकेशन एंड वाटरशेड एनालिसिस ऑफ़ अस्सी रिवर”। प्रस्तुत शोधपत्र में बताया गया था कि अस्सी नदी के कुल जलग्रहण क्षेत्र में से 38 प्रतिशत में आबादी बसती है, 7 प्रतिशत में जल-संसाधन हैं, 3 प्रतिशत क्षेत्र में कृषि होती है, 12 प्रतिशत चारागाह और परती भूमि है और शेष 41 प्रतिशत में उद्योग जैसे अन्य उपयोग हैं।

बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के गंगा रिसर्च सेंटर के अनुसार अस्सी नदी में कभी मौलिक जल बहता था और यह गंगा के गुण, जल की मात्रा और आवेग में मददगार था। अस्सी नदी के कारण ही पहले अस्सी घाट पर पानी बहता था। अब यह स्थिति बदल गयी है। इस नदी को दो किलोमीटर पहले गंगा में मिलाने के कारण अब पानी अस्सी घाट से दूर चला गया है। अब विशालकाय सीढ़ियां अस्सी घाट पर आपका स्वागत करतीं हैं, पर गंगा का पानी दूर चला गया है।

देश की अन्य नदियों की तरह अस्सी नदी में भी आबादी और उद्योगों से निकला गन्दा जल ही मुख्य समस्या है। इसमें जगह-जगह कचरे के ढेर भी मिलते हैं। वर्षों से इसके गंगा में मिलाने के स्थान पर ट्रीटमेंट प्लांट स्थापित किया जा रहा है, अब यह स्थापित भी हो गया है पर चलता नहीं है।

सरकारें यदि गंगा के स्थान पर अस्सी नदी की ही सफाई कर देती तो अच्छा होता, नदियों को साफ़ करने के अनुभव होता और गंगा भी साफ़ होती। पर ऐसा हमारे देश में ही हो सकता है कि बिना किसी अनुभव और ठोस योजना के ही देश की सबसे बड़ी नदी की सफाई में हजारों करोड़ रुपये बहा दिए जाते हैं और एक नदी की सफाई के नाम पर दूसरी नदी को विस्थापित कर नाला बना डालते हैं।

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