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बढ़ते तापमान में बदल रही मनुष्य की सोच, लोग हो रहे हैं हिंसक
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वर्ष 2050 के तापमान वृद्धि के आकलन के अनुसार अमेरिका और मेक्सिको में आत्महत्या की दर में क्रमशः 1.4 प्रतिशत और 2.3 प्रतिशत की हो जायेगी बढ़ोत्तरी...
महेंद्र पाण्डेय की रिपोर्ट
जलवायु परिवर्तन से पृथ्वी का औसत तापमान बढ़ता जा रहा है। तापमान बढ़ने का प्रभाव तो हरेक जगह है पर सबसे अधिक स्पष्ट प्रभाव पृथ्वी के दोनों ध्रुवों के पास देखा जा सकता है। दोनों ध्रुवों के पास का क्षेत्र हमेशा बर्फ से ढका रहता है, पर पिछले दो वर्षों में इनके पिघलने की दर बहुत बढ़ गयी है।
उत्तरी ध्रुव के पास स्थित देश, ग्रीनलैंड, सबसे प्रभावित क्षेत्रों में एक है। यहाँ का 80 प्रतिशत से अधिक भू-भाग बर्फ से ढका रहता है, पर पिछले दो वर्षों के दौरान यहाँ से प्रतिवर्ष 35 अरब टन बर्फ पिघल रही है। यहाँ की आबादी बर्फ की कितनी अभ्यस्त है, इसका अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि अधिकतर लोग यह कहते हैं कि वे मनुष्यों से अधिक बर्फ को समझते हैं।
ग्रीनलैंड की आधी से अधिक आबादी शिकार कर अपना गुजर-बसर करती है। सागर तटों के पास की आबादी सागर की सतह पर जमी बर्फ पर दूर तक जाती है और फिर मछलियों का शिकार करती है। शिकार के समय बड़े जानवरों से रक्षा के लिए अधिकतर लोगों के पास बड़े कुत्तों का झुण्ड होता है और यह भी मछलियों या फिर मांस पर पलता है।
मगर तापमान वृद्धि के इस दौर में समुद्र के ऊपर या तो बर्फ नहीं जम रही है या फिर इसकी परत इतनी पतली होती है कि उस पर चला नहीं जा सकता। इससे लोगों को मछली पकड़ने में दिक्कत आने लगी है। लोग तो भूखे रह लेते हैं, पर अपने कुत्तों को भूखा नहीं देख सकते। ग्रीनलैंड के अनेक नागरिक तो अपने कुत्तों को लगातार कई दिनों तक भूखा देखकर इतने दुखी हो जाते हैं कि अब कुत्तों को मारने लगे हैं।
यूनिवर्सिटी ऑफ़ कोपेनहेगेन, फोर्ड इंस्टिट्यूट ऑफ़ अर्बन इकोनोमिक रिसर्च और यूनिवर्सिटी ऑफ़ ग्रीनलैंड के मनोवैज्ञानिकों और वैज्ञानिकों के संयुक्त दल ने ग्रीनलैंड की पिघलती बर्फ के बीच लोगों के मनोविज्ञान का अब तक का सबसे बड़ा अध्ययन किया है। इस दल के अनुसार ग्रीनलैंड की पिघलती बर्फ पूरी दुनिया में अध्ययन का विषय बनी हुई है, पर वहां के लोग इस बारे में क्या सोचते हैं यह कोई नहीं देखता।
इस अध्ययन से स्पष्ट है कि ग्रीनलैंड के लोग बड़े मनोवैज्ञानिक संकट से गुजर रहे हैं। वहां के 92 प्रतिशत लोग मानते हैं कि जलवायु परिवर्तन हो रहा है और 76 प्रतिशत इसके प्रभाव से ग्रस्त होने का दावा करते हैं। इसके विपरीत दुनियाभर में यह भ्रांति व्याप्त है कि ग्रीनलैंड के निवासी घटती बर्फ से खुश हैं।
अध्ययन के अनुसार अधिकतर लोगों का भरोसा है कि घटती बर्फ से लोगों को, वनस्पतियों को और जंतुओं को नुकसान होगा। ग्रीनलैंड के 79 प्रतिशत निवासी मानते हैं कि समुद्र के ऊपर जमी बर्फ की परत पहले से अधिक खतरनाक हो गई है। कैनेडियन एसोसिएशन ऑफ़ फिसीशियन फॉर एनवायरनमेंट नामक संस्था के अध्यक्ष डॉ. कोर्टनी होवार्ड के अनुसार जलवायु परिवर्तन का मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव एक उपेक्षित लेकिन बहुत गंभीर समस्या है। यह लोगों के जीवन और खाद्य सुरक्षा को प्रभावित कर रहा है।
ग्रीनलैंड के लोगों का जीवन का आधार पिघलता जा रहा है और लोग असहाय महसूस कर रहे हैं। डॉ. कोर्टनी होवार्ड के अनुसार ग्रीनलैंड के लोगों की सोच बताने के लिए एक सटीक शब्द है, solastalgia, जिसका अर्थ वहां की भाषा में है, घर में रहकर भी घर की याद सताना। ग्रीनलैंड के लोगों के घर का परिवेश बदलने लगा है, अब बर्फ से ढके घर गायब हो गए हैं।
अधिक तापमान मनुष्य की सोच को बदलने में सक्षम है और लोग अधिक हिंसक हो जाते हैं। ऐसे समय लोग अपने पर या दूसरों पर शारीरिक हमले भी अधिक करते हैं। वर्ष 2050 के तापमान वृद्धि के आकलन के अनुसार अमेरिका और मेक्सिको में आत्महत्या की दर में क्रमशः 1.4 प्रतिशत और 2.3 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हो जायेगी। दुनिया के किसी भी देश की तुलना में ग्रीनलैंड में आत्महत्या की दर सबसे अधिक है, इसे अब तापमान वृद्धि से जोड़कर देखा जा रहा है।
वैसे तो उपरोक्त अध्ययन ग्रीनलैंड में किया गया है, पर इसे हिमालय के सुदूर गाँव और कस्बे से भी जोड़ा जा सकता है। हिमालय के ऊपर के क्षेत्रों में भी लोग ग्लेशियर की बर्फ के बीच ही जीवन यापन करते हैं, पर तापमान वृद्धि से वहां के ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। भविष्य में जब बर्फ इनकी नज़रों से ओझल हो जायेगी, अभी के छोटे झरने सूख चुके होंगे और परम्परागत फसलें जब बदलनी पड़ेंगी, तब हो सकता है इस क्षेत्र के लोग भी मानसिक तौर पर प्रभावित होने लगें।