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राजनीति

ताकतवर हो रही है बर्बरता को जस्टिफाई करने वाली राजनीतिक धारा

Janjwar Team
9 Dec 2017 11:30 AM GMT
ताकतवर हो रही है बर्बरता को जस्टिफाई करने वाली राजनीतिक धारा
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देश में बर्बरता जब तक घटना की तरह थी तब तक आलोचना से काम चल जाता था, प्रदर्शनों से भी असल पड़ता था, लेकिन जब यह राजनीति करने का तरीका बन जाए तो तैयारी मुकाबले की करनी होगी

राजस्थान में मुस्लिम मजदूर हत्याकांड को समझना हो तो वरिष्ठ पत्रकार त्रिभुवन का ये लेख पढें

वह नोटबंदी के बाद बेरोज़गार हो गया। घर में एक पैसा तक देना तो दूर, वह बोझ हो गया। पत्नी ख़ुद कमाकर बच्चों को पढ़ा रही है।

जियो का नेट लगभग फ्री है। पीने को गांजा और शराब है। सबकुछ सहज सुलभ है। नेट पर वाट्सऐप है, फ़ेसबुक है और भी कई चीज़ें हैं। यू ट्यूब है और ढेर सारे ग्रुप्स हैं।

तरह-तरह के वीडियो हैं। सिर में गांजा चढ़ा हो, आदमी बेरोज़गार हो और देश में हीरो बनने की ख्वाहिश हो तो देशभक्त होने के सब साधन सहज सुलभ हैं। मां के साथ कुछ फ़ोटो, सेना की थोड़ी सी तारीफ़ और भारत माता की जय कर देने के बाद चार पोस्ट मुस्लिमों के ख़िलाफ़ डाल तो आप पक्के देशभक्त।

आप बच्चों को शिक्षा के लिए पैसा दे नहीं पाएं। आप पत्नी की ज़रूरतें पूरी नहीं कर पाएं। बच्चों को अच्छा खाना और पहनना तक आप मुहैया नहीं करवाते तो क्या, हमारे पास स्मार्ट फ़ोन है, हम अपनी बेटी का इलाज़ कराने या उसे बेहतर जीवन देने के बजाय एक भावुक सा विडियो बनाएंगे और सोशल मीडिया में अपलोड कर देंगे। लाइक्स आएंगे। धर्म का छोंक लगा होगा तो विडियो शेयर भी होगा।

और ऐसे में आपने किसी विधर्मी को ज़िंदा जला दिया या नृशंसता से मार डाला तो विवेकवान लोग विरोध भी नहीं कर पाएंगे। क्योंकि विरोध करेंगे तो कोई नारा लगेगा। कोई पागल किसी दूसरे धर्म के भी ख़िलाफ़ बोल देगा। और तब क्या होगा...आप को सुनने को यही मिलेगा कि आख़िर ठीक ही किया ऐसे लोगों को ज़िंदा जलाकर। इन्हें क्या हक़ है इस धरती पर रहने का!

आप ऐसी किसी घटना को विरोध करके तो देखिए। करेंगे तो आपके सबसे सुशिक्षित लोग कहेंगे, भाई साहब, है तो ये पैथेटिक ऐंड इनह्यूमैन, लेकिन आपकी आलोचना को मैं सिलेक्टिव मानता हूं, क्योंकि आपने केरल में उस युवा, उड़ीसा में उस युवती और बंगाल में उस किशोर की हत्या पर तो कुछ कहा नहीं था।

अाप अचानक से अपने आपको एक विचित्र तरह के दबाव में महससू करेंगे और आपको लगेगा कि सामने वाला ठीक ही तो कह रहा है।

बिलकुल ऐसे कि जैसे मणिशंकर अय्यर तो गाली देकर अपनी पार्टी से निलंबित हो जाए और उन ढेरों लोगों का बाल भी बांका न हो जो कह रहे हों कि देखो देश का पहला प्रधानमंत्री किसी महिला से कैसे गलबहियां डाल रहा है, जबकि वह महिला उसकी छोटी बहन है।

वह वैसा का वैसा बना रहता है। एक आदमी देश के प्रधानमंत्री को साला कहता है और यह विडियो सार्वजनिक प्रसारित होता है, लेकिन वह एक बेहद उच्च पद पर विराजमान रहते हैं। उनकी प्रतिष्ठा पर कोई आंच नहीं आती। और पता नहीं, किस-किस तरह के अभद्र शब्द किस-किस के बारे में। मायावती तो ताज़ा सा ही उदाहरण हैं। पंडित जवाहरलाल नेहरू, वीपी सिंह और भीमराव अंबेडकर को लेकर क्या-क्या नहीं कहा जाता।

देश की चोटी की पत्रकारों के बारे में जो कुछ सुनने को मिलता है, वह बताता है कि हमारे स्कूल किसी गटर में ही रहे होंगे। आप किसी की कितनी भी आलोचना कर सकते हैं, लेकिन भाषा तो कम से कम शालीनता से पार नहीं होनी चाहिए। दून स्कूल में पढ़ने का मतलब यह नहीं कि आप संस्कारवान हो ही गए। हिंदुत्व का नारा लगा देने से आप में भगवान राम के संस्कार या कृष्ण का कारुण्य टपक नहीं पड़ता।

और संतों की इस धरती का लोक धर्म जो मनुष्यता का पाठ पढ़ाता है, वह नृशंसता को वरण कर लेगा, यह कोई सोच भी नहीं सकता।

संतों की इस धरती के अतीत का अगर हमने ठीक से सिंहावलोकन नहीं किया तो शायद हम भविष्य में भी बहुत पीछे चले जाएंगे।

कुछ लोग मुस्लिम आक्रांताओं को सब चीज़ों के लिए दोषी मानते हैं, लेकिन आख़िर वे सफल क्यों हुए, इसका कारण वे नहीं जानना चाहते। अगर कारण की खोज करेंगे तो बहुत सी ऐसी चौंकाने वाली चीज़ें मिलेंगी, जो हमे अपने देश का सुनहरा भविष्य बनाने के लिए मददगार हो सकती हैं। लेकिन अगर हम इस सच को जानने के बजाय गढ़े हुए झूठ को आत्मसात करेंगे तो शायद भारत का अधिक नुकसान करेंगे।

हमारा भारत अफ़ग़ानिस्तान से बर्मा तक विशाल था। लेकिन नागरिकों की फ़ूट और वर्णवाद ने हमें तबाह कर दिया।

सबसे पहले हमें कुतुबुदीन ऐबक ने ग़ुलाम बनाया। किसने? कुतुबुदीन ने! वो एक ग़ुलाम था। ख़रीदा हुआ। कई बार बिका और कई बार ख़रीदा बेचा गया। आख़िर उसे मुहम्मद गोरी ने ख़रीदा और वह उसका दास रहा। गोरी ने जब हिंदुस्तान फ़तह किया तो एक ग़ुलाम के तौर पर 1206 में उसका राज्याभिषेक हुआ। और 1206 से 1947 तक हम ग़ुलाम रहे। कुल 741 साल। दुनिया में किसी देश ने इतनी लंबी ग़ुलामी नहीं झेली। और सुनिए, सर; गुलाम वंश ने 1290 तक यानी 84 साल शासन किया। मतलब जिन्हें गोरी ने और न जाने कितने लोगों ने गुलाम बनाया; हम उनके भी गुलाम रहे; क्योंकि वे एक थे और हम ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य आदि होकर एक दूसरे से नफ़रत करते थे और 10 प्रतिशत होकर भी अपनी 90 प्रतिशत आबादी को शूद्र घोषित कर झूठे अहंकार में जी रहे थे।

हमने अपने ही लोगों को अछूत घोषित कर दिया और उनके हाथ का खाना तक हमारे लिए नागवार था। हमने अपने ही भाइयों को गांवों में नहीं बसने दिया। उनकी बस्तियां आज भी गांवों से बाहर ही हैं। आज भी हमारे मंदिरों में वे लोग पूजा नहीं कर सकते। कितनी ही बार हम दूल्हा बने लोगों को घोड़ों से उतार देते हैं। यह बहुत कड़वी बात है, लेकिन सच है कि हम आज भी गाली-गलौज के रूप में इन जातियों के नामों का इस्तेमाल करते हैं।

आज भी इन जातियों के लोगों के हिस्से में ही मल भरे नाले साफ़ करने का काम है। और आप सोचिए, सन 1100 और 1200 के आसपास इन जातियों की हमारे समाज में क्या हालत रही होगी। इनकी छाया तक पड़ना समाज के कथित उच्च लोगों के लिए गंगाजल से स्नान करने का सबब रहा है। ऐसे में इस्लाम आया और लोगों ने बादशाह और गुलाम को साथ खड़े देखा तो उन पीड़ितों के लिए जीवन की एक नई राह खुली।

इस कड़वे सच को स्वीकार करना बहुत मुश्किल है, लेकिन आप सोचिए कि उन इनसानों के मन में क्या कल्पना रहती होगी जब वे आपको छू दें और आप कहें कि हमें तो अब नहाना होगा। हम तो सवर्ण हैं!

हम पर अाक्रमणकारी मुस्लिम या अंग्रेज नहीं था। हम पर हमी ने आक्रमण किया था। वे तो बस हमारे खाेखलेपन के भीतर चले आए थे। हमने कब अपने राजपूत शासकों का प्राण पण से लड़ने में साथ दिया। हम तो सदा यही चाहते थे कि राजपूतों की पद्मिनियां तो जौहर करें, लेकिन हम तो पूजा-पाठ, व्यापार और घंटा बजाने में लगे रहे।

अगर ईरान के उस कोने से भारत की राजधानी दिल्ली आकर एक लकड़हारे का बेटा नादिरशाह 1739 में मुहम्मद शाह नामक बादशाह को लूटकर ले वापस जा सकता है तो क्या यह काम हमारे देश का कोई ब्राह्मण या वैश्य नहीं कर सकता था? क्या यह सिर्फ़ राजपूतों की ही ठेकेदारी थी? आप कल्पना नहीं कर सकते कि नादिरशाह यहां से क्या-क्या लेकर गया। वह 75 करोड़ चांदी के रुपए ले गया। वह तख्ते ताऊस ले गया जो चार करोड़ में बना था। पैसे की कीमत आपको बताऊं तो यह थी कि उन दिनों ताजमहज सवा तीन करोड़ में बना था।

अरे आप तो सब घंटा बजा रहे थे। आप क्या रोकते आक्रमणकारियों को! आज आप मरजीवड़े बनने को उतावले हैं! सच आप पचा नहीं सकते।

हम पर अंग्रेजों ने 90 साल राज किया। पुर्तगाली, फ्रांसीसी, कज़ाक, उज़बेक, अफ़गानी, मंगोल, किर्गीजिस्तानी, ईरानी आदि आदि किसने हम पर शासन नहीं किया? आज भी अपने नाम के साथ गर्व से ईरानी लगाने वाली एक संभ्रांत भारतीय महिला को हम अपनी सरकार में देखकर प्रसन्न अनुभव करते हैं।

कभी सोचिये कि भारत 741 साल ग़ुलाम क्यों रहा? और हमें इससे क्या सबक लेना चाहिए?

भारत दुनिया में तेजी से आगे बढ़ता एक महान देश है। वह दुनिया का नम्बर वन देश बनने जा रहा है; लेकिन आज जो दुनिया में नम्बर वन है और जो नम्बर वन की दौड़ में हैं; वे नहीं चाहते कि हम नम्बर वन बनें।

तो हमें रोकने के लिए हमारे दुश्मन क्या करें? कुछ करने की ज़रूरत ही नहीं; क्योंकि हम भारतीय नागरिक आज स्वयं ही अपने आपको हिन्दू बनाम मुसलमान की लड़ाई में झोंक चुके हैं।

हम भारतीय नागरिक जब किसी हिन्दू, किसी सिख, किसी पारसी या किसी मुसलमान के ख़िलाफ़ ज़हर उलीचने लगते हैं तो यह किसी धर्म विशेष को मानने वाले के ख़िलाफ़ नहीं होता, बल्कि उस व्यक्ति के ख़िलाफ़ होता है जो भारत का नागरिक है।

यानी हम जाने-अनजाने भारत के नागरिकों को आपस में लड़ाने की एक ख़तरनाक़ साज़िश के शिकार हो रहे हैं।

क्षमा करें, अगर बुरा लगे; मैं अपने देश से प्रेम करता हूँ। मुझे अपने देश के नेताओं और राजनीतिक दलों तथा विचारधाराओं और यहां तक कि किसी भी धर्म से पहले देश से प्रेम है; जिसकी बुनियाद प्रकृति प्रेम, मानवीय करुणा, समता, बंधुता, स्वतन्त्रता, सामाजिक-आर्थिंक-सांस्कृतिक न्याय पर टिकी है। इसलिए मैं अपनी बात बहुत खुलकर रह रहा हूं।

आपको इस देश से प्रेम है तो आपको मेरे साथ आना होगा। आपको इस देश के नागरिकों में फूट डालने और नफ़रत फैलाने के किसी भी विचार, संगठन और अभियान से बचना होगा। अगर आपको सिर्फ़ अपने धर्म से प्रेम है तो आप मेरे देश के लिए अच्छे व्यक्ति नहीं हैं। आपका धर्म चाहे जो भी हो। क्योंकि आगे आने वाला समय संपूर्ण पृथ्वी पर एक शासन और एक समाज का है। भविष्य वसुधैव कुटुंबकम् का है।

और एक कुटुंब में घृणा के लिए कोई जगह नहीं है।

(वरिष्ठ पत्रकार त्रिभुवन दैनिक भास्कर के संपादक हैं और वह फेसबुक पर लगातार राजनीतिक—सामाजिक विषयों पर टिप्पणियां लिखते हैं।)

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