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दिल्ली में पहली बार इतना कम हुआ प्रदूषण, लेकिन हवा में बढ़ रहा ओजोन
कोरोना की भयावहता के बीच एयर क्वालिटी इंडेक्स के अनुसार वायु प्रदूषण में कमी आने के बाद भी इससे सम्बंधित बहुत समस्याएं हैं और जिनका जवाब कोई नहीं देना चाहता...
महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी
भारत समेत जिन देशों या क्षेत्रों में कोरोना का कहर अत्यधिक तेजी से बढ़ा या बढ़ रहा है या फिर बढ़ने की संभावना है वहां की सरकारों ने पूरे देश को या फिर चुनिन्दा शहरों को लॉकडाउन कर दिया है। ऐसी स्थिति में जब लोगों को घर से बाहर निकलने को मना कर दिया गया, तब बाजार और उद्योग भी बंद हो गए और सड़कें सूनी हो गयीं। पर्यटन ख़त्म हो गया, सड़कों पर गाड़ियां कम हो गयीं।
जाहिर है जब गतिविधियाँ कम हो गयीं, तब वायु प्रदूषण के स्त्रोत भी कम हो गए। अनेक अध्ययनों के अनुसार चीन, इटली, नीदरलैंड, स्पेन, इंग्लैंड, जर्मनी, फ्रांस और अमेरिका के अनेक शहरों में वायु प्रदूषण के स्तर में 25 से 40 प्रतिशत तक की कमी आंकी गयी। हमारे देश के भी अनेक शहरों में इसका असर दिखने लगा है।
वैज्ञानिकों के अनुसार इन शहरों में वायु प्रदूषण में आती कमी से इतना तो समझा जा सकता है कि हम अपनी सामान्य जिन्दगी से किस कदर प्रदूषण फैलाते हैं। कोई भी वैज्ञानिक कोरोना के कहर को फायदेमंद नहीं कहेगा, पर इसका यह फायदा तो स्पष्ट है।
दुनियाभर में वायु प्रदूषण का पर्याय बन चुकी दिल्ली भी इन दिनों वायु प्रदूषण से लगभग मुक्त है। कोरोना के कहर के साथ ही इस वर्ष अभी तक दिल्ली में कुछ कुछ दिनों में होती बारिश के कारण भी वायु प्रदूषण में कमी आ रही है। इस वर्ष 28 मार्च को दिल्ली का एयर क्वालिटी इंडेक्स 45 था, जो अच्छी वायु गुणवत्ता का सूचक है। पिछले वर्ष 28 मार्च को एयर क्वालिटी इंडेक्स इस वर्ष की तुलना में पांच गुना अधिक, यानी 234 था, जो खराब वायु गुणवत्ता का सूचक है।
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दिल्ली समेत पूरे देश में 22 मार्च को कोरोना के डर से जनता कर्फ्यू लगाया गया था, इसके अगले दिन से दिल्ली सरकार ने दिल्ली को लॉकडाउन किया था और फिर 24 मार्च से पूरा देश ही लॉकडाउन कर दिया गया। जाहिर है, सड़कें सूनी हो गयीं, उद्योग बंद हो गए और जनता अपने घरों में बंद हो गयी।
दिल्ली में जगह-जगह कचरा जलना भी बंद हो गया, सभी छोटे-बड़े कंस्ट्रक्शन और इंफ्रास्ट्रक्चर उद्योग बंद कर दिए गए और साथ ही सभी कार्यालय और व्यावसायिक प्रतिष्ठान और बाजार भी बंद कर दिए गए। ऐसा केवल दिल्ली में नहीं हुआ, बल्कि इसके आसपास के शहरों के साथ पूरे देश में किया गया। जब सारी गतिविधियाँ ख़त्म हो गयीं तो जाहिर है वायु प्रदूषण में कम हो जाएगा।
वर्ष 2019 और वर्ष 2020 में 20 मार्च से 28 मार्च तक के एयर क्वालिटी इंडेक्स को एक ग्राफ द्वारा प्रस्तुत किया गया है। इसे देखने पर स्पष्ट है कि इन 9 दिनों में केवल एक दिन यानी 22 मार्च को 2019 की तुलना में दिल्ली में वायु प्रदूषण इस वर्ष अधिक था। यह आश्चर्य का विषय है, क्योंकि इस वर्ष पूरा देश 22 मार्च को जनता कर्फ्यू का पालन कर रहा था और मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार यह पूरी तरह सफल रहा था, जबकि पिछले वर्ष ऐसी कोई पाबंदी नहीं थी।
इस वर्ष 1 से 28 मार्च तक एक दिन दिल्ली का इंडेक्स अच्छा था, 7 दिनों तक संतोषजनक, 18 दिनों तक मध्यम और 2 दिनों तक खराब प्रदूषण रहा। वर्ष 2019 में इन्ही दिनों में 19 दिन प्रदूषण मध्यम रहा और 9 दिनों तक खराब रहा, जबकि एक भी दिन संतोषजनक या अच्छी वायु गुणवत्ता नहीं रही।
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इस समय जब देशभर की सारी गतिविधियाँ ठप्प हैं, और वायु प्रदूषण में लगातार कमी आ रही है, तब कम से कम भारत सरकार और दिल्ली सरकार के जितने प्रदूषण से सम्बंधित संस्थान हैं, उन्हें इस विषय में विस्तृत अध्ययन करने की जरूरत है, यदि दिल्ली या फिर देश में वायु प्रदूषण में सही में कमी लानी है। पर ऐसा लगता नहीं है, क्योंकि इस समय एयर क्वालिटी इंडेक्स के अनुसार वायु प्रदूषण में कमी आने के बाद भी इससे सम्बंधित बहुत समस्याएं हैं और जिनका जवाब कोई नहीं देना चाहता।
इस वर्ष 1 से 28 मार्च के बीच ओजोन का स्तर 17 दिनों तक सामान्य से अधिक रहा, और तीन-तीन दिनों तक नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और कार्बन मोनोऑक्साइड का स्तर अधिक था। इसमें दो दिन ऐसे भी हैं, 7 मार्च और 28 मार्च, जब पीएम 10 और पीएम 2.5 का स्तर सामान्य रहा पर ओजोन, कार्बन मोनोऑक्साइड और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड तीनों का स्तर सामान्य से अधिक रहा।
ओजोन की उत्पत्ति किसी सीधे स्त्रोत से नहीं होती है, बल्कि नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और कुछ वोलेटाइल आर्गेनिक कंपाउंड्स के धूप में आपसी प्रतिक्रिया से उत्पन्न होता है। मानव स्वास्थ्य के लिए यह गैस बहुत खतरनाक है, पर सरकारी स्तर पर इसकी बढ़ती सांद्रता की लगातार उपेक्षा के जाती रही है। इसके नियंत्रण की कहीं कोई योजना नहीं है।
अब तक यही समझा जाता था कि गर्मी में और स्थिर हवा में ही तेज धूप में यह गैस बनती है। इस बार तो स्थितियां बिलकुल विपरीत हैं, बारिश अभी तक हो रही है, हवा भी तेज चल रही है और अधिकतर समय आसमान पर बादल छाये रहते हैं। ओजोन की सांद्रता एयर क्वालिटी इंडेक्स जब 45 रहता है तब भी बढ़ रही है और जब यह 200 के आसपास पहुंचता है तब भी बढ़ रही है।
जब दिल्ली अपने सामान्य जीवन में रहती है, तब भी ओजोन के समस्या हो रही है और जब पूरी दिल्ली बंद है तब भी यह समस्या है। 24 मार्च से लॉकडाउन शुरू हुआ है, और 25 से लेकर 28 मार्च तक हरेक दिन ओजोन की समस्या रही है, जबकि एयर क्वालिटी इंडेक्स 92 से 45 तक पहुँच चुका है। यही नहीं, 28 मार्च को कार्बन मोनोऑक्साइड और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड की समस्या भी रही है।
लगभग ऐसी ही स्थिति इंग्लैंड में लन्दन की भी रही है, वहां भी वायु प्रदूषण कम हो गया है, पर ओजोन की सांद्रता बढ़ गयी है। यह एक गहन अध्ययन का विषय है कि आखिर ओजोन की सांद्रता किस कारण से बढ़ रही है, पर ऐसा होने के संभावना कम है, क्योंकि भारत समेत लगभग पूरी दुनिया ने वायु प्रदूषण का पर्याय केवल पार्टिकुलेट मैटर को मान लिया है, और सारी नीतियाँ इसे नियंत्रित रखने तक ही सीमित हैं।
जिओअर्थ नामक जर्नल के 10 मार्च 2019 के अंक में प्रकाशित एक शोधपत्र के अनुसार दुनियाभर में ओजोन की समस्या गंभीर हो रही है, और वर्ष 2050 तक दुनिया में 60 लाख लोगों की प्रतिवर्ष असामयिक मृत्यु केवल इसकी बढ़ती सांद्रता के असर से होगी और इसमें से 16 लाख लोग भारत के होंगे।
आजकल कोरोना वायरस का कहर जब अपने चरम पर है, तब ये सारे रोग अधिक खतरनाक हैं, क्योंकि ये शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को कम करते हैं और कोरोना वायरस से अधिकतर मौतें ऐसे लोगों की ही हो रही हैं। अधिकतर वैज्ञानिकों का कहना है कि वायु प्रदूषण में यह कमी अस्थाई है, और हमें इससे अधिक खुश नहीं होना चाहिए।
एक बार जब कोरोना का कहर समाप्त होगा तब सामान्य गतिविधियाँ पहले से अधिक तेजी से शुरू होंगी और प्रदूषण पहले से अधिक बढ़ेगा। इतना तो तय है कि कोरोना वायरस के विस्तार से पूरी दुनिया प्रभावित हो रही है और सबकुछ लगभग ठप्प सा हो गया है। जन स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था के साथ ही यह पर्यावरण वैज्ञानिकों के लिए भी एक चुनौती बनकर उभरा है।
पर्यावरण वैज्ञानिकों की चुनौती यह है कि एक बार दुबारा जब स्थिति सामान्य होगी, तब प्रदूषण का स्तर पहले जैसा ही रहे, पर संभावना तो यही है कि इसके बाद प्रदूषण तेजी से बढ़ेगा और पृथ्वी का तापमान भी।