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पूर्वांचल के 12 जिलों में इंसेफ्लाइटिस से 1 लाख मौतें
हर साल गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में हो जाती है 5 सौ मौतें, मरने वालों में 70 फीसदी होते हैं बच्चे, जो बच जाते हैं उनमें से बहुतेरे हो जाते हैं विकलांग तो कुछ होते हैं मानसिक रोग के शिकार
11 अगस्त तक 63 मौतें सिर्फ गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में हो चुकी हैं, इनमें से करीब 35 बच्चे हैं, जबकि 9 अगस्त को जब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मेडिकल कॉलेज गए थे तब सबकुछ ठीक होने की बात कही थी अधिकारियों ने
गोरखपुर, जनज्वार। यूपी के मुख्यमंत्री पिछले 15 वर्षों से हैं गोरखपुर के सांसद, सबसे पहले 1998 में उठाया था संसद में मुद्दा, पर इन वर्षों में होती रहीं मौतें और वह कुछ सुरक्षित टीके का नहीं कराए पाए इंतजाम। सवाल यह कि क्या मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी के कर्मभूमि पर होने वाली इन मौतों का सिलसिला थमेगा
जानिए गोरखपुर की महामारी इंसेफ्लाइटिस पर क्या कहते हैं तथ्य
- कल प्रकाश में आई मौतों के लिए सीधे सरकारी अधिकारियों की लापरवाही और सरकार का निकम्मापन जिम्मेदार है, क्योंकि गोरखपुर के प्रमुख अखबार हिंदुस्तान ने 30 जुलाई को ही बता दिया था कि आॅक्सीजन के पेमेंट न होने से मरीजों की जान का खतरा हो सकता है।
- गोरखपुर में इंसेफ्लाइटिस से होने वाली मौतों के मौसम की अभी शुरुआत भर है और 11 अगस्त तक 63 मौतें सिर्फ मेडिकल कॉलेज में हो चुकी हैं।
- इंसेफ्लाइटिस उन्मूलन से जुड़े गोरखुपर के डॉ. आरएन सिंह बताते हैं, वर्ष 2016 में इन्सेफलाइटिस से मेडिकल कॉलेज में 514 मौतें हुईं, जो पिछले वर्षों के मुकाबले 15 फीसदी ज्यादा थीं।
- जानकारों और विशेषज्ञों के अनुसार 2005 से 2017 के बीच सिर्फ मेडिकल कॉलेज में हर वर्ष औसत 500 मरीजों की मौत होती है।
- इंसेफ्लाइटिस उन्मूलन अभियान के मुखिया डॉक्टर आरएन सिंह के मुताबिक अब तक इस बीमारी से उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल क्षेत्र के 12 जिलों गोरखपुर, बस्ती, देवरिया, कुशीनगर, महाराजगंज, खलीलाबाद, अंबेडकरनगर, संतकबीरनगर, सिद्धार्थनगर, बहराइच, लखीमपुर खीरी और गोंडा में अबतक एक लाख से ज़्यादा मौतें हो चुकी हैं।
- 2009 से 2011 के बीच इस बिमारी की बेहतर व्यवस्था के लिए हजारों लोग अपने खून से खत लिख चुके हैं, लेकिन सरकार ने कान नहीं दिया। पूर्वांचल के 12 जिलों में यह बीमारी हर साल 4 से 5 हजार लोगों को अपना शिकार बनाती है. 1977—78 में गोरखपुर में इंसेफ्लाइटिस का पहला मामला सामने आया था और 1998 में योगी आदित्यनाथ ने पहली बार संसद यह मुद्दा उठाया था।
- इंसेफ्लाइटिस रोगियों के मौत यानी रोग होने के बाद न बच पाने का औसत भारत में होने वाले किसी भी रोग से ज्यादा है। 2017 में इंसेफेलाइटिस से हुई मौतों का मृत्यु दर 31.49 फीसदी रही और 2016 में 26.16 फीसदी।
- इंसेफ्लाइटिस होने पर करीब 30 फीसदी मरीजों की मौत हो जाती है। जो बच जाते हैं, उनमें से करीब आधे आंशिक या वृहद अपंगता के शिकार हो जाते हैं।
- इंसेफ्लाइटिस यानी जापानी बुखार क्यूलेक्स प्रजाति के मच्छर से होता है। इसका भारत में कोई टीका नहीं है। सरकार ने इस बीमारी से निपटने के लिए पिछले वर्षों में चीन से टीके मंगाए गए थे, लेकिन कुछ खास सफलता नहीं मिली।
- 2006 से चलाया जा रहा है इंसेफ्लाइटिस का टीकाकरण अभियान, पर परिणाम शून्य। रोगी घटने की बजाए हर साल बढ़ रहे हैं। फिर क्यों किया जाता है टीके का इस्तेमाल।
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