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राजनीति

जनज्वार एक्सक्लूसिव—हरिद्वार के डीएम दीपक रावत हैं खनन माफियाओं के पार्टनर : आत्मबोधानंद

Janjwar Team
4 Jan 2018 2:15 PM GMT
जनज्वार एक्सक्लूसिव—हरिद्वार के डीएम दीपक रावत हैं खनन माफियाओं के पार्टनर : आत्मबोधानंद
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मेरी हत्या करनी की थी साजिश, डीएम की गुंडागर्दी के आगे नहीं झुकेंगे हम — ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद

गंगा में खनन माफियाओं के खिलाफ लोहा ले रहे संत आत्मबोधानंद का पहला साक्षात्कार, बताया कि कैसे कमरा बंद कर डीएम बना गुंडा और जी हजूरी में लगा रहा पूरा प्रशासन, ऐसे में सवाल भाजपा की त्रिवेंद्र सरकार से कि माफियाओं के डीलर बने डीएम के प्रति क्यों है उसका गहरा प्रेम

पढ़िए मातृ सदन के संत ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद का पूरा साक्षात्कार

मामला क्या था जिसमें आप बता रहे हैं कि हरिद्वार के जिलाधिकारी दीपक रावत और उनके गनमैन ने आपको कमरे में बंद कर मारा?
गंगा में अवैध खनन के खिलाफ मैंने 30 अक्टूबर से हरिद्वार में अनशन शुरू कर दी थी। अनशन के 39वें दिन मुझे डीएम दीपक रावत के आदेश पर बलपूर्वक पुलिस देहरादून के दून अस्पताल उठाकर ले गयी। आश्रम और अनशन पर धारा 144 लगा दी गयी। पुलिस को बलपूर्वक ले जाने का आदेश डीएम ने इसलिए दिलवाया कि मेरी तपस्या न सिर्फ खनन माफियाओं के खिलाफ थी, बल्कि डीएम और पूरे प्रशासन के खिलाफ भी थी। मैंने यही बात जब 25 दिसंबर को एक कार्यक्रम के दौरान डीएम के सामने उनके मुंह पर कह दी तो उन्होंने अपने गनमैन के साथ मिलकर वीआईपी कमरे में बंद कर मुझे बूटों से कुचला और प्राइवेट पर मारकर मुझे अधमरा कर दिया।

पर एक सार्वजनिक कार्यक्रम में कोई ऐसा कैसे कर सकता है, यह डीएम के लिए कैसे संभव हुआ कि वह एक संत को बूटों से कुचले?
25 दिसंबर को हरिद्वार का एक एनजीओ मदन मोहन मालवीय पुरस्कार दे रहा था। मैं भी उस कार्यक्रम में मौजूद था। मैंने मंच बढ़ते हुए अपने पर्चे लोगों में फेंके और बताया कि एक माफिया डीएम ने ऐसा कौन सा काम किया है जिसके कारण मदन मोहन मालवीय पुरस्कार उन्हें दिया जा रहा है। मैंने पहले मंच से बोलने की कोशिश की पर संचालकों ने मुझे मौका नहीं दिया। फिर मैंने अपनी बात रखी कि कैसे दीपक रावत प्रशासनिक अधिकारी रहते हुए माफियाओं के साथ मिलकर गंगा मां को खत्म कर रहे हैं और सरकार चुप है।

आपको कमरे में बंद कर कब मारा?
मैंने बिना माइक अपनी बात रखी। तथ्यों से बताया कि क्या—क्या करते हैं डीएम और पर्चे में भी लिखी थी पूरी बात। मेरे बोल लेने के बाद डीएम दीपक रावत ने सभी को कैमरा आॅफ करने के लिए कहा। जो नहीं बंद कर रहा था उसे धमका कर बंद कराया। उसके बाद मुझे स्टेज के पीछे बने वीआईपी रूम में डीएम का गनमैन घसीटते हुए ले गया। फिर कमरा बंद किया और दोनों ने मुझे तबतक मारा जबतक मैं बेहोश नहीं हो गया। मेरे मुंह पर डीएम पैर रगड़ते रहे, मेरे अंडकोष पर लगातार जूतों से मारा। आखिर में एसडीएम ने दरवाजा खटखटाया। एसडीएम के सामने भी डीएम मुझे मारते रहे, पुलिस वाले देखते रहे और एसडीएम कहते रहे सर रहने दीजिए, सर रहने दीजिए।

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फिर क्या हुआ, उसके बाद डीएम ने क्या किया?
मुझे मारते—मारते जब डीएम थक गए तो उन्होंने एसडीएम को आदेश दिया कि इसके खिलाफ शांति भंग में मुकदमा दर्ज कर जेल भेजो और बाहर नहीं आना चाहिए। फिर मुझे कोतवाली ले जाया गया। वहां से आधे घंटे बाद मेडिकल के लिए ले जाया गया। वहां डॉक्टर ने अभी देखना ही शुरू किया था और मैंने बताना कि कहां, क्या चोट लगी है, तभी डॉक्टर को फोन आ गया। फिर डॉक्टर ने पुलिस वाले को एक पर्ची थमा दी और मुझे सिटी मजिस्ट्रेट ने जेल भेज दिया।

इतनी खुन्नस डीएम दीपक रावत को आपके खिलाफ क्यों थी?
मातृ सदन ही एक ऐसी संस्था है जो गंगा में खनन के खिलाफ हर स्तर पर लड़ती है और डंटी हुई है। हरिद्वार के आसपास गंगा में जो भी खनन होता है, पहली बात वह अवैध है। यहां खनन प्रतिबंधित है। बावजूद हर रोज 2.50 करोड़ की कीमत का खनन होता है। यह सिर्फ और सिर्फ गंगा में हरिद्वार के आसपास होने वाले खनन की कमाई का आंकड़ा है। खनन में डीएम और उनके मातहतों की भूमिका एक सेकेंडरी लेबल की माफिया की बन गयी है जिससे सरकारी ताकत की बदौलत पर्यावरण, समाज और गंगा की रक्षा के लिए आवाज उठाने वाली ताकतों को चुप कराया जा सके। खनन के अपराध और इसके मुनाफे के खेल में हरिद्वार के डीएम दीपक रावत एक तरह से 'शेयर होल्डर' जैसी भूमिका में हैं।

पर आपको अनशन के 39वें दिन दून अस्पताल पुलिस क्यों ले गयी?
वह हमारी हत्या के लिए ले गए थे। इससे पहले भी हमारे एक संत निगमानंद की 2011 में प्रशासन ने माफियाओं के साथ मिलकर अस्पताल में जहर देकर हत्या कर दी थी। वह भी खनन के खिलाफ ही संघर्ष कर रहे थे। निगमानंद को पहले हरिद्वार जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया था, फिर जॉली ग्रांट हॉस्पीटल देहदरादून में।

मातृ सदन के मुख्य महंत स्वामी शिवानंद

दून अस्पताल में क्या आपको ईलाज नहीं हुआ?
मैं दून अस्पताल में कोमा में जाने लगा था। वहां भर्ती कराकर मेरा कोई ईलाज नहीं किया गया। मैं अनशन पर था और पिछले 39 दिन से केवल नमक और पानी ले रहा था। दून अस्पताल में बिना खाना—पानी के छोड़ दिए जाने के बाद मैं धीरे—धीरे डाउन 'सुस्त' होने लगा। मेरी धड़कनें लगभग खत्म होने लगी थीं। मैं आज अगर बच पाया हूं तो सिर्फ मोबाइल की वजह से, क्योंकि जब मैं धीरे—धीरे मरने की तरफ बढ़ रहा था, कोमा में जा रहा था, उसी वक्त आश्रम से फोन आ गया और लोगों को पता चला कि मेरी हालत ठीक नहीं है और फिर साथियों ने मदद की। उसके बाद एम्स लाया गया जहां अनशन के 46वें दिन मुझे हाइपोथर्मिया हो गया। इसके कारण मेरा बॉडी टेंपरेचर 93—94 हो गया। मैं और आधे घंटे का मेहमान था। बहुत मुश्किल से बच पाया। फिर 47वें दिन मैंने गुरु स्वामी शिवानंद के आदेश पर अनशन समाप्त कर दिया। अब वहीं अनशन पर हैं। मुझपर जिस दिन हमला हुआ उस दिन गुरुदेव के अनशन का 10वां दिन था।

अभी भी आपके गुरु स्वामी शिवानंद का अनशन जारी है?
हां, लगातार जारी है। मातृ सदन का प्रण है कि हम खनन से गंगा को मुक्त करेंगे, जिससे गंगा को बचाया जा सके।

पर अबकी केंद्र हो या राज्य सरकार दोनों ही गंगा—गंगा करती हैं, फिर भी अवैध खनन?
यह सरकार सिर्फ दिखाने के लिए हिंदुओं की है। इसका हिंदुओं से कोई लेना—देना नहीं है, इसका अपना एजेंडा है। हरिद्वार का पूरा खनन मंत्रियों और नेताओं की शह पर चलता है। करीब 103 क्रशर हैं यहां, उनमें से ज्यादातर नेताओं और मंत्रियों के लोगों के हैं। यह एक कठिन लड़ाई है जिसे केवल वही लड़ सकता है जो देश को बचाना चाहता है, पर्यावरण और समाज को बचाना चाहता है।

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