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पतंजलि के 6 उत्पादों पर लगा प्रतिबंध, रामदेव नहीं कर पाए मीडिया मैनेज
मेडिकल जांच में फेल होने पर लगा प्रतिबंध, पहले भी 4 दवाएं हो चुकी हैं प्रतिबंधित। सवाल यह कि जो दवा नेपाल के लोगों के लिए नुकसानदायक, वह भारत में लाभदायक कैसे...
काठमांडू, जनज्वार। नेपाल सरकार ने मेडिकल जांच में गडबड़ी पाए जाने पर बाबा रामदेव और योगी बालकृष्ण के मालिकाने वाले पतंजलि के 6 उत्पादों को 21 जून से नेपाल में प्रतिबंधित कर दिया है। नेपाल के मीडिया के मुताबिक इससे पहले पतंजलि के 4 और उत्पाद माइक्रोबॉलॉजिकल जांच में असफल पाए जाने पर प्रतिबंधित हो चुके हैं।
ये सभी उत्पाद पतंजलि आयूर्वेद लिमिटेड और आयूर्वेदिक मेडिसिन कंपनी द्वारा नेपाल में उपलब्ध कराए जा रहे थे। पतंजलि के जिन उत्पादों को सरकार ने प्रतिबंधित किया है, वे हैं आमला चूर्ण, दिव्य गशर चूर्ण, बकूची चूर्ण, त्रिफला चूर्ण, अश्वंगंधा चूर्ण और अदिवा चूर्ण।
नेपाल सरकार के स्वास्थ्य विभाग द्वारा किए जांच में अधिकारियों ने पाया कि दवा के तौर प्रचारित ये उत्पाद तय मानकों से बहुत अलग हैं और इनके इस्तेमाल से स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ सकता है। ये सभी उत्पाद माइक्रोबॉयलॉजिकल टेस्ट में फेल हुए हैं।
इसी के मद्देजनर कल 21 जून को प्रतिबंधित किए जाने बाद विभाग ने तत्काल उत्पादों को बाजार से वापस मंगाने का आदेश संबंधित अधिकारियों को दे दिया है।
पतंजलि के खिलाफ नेपाल सरकार ने यह कार्यवाही '1978 ड्रग एक्ट की धारा 14' के तहत किया है।
वहीं भारत में इन दवाओं की धूम मची हुई है। रामदेव इन दवाओं के प्रचार पर हर महीने करोड़ों रुपए विज्ञापन पर खर्च कर रहे हैं। मीडिया का बड़ा हिस्सा इनके सही—गलत दावों को खूब प्रचारित कर रहा है, क्योंकि विज्ञापन का दबाव है।
यही कारण है कि रामदेव के अपनी कंपनी के उत्पादों से संबंधित तमाम अविश्वनीय दावों पर भी मीडिया समवेत स्वर में कोई सवाल नहीं उठा पाता। भारत में वह मीडिया मैनेज कर लेते हैं।
भारत में हाल ही सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी से पता चला है कि आयूर्वेद के 40 फीसदी उत्पाद मानकों से नीचे हैं, जिसमें पतंजलि के उत्पाद भी है।
भारत में वर्ष 2013 से 2016 के बीच 82 आयूर्वेदिक उत्पादों की जांच हुई, जिसमें मानकों की जांच में 32 फेल हुए। फेल होने वालों में पतंजलि दिव्य आंवला जूस और शिवलिंगी बीज दोनों ही शामिल थे।
पर भारत में असल समस्या सरकार की है। सरकार योग गुरु रामदेव की अंधसमर्थन करती है। वह उनका इस्तेमाल वोट बैंक के रूप में करती है, जबकि रामदेव अपने सही—गलत दावों पर सरकार का इस्तेमाल उसकी चुप्पी के रूप में करते हैं। खुद प्रधानमंत्री मोदी और पूरा मंत्रिमंडल रामदेव के योग, दवाओं और उनके आर्थिक उभार के आगे नमस्तक है।
ऐसे में सवाल ये है कि जो दवा नेपाल के लोगों के लिए नुकसानदायक साबित हो सकती है, वह भारत के लोगों को स्वास्थ्य लाभ कैसे दे सकती है।
एक बार जांच की मांग तो की ही जानी चाहिए क्योंकि मुनाफे की हवस न किसी सरकार की वफादार होती है न जनता की।