अदालत ने कहा एनआईए ने नहीं पेश किए ठोस सबूत, जबकि दिल्ली की एक अदालत में आरएसएस से जुड़े समझौता विस्फोट के आरोपी असीमानंद ने कर लिया था अपना जुर्म स्वीकार
वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट
क्या सीबीआई की तरह एनआईए (राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण) भी सरकारी तोता बन गया है। क्या एनआईए की कार्यप्रणाली इस सरकार के अंदर हिंदुत्व आतंकवाद से जुड़े केसों को कमज़ोर करने की हो गयी है, ताकि उन्हें अदालत से आसानी से छुड़वाया जा सके।
समझौता एक्सप्रेस विस्फोट मामले में आये अदालती फैसले के बाद एनआईए पर इसी तरह के आरोप लग रहे हैं। इस फैसले पर इसलिए भी सवाल उठ रहे है कि पहले दिल्ली की एक अदालत में आरएसएस से जुड़े असीमानंद ने समझौता अपना जुर्म स्वीकार कर लिया था। मजिस्ट्रेट के सामने असीमानंद ने गुनाह कबूला था, फिर बाद में मुकर गया।
समझौता एक्सप्रेस विस्फोट मामले में असीमानंद और तीन अन्य आरोपियों को बरी करने वाली पंचकुला की विशेष अदालत ने कहा कि विश्वसनीय और स्वीकार्य साक्ष्यों के अभाव की वजह से इस जघन्य अपराध के किसी गुनहगार को सजा नहीं मिल पाई। अभियोजन ने सबसे मजबूत सबूत अदालत में पेश नहीं किए।
समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट केस पर पूरा विस्तृत लिखित फैसला 28 मार्च को आया है। इस मामले में चारों आरोपियों असीमानंद, लोकेश शर्मा, कमल चौहान और राजिंदर चौधरी को अदालत द्वारा बीते 20 मार्च को बरी कर दिया गया था। 26 भारतीयों और 42 पाकिस्तानी परिवारों को 12 सालों से इस फ़ैसले का इंतज़ार था, लेकिन विशेष अदालत ने 2007 समझौता ट्रेन बलास्ट केस में किसी को मुजरिम नहीं पाया और आतंकवाद और दूसरे बड़े मामलों की जांच को बनाई गई राष्ट्रीय जांच एजेंसी मक्का मस्जिद, अजमेर धमाका मामलों के बाद एक और केस साबित करने में नाकाम रही।
एनआईए अदालत के जज जगदीप सिंह ने अपने फैसले में कहा है कि मुझे गहरे दर्द और पीड़ा के साथ फैसले देना पड़ रहा है, क्योंकि विश्वसनीय और स्वीकार्य साक्ष्यों के अभाव की वजह से इस जघन्य अपराध में किसी को गुनहगार नहीं ठहराया जा सका। अभियोजन के साक्ष्यों में निरंतरता का अभाव था और आतंकवाद का मामला अनसुलझा रह गया। जज जगदीप सिंह ने 160 पेज के अपने फैसले में कहा था कि अभियोजक पक्ष ने सबसे मजबूत सबूत अदालत में पेश नहीं किए। उन्होंने कहा कि स्वतंत्र गवाहों की कभी जांच नहीं की गई।
न्यायाधीश ने कहा कि किसी पर भी गहरा शक हो, लेकिन वो शक सबूत की जगह नहीं ले सकता। यह आपराधिक न्यायशास्त्र का कार्डिनल प्रिंसिपल है, जो एक अभियुक्त के खिलाफ आरोपों को संदेह से परे केवल सबूतों के आधार पर ही स्थापित किया जा सकता है। कुछ छोटे मोटे तथ्यों को पर्याप्त नहीं माना जा सकता। आपराधिक मामलों में, सजा नैतिकता के आधार पर नहीं हो सकती है। सजा के आधार के लिए स्वीकार्य और विश्वसनीय सबूत होने चाहिए और इसके अलावा यह आपराधिक न्यायशास्त्र में अच्छी तरह से तय किया गया है कि घृणित अपराध के लिए बड़ा प्रमाण देना ज़रूरी है। कानून का जनादेश है कि अभियोजन पक्ष को उचित संदेह से परे सभी आरोपों को साबित करना होगा।
आदेश में कहा गया है कि अभियोजक पक्ष के सबूतों में निरंतरता नहीं है और आतंकवाद का यह मामला अनसुलझा ही रह गया। आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता, क्योंकि इस दुनिया में कोई भी धर्म हिंसा का पाठ नहीं पढ़ाता। अदालत का फैसला लोगों की भावनाओं और धारणा के आधार पर या राजनीति से प्रेरित नहीं होना चाहिए, यह सबूतों के आधार पर होना चाहिए।
इस मामले में ऐसा कोई सबूत नहीं था कि इन आरोपियों ने इस अपराध को अंजाम दिया है। इस अपराध को अंजाम देने के लिए इन लोगों की मुलाकात और बातचीत को लेकर भी कोई सबूत पेश नहीं किया गया। इन आरोपियों की आपस में कड़ियों को जोड़ने, मुकदमे का सामना करने के लिए किसी तरह के ठोस मौखिक, दस्तावेजी और वैज्ञानिक सबूत को पेश नहीं किया गया। अपराधियों का इस अपराध में शामिल होने के उद्देश्य का कोई सबूत पेश नहीं किया जा सका।
गौरतलब है कि 8 फ़रवरी, 2007 को भारत-पाकिस्तान के बीच हफ़्ते में दो दिन चलने वाली ट्रेन संख्या 4001 अप अटारी (समझौता) एक्सप्रेस में दो आईईडी धमाके हुए थे जिसमें 68 लोगों की मौत हो गई थी। यह हादसा रात 12 बजे के करीब दिल्ली से कोई 80 किलोमीटर दूर पानीपत के दिवाना रेलवे स्टेशन के पास हुआ था। ट्रेन अटारी जा रही थी जो कि भारतीय हिस्से का आख़िरी रेलवे स्टेशन है। धमाकों की वजह से ट्रेन में आग लग गई और इसमें महिलाओं और बच्चों समेत कुल 68 लोगों की मौत हो गई, जबकि 12 लोग घायल हुए थे।
फैसला आने में 12साल लगे, पर कोई दोषी नहीं मिला। इस मामले में कुल आठ अभियुक्त थे, इनमें से एक की मौत हो चुकी है, जबकि तीन को भगोड़ा घोषित किया जा चुका है। उन आठ आरोपियों में से स्वामी असीमानंद, लोकेश शर्मा, कमल चौहान और राजिंदर चौधरी अदालत में पेश हुए और मुकदमे का सामना किया। इस हमले का मास्टरमाइंड सुनील जोशी को कहा जाता है। दिसंबर 2007 में मध्य प्रदेश के देवास जिले में सुनील जोशी की उसके घर के पास गोली मारकर हत्या कर दी गई थी।
फैसले को चुनौती नहीं देगी सरकार
इस बीच केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कहा है कि एनआईए समझौता ब्लास्ट मामले में आरोपित रहे असीमानंद को बरी किए जाने के फैसले को चुनौती नहीं देगी। राजनाथ सिंह ने कहा है कि कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया है। जो कोई इसके खिलाफ अपील करना चाहता है, वह कर सकता है।
गौरतलब है कि भाजपा जब विपक्ष में थी, तब भी उसका आरोप था कि असीमानंद और अन्य को ‘भगवा आतंकवाद’ के नाम पर गलत तरीके से फंसाया गया है। भाजपा का मानना था कि अल्पसंख्यक तुष्टिकरण’ के तहत भगवा आतंकवाद की कहानी गढ़ी गई थी।