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विमर्श

सावधान! अंतिम चुनावी दांव खेलने जा रही है भाजपा

Prema Negi
2 Nov 2018 12:58 PM IST
सावधान! अंतिम चुनावी दांव खेलने जा रही है भाजपा
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2019 लोकसभा चुनाव जीतने के लिए भाजपा के पास सिर्फ और सिर्फ दो रास्ते हैं। पहला किसी भी तरीके से पूरे देश को हिंदू-मुस्लिम के आधार पर ध्रुवीकृत कर दिया जाए या पाकिस्तान के साथ पूर्ण युद्ध या आंशिक युद्ध जैसी कोई स्थिति पैदा कर दी जाए....

युवा दलित चिंतक—लेखक सिद्धार्थ का विश्लेषण

संघ-भाजपा अध्यादेश, संसद में निजी विधेयक या सरकार द्वारा प्रस्तुत विधेयक के आधार पर राम मंदिर के नाम पर पूरे देश को राम के पक्षधर या राम विरोधी खेमे में बांट देने का की योजना तैयार कर चुके हैं। इसमें उनको कामयाबी मिल भी सकती है।

आज इस संदर्भ में मोहन भागवत से अमित शाह मिल रहे हैं। राज्यसभा के मनोनीत सदस्य और संघ के विचार राकेश सिन्हा ने राममंदिर के संसद में निजी विधेयक प्रस्तुत करने का निर्णय लिया है। भाजपा के कई मंत्रियों, सासंदों और शिवसेना ने उसका समर्थन करने की घोषणा किया है।

विकास करने, भ्रष्टाचार मिटाने, हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के नाम पर 2014 में भाजपा को अपार चुनावी सफलता मिली थी। विकास का नारा पूरी फेल हो चुका है। भ्रष्टाचार के गहरे छींटे भाजपा के दामन पर लग चुके हैं। हो सकता है कुछ ही दिनोंं बाद वह पूरी तरह भ्रष्टाचार में डूबी नजर आए।

अब सिर्फ और सिर्फ दो मुद्दे बचते हैं- हिंदुत्व और राष्ट्रवाद। हिंदुत्व और राष्ट्रवाद को आपस में पूरी तरह मिलाने में संघ-भाजपा कामयाब हो चुके हैं। वे हिंदुत्व और राष्ट्रवाद को एक दूसरे का पर्याय बना चुके हैं।

2019 लोकसभा चुनाव जीतने के लिए भाजपा के पास सिर्फ और सिर्फ दो रास्ते हैं। पहला किसी भी तरीके से पूरे देश को हिंदू-मुस्लिम के आधार पर ध्रुवीकृत कर दिया जाए या पाकिस्तान के साथ पूर्ण युद्ध या आंशिक युद्ध जैसी कोई स्थिति पैदा कर दी जाए।

पाकिस्तान के साथ पूर्ण यु्द्ध या आंशिक युद्ध का रास्ता अख्तियार करना सरकार के लिए जोखिम भरा काम हो सकता है। शायद इसके लिए भाजपा के कारपोरेट आका और अमेरिका भी इजाजत न दें।

तो सिर्फ-सिर्फ एक रास्ता बचता है। वह है राममंदिर के लिए अध्यादेश, संसद में निजी स्तर पर या सरकार द्वारा प्रस्तुत विधेयक।

इस माध्यम से संघ-भाजपा कई निशाने एक साथ साथ सकते हैं-

कांग्रेस को बैकफुट पर ला सकते हैं। गुजरात चुनावों से कांग्रेस जो अपना हिंदू समर्थक इमेज गढ़ रही है, उसे ध्वस्त कर सकते हैं और बता सकते हैं कि असल में कांग्रेस तो हिंदू विरोधी है। कांग्रेस शायद ही राम के सामने खड़ी हो पाए। अपनी विचारधारा और रणनीति दोनों के कांग्रेस के लिए राम के खिलाफ खड़ा हो पाना मुश्किल है।

दूसरा निशाना उच्च जातियां हैं। दलितों-पिछड़ों का वोट पाने के लिए भाजपा ने इधर कुछ ऐसे कदम (जैसे एससी-एसटी एक्ट) उठाए थे, जिससे सवर्ण एक हद तक भाजपा से नाराज चल रहे हैं। राम के नाम वे अपने जनबल और धनबल के साथ संघ-भाजपा के पक्ष में एकजुट हो जायेंगे, क्योंकि वे जानते हैं कि देश की बहुसंख्यक आबादी पिछड़े, दलितों और महिलाओं पर उनके सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक वर्चस्व के आधार के केंद्रीय पुरूष राम हैं।

तीसरा निशाना दलित-पिछड़ों और मुसलमानों के बीच कायम होती एकता है। पूरे देश में दलित, पिछड़ी जातियों और मुसलमान भाजपा के विरोध में तेजी से एकजुट हो रहे हैं, देश के विभिन्न हि्स्सों में इसमें आदिवासी भी शामिल हैं। पिछड़ी जातियों का एक हिस्सा आज भी भले ही भाजपा के साथ खड़ा हो, लेकिन दलित-मुस्लिम तो काफी हद तक एकजुट हो गए हैं।

राममंदिर के नाम पर इस एकजुटता को तोड़ा जा सकता है। डॉ. आंबेडकर ने कहा था कि वर्णों और जातियों में बंटे हिदूओं को सिर्फ और सिर्फ मुसलमानों के खिलाफ खड़ा करके ही एकजुट किया जा सकता है। हिंदू सिर्फ और सिर्फ दंगों के दौरान ही अपने को हिंदू के रूप में महसूस करते हैं। शेष समय वे वर्ण और जाति के आधार पर एक दूसरे से घृणा करते हैं।

चौथा संघ-भाजपा प्रगतिशील वामपंथियों को धर्म और ईश्वर विरोधी के रूप में पहले से प्रस्तुत करते रहे हैं। राममंदिर पर अध्यायदेश या विधेयक के विरोध में ज्योंही वे बोलेंगे, त्योंही वे कहेंगे कि देखो ये नास्तिक और धर्म विरोधी हैं।

सच तो यह है कि देश में कोई चुनावी राजनीतिक पार्टी नहीं है, जो पुरजोर तरीके से राम मंदिर को विरोध कर पाए। सब आंय-बायं ही करेंगे, क्योंकि उन्हें भी उन लोगों का वोट चाहिए जिनके दिलों में दशरथ पुत्र राम ईश्वर के रूप में विराजमान हैं।

ऐसे समय में जनपक्षधर, प्रगतिशील और फुले-आंबेडकर के अनुयायी बुद्धजीवियों और कार्यकर्ताओं का यह ऐतिहासिक फर्ज बनता है कि वे राममंदिर के खिलाफ खुला मोर्चा खोलें और न केवल राम मंदिर के अभियान के विरोध में खड़े हों, बल्कि राम के वर्णवादी, द्विजवादी और मर्दवादी चरित्र को उजागर करें।

(सिद्धार्थ फॉरवर्ड प्रेस पत्रिका से जुड़े हुए हैं और दलित मसलों पर सक्रिय लेखन कर रहे हैं।)

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