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गूगल ने कुछ यूं याद किया पहली भारतीय महिला वकील कार्नेलिया को

Janjwar Team
15 Nov 2017 5:49 PM GMT
गूगल ने कुछ यूं याद किया पहली भारतीय महिला वकील कार्नेलिया को
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एक लम्बी लड़ाई लड़ने के बाद 1924 में कार्नेलिया सोराबजी उस कानून को कमजोर करने में कामयाब हुईं, जो महिलाओं के लिए वकालत को वर्जित मानता था...

कार्नेलिया सोराबजी सिर्फ एक नाम नहीं है, उन्हें भारत की पहली महिला वकील होने का श्रेय जाता है। कार्नेलिया वह महिला हैं जिन्होंने कानून जैसे पेशे वह भी बैरिस्टर जिसे कि पुरुषों के लिए रिजर्व समझा जाता था, में घुसपैठ की और आज उन्हीं की बदौलत महिलाएं वकालत पेशे में शीर्ष पर विराजमान हैं।

आज कार्नेलिया सोराबजी का लोहा पूरे विश्व ने मान लिया है। इसीलिए तो उन्हें उनके 151वें जन्मदिन पर गूगल ने एक खास तरीके से डूडल बनाकर याद किया, जिसे हर इंटरनेट यूजर देख रहा होगा।

कार्नेलिया सोराबजी नासिक के एक पारसी परिवार में 15 नवंबर, 1866 को जन्मीं थीं। कार्नेलिया ने महिलाओं के हित में कई ऐसे काम किए जिसके लिए उन्हें इतिहास हमेशा याद रखेगा और महिलाएं तो उनकी हमेशा शुक्रगुजार रहेंगी। समाज सुधारक के बतौर उन्होंने महिलाओं और नाबालिगों के अधिकारों के लिए समाज में एक लंबी लड़ाई लड़ी थी।

वर्ष 1892 में कार्नेलिया सोराबी कानून की पढ़ाई के लिए विदेश गई थीं और वहां से 1894 में वापस भारत लौटीं। गौरतलब है कि उन्होंने ऐसे वक्त में कानून की पढ़ाई की, जब कानून का क्षेत्र महिलाओं के लिए लगभग वर्जित समझा जाता था यहां तक की कानून में भी इसकी मनाही थी। हमारा समाज भी महिलाओं को लॉ को पेशा बनाने की इजाजत नहीं देता था, न ही अधिकार। भारत से वकालत की पढ़ाई करने आॅक्सफोर्ड जाने वाली वो पहली महिला थीं।

लेकिन कार्नेलिया ठान चुकी थीं कि इस वर्जित क्षेत्र में महिलाओं की एंट्री किसी भी तरह करवानी है, तो उन्होंने महिलाओं को विदेश से लौटने के बाद कानूनी परामर्श देना प्रारंभ कर दिया। वो यह सब इसलिए बखूबी कर पाती थीं, क्योंकि कानून की पढ़ाई के साथ—साथ वे समाज सुधारक और लेखिका भी थीं। उन्होंने महिलाओं के लिए वकालत को पेशे के बतौर स्थापित करने के लिए लड़ाई लड़ी।

समाज सुधार तो जैसे कार्नेलिया के खून में बसता था। उनकी मां फ्रांसिना फोर्ड भी महिलाओं की शिक्षा की बहुत बड़ी पक्षधर थीं, जिन्होंने पुणे में लड़कियों को शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ाने के लिए कई स्कूल खोले। एक और बात कार्नेलिया चूंकि पांच भाइयों की इकलौती बहन थी, इसलिए भी उन्होंने वो भेद कभी नहीं महसूसा जो आमतौर पर भारतीय लड़कियों के साथ किया जाता है।

पेशे के बतौर कानून को अपनी जिंदगी में शामिल करने में वो तब 1907 में कामयाब हुईं, जब बंगाल, बिहार, उड़ीसा और असम की अदालतों में उन्हें सहायक महिला वकील के तौर पर शामिल किया गया। एक लम्बी लड़ाई लड़ने के बाद 1924 में वो उस कानून को कमजोर करने में कामयाब हुईं, जो महिलाओं के लिए वकालत को वर्जित मानता था।

वर्ष 1929 में कार्नेलिया हाईकोर्ट से सीनियर वकील के बतौर रिटायर हुईं, मगर तब तक महिलाएं काफी जागृत हो चुकी थीं। उनके अलावा और भी महिलाओं ने वकालत को पेशा बनाने की जिद ठान ली थी।

वर्ष 1954 में कार्नेलिया हमारे बीच से चली गईं, मगर महिलाओं के लिए उन्होंने जो बुनियाद खड़ी की, उस पर आज महिलाएं परमच लहरा रही हैं।

गौरतलब है कि जब कार्नेलिया वकालत पढ़ रही थीं, तब ऑक्सफोर्ड में लड़कियों को पढ़ाया जाता था, लेकिन डिग्री सिर्फ लड़कों को दी जाती थी। 1922 के बाद ऑक्सफोर्ड ने अपने इस नियम में बदलाव करते हुए लड़कियों को भी वकालत की डिग्री देनी शुरू की।

कार्नेलिया को कई क्षेत्रों में पहली महिला होने का खिताब हासिल है। ब्रिटिश यूनिवर्सिटी में पढ़ाई करने वाली वो पहली भारतीय थी। इतना ही नहीं बॉम्बे यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएट होने वाली भी वो पहली महिला थीं। कार्नेलिया ने दो आत्मकथाएं 'इंडिया कॉलिंग' औऱ 'इंडिया रिकॉल' लिखी थीं, जिनमें उनके जीवन संघर्ष के बारे में विस्तार से लिखा गया है।

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