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राजनीति

बेरोजगारी की मार झेल रही उत्तराखण्ड की ग्रामीण महिलाओं का दोहरा शोषण

Prema Negi
4 Dec 2019 4:54 AM GMT
बेरोजगारी की मार झेल रही उत्तराखण्ड की ग्रामीण महिलाओं का दोहरा शोषण
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उत्तराखंड राज्य बनने के बाद बढ़ी सबसे ज्यादा बेरोजगारी, ग्रामीण क्षेत्रों में रह रहे लोगों हुए प्रभावित, महिलाएं भी झेल रही बेरोजगारी की मार, पहाड़ी क्षेत्रों में असंगठित रुप से 30.79%, शहरी क्षेत्रों में 11.88% महिलाएं कर रही हैं काम...

अल्मोड़ा से विमला

जनज्वार। उत्तराखंड के अल्मोड़ा में असंगठित क्षेत्र में काम कर रही महिलाओं का कहना है कि हम दोहरे शोषण का शिकार हो रहीं हैं। हमें खेती-बाड़ी के काम के अलावा भी घर के सभी काम करने होते हैं। यहां पर ठेकेदार इतना काम कराता है उनकी क्षमता से कई गुना ज्यादा है काम के हिसाब से पगार भी नहीं मिलती है।

स पर नीमा देवी कहती हैं, 'मैं अपने गांव से लगभग 5-6 किलोमीटर दूर रोज सुबह 8 बजे मजदूरी करने जाती हूं। सुबह 8 बजे से शाम के 5 -6 बजे तक काम करते हैं। सिर मे ईंट ढोती हूँ, इसके अलावा सीमेंट का तशला भी उठाते हैं, 10-11 घण्टे काम करने के बाद भी हमारी पगार 230 से 300 तक ही होती है जो हमारे द्वारा किए गए श्रम से बहुत कम है जबकि पुरुषों को इस काम के ज्यादा पैसे मिलते हैं और हमें रोज काम भी नहीं मिलता।

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जिस्ट्रार जनरल ऑफ इण्डिया की एक रिपोर्ट के अनुसार महिलाओं की श्रम मे भागीदारी 2001 में 25.63%, 1991 में 22.27% व 1981 में 19.67% की वृद्धि हुई। 2001 में महिलाओं की ग्रामीण क्षेत्र में श्रम में भागीदारी दर 30.79% थी। शहरी क्षेत्रों में 11.88%, शहरी क्षेत्र में लगभग 80% महिलाएं संगठित क्षेत्र में काम कर रही हैं।

दीपा कहती हैं, 'गर्मी हो, बरसात हो या फिर सर्दी हो, मैं रोज सुबह 7 बजे काम पर निकल जाती हूँ। यहां से पांच किलोमीटर दूर पैदल चल कर जाती हूं। हम घर भी संभालते हैं और काम भी कर रहे हैं फिर भी हमें ना घर में इज्जत मिलती है ना समाज में। जब भी हम काम पर जाते हैं तो लोगों की नजरें हमें घूर रही होती हैं। दीपा आगे कहती हैं, 'मेरे 3 बच्चे हैं, उनकी पूरी जिम्मेदारी मुझ पर ही है। कहीं 250 मिलता है तो कहीं 270 रुपये। काम इतना ज्यादा होता है कि हमारी शारीरिक श्रम से कई गुना कम पगार मिलता है, जबकि हमसे काम इतना अधिक लिया जाता है।

त्तराखंड राज्य बनने के बाद सबसे ज्यादा बेरोजगारी बढ़ी है। इसका असर ग्रामीण क्षेत्रों में रह रहे लोगों पर हुआ है। महिलाएं भी बेरोजगारी की मार झेल रही हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में पहले महिलाएं खेतीबाड़ी और घर का काम ही करती थीं। आज पहाड़ी क्षेत्रों में असंगठित रुप से 30.79%, शहरी क्षेत्रों में 11.88% महिलाएं काम कर रही हैं, जबकि शहरी क्षेत्र में लगभग 80% महिलाएं संगठित क्षेत्र में काम कर रही हैं।

ग्रामीण क्षेत्रों में पहले महिलाएं खेतीबाड़ी और घर का काम ही करती थीं। आज पहाड़ी क्षेत्रों में असंगठित रूप से काम करने वाली महिलाओं की संख्या में वृद्धि हुई है। ये महिलाएं सड़क किनारे पत्थर तोड़ते हुए, ईटें ढोते, इस तरह का काम करते हुए दिख रही हैं।

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रिता बतातीं है, 'लखीमपुर लखनऊ से काम की तलाश में अल्मोड़ा आयी हूं। लखनऊ से ठेकेदार हमें आवासीय विद्यालय अल्मोड़ा में काम कराने के लिए कहते हैं। पति और बच्चे भी साथ में ही आये हैं। सरिता कहती हैं, 'मैं पांच साल से यहां काम कर रही हूं तबसे आज तक मुझे 250 रु ही मजदूरी मिलती है और उसमें भी रोज काम नहीं मिलता। मेरे पति भी यही काम करते हैं, उनको 350 रु मिलता है।'

तुलसी देवी कहती हैं, 'लेबरी करती हूं 270 रु मिलता है। इसमें घर कहां चलता है। ग्रामीण रोजगार गारंटी ( नरेगा ) में भी काम नहीं मिलता। पूरे साल मे केवल दो दिन ही काम दिया जबकि भारतीय संसद द्वारा 2006 में राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम 2005 योजना ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार शुरू करने के लिए की गई ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा कार्यान्वित राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी (नरेगा) 2005 का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों के परिवारों की आजीविका को बढाना है जिसके अन्दर घर के एक व्यस्क व्यक्ति को 100 दिन काम दिये जाने की गारंटी है जिससे ग्रामीण गरीबों को आजीविका के आधार को मजबूत किया जा सके।

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सामाजिक कार्यकर्ता अमीन ऊर्र रहमान लम्बे समय से मजदूरों के बीच में काम कर रहें हैं, वह कहतें हैं, 'असंगठित क्षेत्र में काम कर रहे मजदूरों का शोषण तो किया ही जाता है। श्रम के हिसाब से पैसा बहुत कम मिलता है। ठेकेदारों की मनमानी चलती है जो महिला श्रमिक हैं उनसे काम पुरुषों के बराबर ही कराया जाता है, लेकिन पगार पुरुषों के ठीक आधा या उससे भी कम दी जाती है। कार्य क्षेत्र पर तो महिलाओं के श्रम का शोषण तो हो ही रहा है। घर में भी उन्हें शोषण सहना पड़ता है।

ह कहते हैं, 'रोजगार गारंटी में 100 दिन रोजगार की गारंटी दी गयी है, लेकिन उसमें भी मजदूरों को काम नहीं मिलता। नरेगा में मजदूरों की पगार बहुत ही कम है जो श्रम के हिसाब से बहुत कम है। ऐसी ही बहुत सारी ग्रामीण महिलाएं हैं जो असंगठित क्षेत्र में काम कर रहीं हैं और घर, समाज, ठेकेदार तीनों का शोषण सह रही हैं जबकि हमारे प्रधानमंत्री आए दिन रोजगार देने का दावा करते हैं बेरोजगारी को खत्म करने की बात करते हैं।'

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