फिर से राजस्थान पर राज करने के लिए वसुंधरा निकालेंगी सुराज यात्रा
राजस्थान में भाजपा के पक्ष में माहौल बनना अभी मुश्किल दिख रहा है। उपचुनावों में मिली करारी हार, पार्टी में अंदरूनी गुटबाजी, कांग्रेस का बढ़ता जनाधार और साथ में बसपा, आप, लेफ्ट और हनुमान बेनीवाल जैसे राजनीतिक फेक्टर राज्य में हलचल करते दिख रहे हैं...
उदयपुर से गौरव कुमार की रिपोर्ट
वसुंधरा राजे, भाजपा की वो मुख्यमंत्री जिसका विकल्प पार्टी के भीतर हर नेता निकालना चाहता है लेकिन जिसने भी ये कोशिश की है उसने या तो मुँह की खाई है या फिर उसे समझौता करना पड़ा है। फिर चाहे वो घनश्याम तिवाड़ी हो या वर्तमान में राजस्थान सरकार के गृहमंत्री गुलाबचंद कटारिया!
घनश्याम तिवाड़ी विधायक बनने के बाद से ही बगावती सुर में नज़र आ रहे थे। इसके लिए उन्होने "मोदी तुझसे बैर नहीं, वसुंधरा तेरी खैर नहीं" का रणनीतिक नारा भी दिया। इस मारे के जरिये कवायद थी संघ और भाजपा के भीतर बैठे वसुंधरा विरोधी खेमे को साधने की। लेकिन तिवाड़ी इसमें विफल रहे और उन्होंने अपनी नई पार्टी बनाने के साथ ही समूची भाजपा को तानाशाह कहते हुए पार्टी से विदाई ले ली।
अगर बात करें संघ के चहेते गुलाबचंद कटारिया की तो संघर्ष इनका भी कम नहीं है। वसुंधरा सरकार के गठन के बाद भी लम्बे समय तक गृहमंत्रालय महारानी ने अपने पास रखा। लेकिन लम्बी खींचतान के चलते वो यह मंत्रालय ज्यादा देर तक अपने पास नहीं रख पाईं और उन्हें सम्मान पूर्वक कटारिया को मंत्री पद देना पड़ा।
हालांकि अधिकारियों के तबादले और प्रमोशन के अधिकार मुख्यमंत्री ने अपने पास ही रखे। ऐसा इसलिए क्योंकि केंद्रीय भाजपाई नेतृत्व हो या संघ, हर कोई वसुंधरा के सामने एक विकल्प खड़ा देखना चाहता था, जिसमें संघ के करीबी कद्दावर नेता कटारिया से बेहतर विकल्प कोई हो नहीं सकता था। वसुंधरा भी ये जानती थी।
इसी के चलते गुलाबचंद कटारिया को अपने पाले में लाने की कवायद हुई और जिमसें मुख्यमंत्री साहिबा कामयाब भी रहीं। ये जगजाहिर है कि वसुधंरा को राज्य में धन बल और कार्यकर्ता का अपार समर्थन हासिल है, जिसका तोड़ राज्य में किसी नेता के पास नहीं है।
अब बात 4 अगस्त से शुरू हो रही मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की सुराज गौरव यात्रा की, जिसकी शुरूआत राजसमन्द जिले के चारभुजा मन्दिर से होगी। राजस्थान के 4 साल के सियासत में सब कुछ ठीक चल रहा हो, ऐसा भाजपा के लिए कहना आसान नहीं - चाहे वो सरकार की बात हो या संगठन की।
ऐसे में अपनी यात्रा के लिए राजसमन्द से चुनावी बिगुल बजाने का मतलब है उदयपुर संभाग की 28 सीटों को साधने का। वसुंधरा ये बेहतर जानती है कि जो मेवाड़ को फतह करेगा जयपुर पर राज उसी का होगा। ऐसा इसलिए क्योंकि आदिवासी बहुल इलाके जैसे बांसवाड़ा,डूंगरपुर और प्रतापगढ़ आदि उदयपुर संभाग के हिस्सा हैं। इन जिलों की एसटी के लिए आरक्षित सीटों को जीतने के लिए भाजपा आदिवासियों पर विशेष फोकस कर रही है।
इस पूरी यात्रा की कमान संभालेंगे प्रदेश अध्यक्ष पद छोड़ चुके अशोक परनामी! गृहमंत्री गुलाब चंद कटारिया, समाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्री अरूण चतुर्वेदी, ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज मंत्री राजेन्द्र राठौड चारभुजा जी के लिए रवाना होंगे। इस मौके पर आदिवासी समुदाय को साधने के लिए राज्यसभा सांसद किरोड़ीलाल मीणा का लाभ भरपूर लेने की उम्मीद है।
ये यात्रा इसलिए भी अहम हो जाती है क्योंकि राजस्थान में भाजपा के पक्ष में माहौल बनना अभी मुश्किल दिख रहा है। उपचुनावों में मिली करारी हार, पार्टी में अंदरूनी गुटबाजी, मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस का बढ़ता जनाधार और साथ में बसपा, आप, लेफ्ट और हनुमान बेनीवाल जैसे राजनीतिक फेक्टर राज्य में हलचल करते दिख रहे हैं।
राज्य सरकार के खिलाफ बीते 4 साल में कई आंदोलन भी देखने को मिले हैं फिर चाहे वो सीकर से निकला किसान आंदोलन हो, बेरोजगार संघ का हल्ला बोल या फिर गुर्जर समेत कई समाज का बार बार सत्ता के खिलाफ बगावती सूर पकड़ने की बात हो। हालात भाजपा की मुश्किलें पैदा करने वाले हैं। इस खतरे को भांपते हुए सभी जनप्रतिनिधियों को 45 दिन में 200 विधानसभा क्षेत्रों के दौरे करने के निर्देश दिए हैं।
यूं तो वसुंधरा राजे ख़ुद को राजपूत की बेटी, जाट परिवार की बहू और गूजरों की संबधी बताती हैं और एक महिला नेता होने के चलते राज्य की इस आबादी में भी उनकी खास पकड़ उन्हें किसी भी नेता से अलग बनाती है, लेकिन अब हालात बदल चुके हैं।
इन्हीं हालातों को साधने के लिए वसुंधरा राजे निकली हैं सुराज यात्रा पर अपनी उपलब्धियों को गिनाने के लिए। ये कहना वाक़ई मुश्किल है कि राजस्थान 5 साल में सत्ता परिवर्तन का ट्रेंड खत्म करेगा या एक दफा कांग्रेस फिर वापसी करेगी।