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समाज

इलाहाबाद के देहाती इलाकों में पानी का संकट, गरीब लोग भाग रहे गांव छोड़कर

Prema Negi
3 Jun 2019 5:10 AM GMT
इलाहाबाद के देहाती इलाकों में पानी का संकट, गरीब लोग भाग रहे गांव छोड़कर
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तपती दोपहरी में भी सड़कों और पगडंडियों पर स्त्रियां और बच्चे सिर पर बाल्टी, गगरी और मटकी लिए पानी के लिए भटकते देखे जा सकते हैं, 2500 आबादी वाले शिवराजपुर में हैं कुल 6 हैंडपंप, जिसमें से 2 पड़े हैं खराब और एक हैंडपंप ग्राम प्रधान ने लगवा रखा है अपने घर के अंदर...

इलाहाबाद से सुशील मानव की रिपोर्ट

1 जून को 46 डिग्री तापमान में अपने मित्र पवन यादव के साथ उनकी बाइक पर सवार हो इलाहाबाद जिले के उन क्षेत्रों के ग्राउंड रिपोर्टिंग करने गया, जहां लोग पानी की किल्लत से पलायन को मजबूर हैं। बारा क्षेत्र पार करते ही पवन यादव बताते हैं, ये लोहगरा है। पाठा क्षेत्र यहीं से शुरु होता है, यहीं लोहगरा से पानी की किल्लत भी शुरु होती है जो चित्रकूट, झांसी, बांदा, हमीरपुर, भिंड, मुरैना, ग्वालियर तक चलती जाती है।

पानी की कमी से जूझते 3 दर्जन से अधिक गांव

शंकरगढ़, लोहगरा, गेरुआई, लौंदखुर्द, गोल्हैया, बरगड़ी, भैंसहाई, कठहा, गढ़वा, रमना, घोंद, गाढ़ा कटरा, हड़ही, गुलराहाई, आमगोंदर, टकतई, जनवा, बिहरिया, चिपिया, बदावाँ, लखनपुर, हिनौती, तालापार, चुंदवा, शिवराजपुर, क्वारी नंबर 4 व 5, वैसा, मलापुर, कपसोअंतरी,जोरमठ, बेरुई, मलापुरा, खानसेमरा, ग्रामसभा गीज, जोरवट, रानीगंज, कल्यानपुर, पगुवार, ललई, पहाड़ीकला, लखनौटी छेड़ी गांव, वेमरा पंचायत आदि गांव व कस्बे पानी की कमी से बहुत बुरी तरह जूझ रहे हैं।

आदिवासी, दलित बाहुल्य क्षेत्रों में हालात बद से भी बदतर

दलित, आदिवासी सपेरों के पुरवों में संसाधनों की अनुपलब्धता के चलते हालात बहुत ज्यादा खराब हैं। छेड़ी गांव में तो एक भी हैंडपंप और कुआं नहीं हैं। शंकरगढ़ मेन के अलावा सपेरे समुदाय के बाहुल्य वाले जज्जी का पूरा, आदिवासी बाहुल्य वाला शिवराजपुर, तालापार, कपारी, जैसे जगहों पर स्थितियां इतनी बदतर हैं कि लोग वहां से पलायन कर रहे हैं।

तपती दोपहरी में भी सड़कों और पगडंडियों पर आपको स्त्रियां और बच्चे सिर पर बाल्टी, गगरी और मटकी लिए पानी के लिए भटकते मिल जाएंगे। स्थानीय निवासी सुखलाल बताते हैं कि 2500 आबादी वाले शिवराजपुर में कुल 6 हैंडपंप हैं, जिसमें से 2 खराब पड़े हैं। एक हैंडपंप ग्राम प्रधान ने अपने घर के अंदर लगवा रखा है।

पानी के अभाव में पलायन कर चुके लोगों का घर

शिवराजपुर की अनारो बताती हैं, यहां सप्लाई पानी का कनेक्शन नहीं है। एक सरकारी टंकी और टयूबवेल है पर वो महीनों से खराब पड़ा है। इस बाबत जब हमने शिवराजपुर के ग्रामप्रधान जमुना कोल से बात की तो उन्होंने बताया कि हां खराब पड़ा है, मिस्त्री को बुलाया है वो जब आ जाएगा तो बन जाएगा।

पानी की किल्लत के चलते लोगों के पलायन की बात पूछने पर जमुना कोल बताते हैं लोग पानी के चलते नहीं रोजगार के चलते गांव छोड़कर जा रहे हैं। जब उनसे पूछा कि रोजगार के लिए परिवार से एक दो आदमी जाएगा कि पूरा परिवार ही बच्चों समेत चला जाएगा। इस पर जमुना प्रसाद निरुत्तर हो गए। ग्राम प्रधान जमुना प्रसाद कहते हैं कि वो गांव में मनरेगा का काम नहीं करवाते, क्योंकि उसका पैसा नहीं आता है। जबकि काम करने के बाद पैसे के लिए लोग घर तक चढ़ आते हैं।

पानी के टैंकर सिर्फ कस्बों में जाते हैं गांव में नहीं

पानी के टैंकर सिर्फ शंकरगढ़ जैसे कस्बों तक ही जाता है जहां बाजार है और मीडिया की पहुंच है। शहर कस्बे से हटकर बसे तालापार और शिवराजपुर जैसे गांवों में पानी के टैंकर नहीं आते। रानीगंज चिकानटोला के वार्ड नंबर 4 में एक भी नल और तालाब नहीं है। लोग लाइन पार के सरकारी टंकी से पानी ले आते हैं। राकेश बसोढ़ बताते हैं कि एक सरकारी टंकी है जिसमें कभी पानी आता है कभी नहीं आता।

शंकरगढ़ पटेलनगर वार्ड नंबर 4 के गिरिजेश बाबू बताते हैं, हमारे वार्ड में टैंकर नहीं आता। वार्ड से आधा किलीमीटर की दूरी पर एक सरकारी टंकी है, उसे हम लड़-झगड़कर जबर्दस्ती चलवाते हैं। वो बताते हैं कल रात तो इलाके के लोगोंरात के 12 बजे जुटकर टंकी भरवाई। गिरिजेश आगे कि शंकरगढ़ में कुल 16 वार्ड है और हर वार्ड में एक सरकारी टंकी बनी है पर पानी सबमें आता ही ये नहीं कहा जा सकता। जबकि नलों में पिछले एक महीने से सप्लाई का पानी नहीं आ रहा है।

प्यास से मर रहे मवेशी, किरायेदारों की आफ़त

शंकरगढ़ के आसपास के क्षेत्रों में प्यास से दर्जनों मवेशियों की मौत हो चुकी है। अनारों बताती हैं कि यहां जब इंसानों के लिए पानी के लाले पड़े हैं, तो मवेशियों के लिए पानी कहां से लाएं। राजकली बताती हैं लोगों ने अपने जानवरों को खुला छोड़ दिया है ताकि जानवर चालू नलों की नालियों का गंदा पानी पीकर अपनी जान तो बचा सकें। वहीं किराये का मकान लेकर रहने वालों की तकलीफें भी बढ़ गई है। पानी के एवज में मकान मालिक उनसे दोगुना किराया ले रहे हैं। कई किरायेदारों को तो पानी की समस्या के चलते भाड़े के कमरे ही नहीं मिल पा रहे हैं।

यह तस्वीर उत्तर प्रदेश के जालौन की है, जहां लोग पीने के पानी के लिए पूरी तरह टैंकरों पर निर्भर हैं। Photo : Pankaj Sahay

350-400 फीट के बोर में भी नहीं आता पानी

शंकरगढ़ के डॉ मजूमदार बताते हैं पिछले 10 साल में वो चार बोरिंग करवा चुके हैं। कई नई बोरिंग में भी पानी नहीं है, जबकि एक बोरिंग करवाने का खर्च एक लाख से ज्यादा है। लोग इतना पैसा खर्च करके बोरिंग करवा भी लें तो इस बात की गारंटी नहीं है कि उन्हें नई बोर से पानी मिल ही जाएगा। डॉ मजूमदार के मुताबिक, पिछली बार उन्होंने 390 फीट पर बोर करवाई थी, हफ्ते भर तो पानी आया पर हफ्ते भर बाद ही पानी आना बंद हो गया। 350 फीट के बोर में पानी ही नहीं है। कम से कम 500 फीट के बोर पर पानी है।

शंकरगढ़ बाजार में पान का खोखा लगाने वाले अनिल बताते हैं कि शंकरगढ़ में रोजाना 5-6 टैकर आते हैं। टैंकर आते ही लोगों में पानी पाने की होड़ मच जाती है। कई बार ये होड़ जानलेवा हद तक हिसंक हो जाती है।

शादी ब्याह के लिए 2000-3000 हजार में मिलते हैं पानी टैंकर

पानी की तमाम दिक्कतों के बावजूद जिंदगी नहीं रुकती। शिवराजपुर समेत कई गांवों में दर्जनों घरों में शादियां है। दीपक बताते हैं कि 29 मई को उनके बेटे की शादी है। शादी के लिए पानी की व्यवस्था करना एक मुश्किल काम है। सोर्स सिफारिश लगाकर कहीं से पानी टैंकर की व्यवस्था हो भी जाए तो एक पानी टैंकर का 2 से 3 हजार रुपए लगते हैं।

वाशिंग प्लांट और क्रेशर प्लांटों ने स्थिति को बनाया है और दयनीय

सिर्फ शंकरगढ़ में ही सौ से ज्यादा वाशिंग प्लांट चल रहे हैं। हमने कई वाशिंग प्लाटों की साइट पर जाकर देखा ट्रकों में लदे बाली से पानी झर रहा था, जबकि कई प्लांटों में सिलिका की धुलाई का काम जारी था। तपती दोपहरी में बालू धोकर बोरियों में भर रही एक लड़की रन्नो ने बताया कि उन्हें 5 रुपए प्रति बोरी के दर से पैसा मिलता है, जबकि दिन भर में वो लोग 50-60 बोरी सिलिका सैंड धो लेते हैं। वाशिंग प्लांट चलाने वाले खनन माफियाओं के पास 600 फीट से गहरे और तगड़े बोर होते हैं जो 500 फीट के वॉटर लेवल से भी पानी खींचकर जलस्तर को और नीचे गिरा दे रहे हैं।

धुलाई के बाद सिलिका सांड बोरियों में भरते हुए लोग

शंकरगढ़ समेट तमाम क्षेत्रों में पहाड़ को तोड़कर गिट्टी में तब्दील करने के लिए कई क्रेशर प्लांट लगे हैं। इनमें भी पानी की काफी खपत होती है। बारा में एक गन्ना क्रेशर प्लांट है, बरगड़ी में 2 क्रेशर प्लांट हैं,मध्यप्रदेश के बॉर्डर से लगे गँडरगँवा में एक क्रेशर प्लांट है, छीरी गुड़मटी में एक क्रेशर प्लांट है।

थर्मल पॉवर प्लांट की वजह से गंभीर जल संकट

लोहगरा से आधा घंटे के सफर के बाद कपारी ग्रामसभा में हमारा सामना होता है जेपी पॉवर प्लांट से, जहां 660 मेगावाट बिजली उत्पादन के तीन संयंत्र लगाए गए हैं। 1000 मेगावाट के पॉवर प्लांट को चलाने के लिए 4000 क्यूबिक मीटर प्रति घंटा पानी की ज़रूरत होती है। एक क्यूबिक मीटर के बराबर एक हजार लीटर होता है, जबकि बिजली के उत्पादन में करीब 40 प्रतिशत पानी नष्ट होता है।

जेपी कारखाने से सटे कपारी गांव की हालत ये है कि वहां नलों से पानी तो आते हैं पर पूरी तरह से प्रदूषित। इन पानी जंग लगे लाल होते हैं पानी तो थोड़ी देर बाल्टी में रखकर छोड़ दो तो पूरा पानी लाल हो जाता है। पानी में छूही (चूना) भी घुला होता है। सपेरे समुदाय से ताल्लुक रखने वाले अयोध्यानाथ इसका कारण बताते हैं कि जेपी थर्मल पॉवर प्लांट ने पानी के स्टोरेज के लिए जो 55 बीघे में पानी का डैम बना रखा है, उसमें राख, चूना आदि घुला होता है। इसी के चलते कपारी गांव के नलों में प्रदूषित पानी आता है।

जमीन अधिग्रहण किया थर्मलपॉवर प्लांट के लिए और बना लिया सीमेंट प्लांट

कपारी की पूर्व प्रधान रजवंता देवी बताती हैं कि जेपी प्लांट जब लगाया गया था तब जेपी पॉवर प्लांट के लिए लिए ही लोगों की जमीन अधिगृहीत की गई थी, लेकिन बाद में प्लांट की राखड़ से सीमेंट बनाने का प्लांट भी कंपनी ने गुपचुप तरीके से लगा लिया। लोगों ने एकजुट होकर जब इसका विरोध किया तो तत्कालीन डीएम सुहास एल वाई ने सीमेंट प्लांट बंद करवाते हुए कहा कि प्लांट तो मैं बंद करवा दे रहा हूं, पर अब मैं यहां कितने दिक टिक पाउंगा कह नहीं सकता और इसके कुछ दिन बाद ही उनका ट्रांसफर कर दिया गया।

इसके बाद उत्तर प्रदेश के वर्तमान उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या ने अवैध तरीके से बनाई गई जेपी सीमेंट प्लांट को फिर से चालू करवा दिया। संकल्प एनजीओ से जुड़े मूलचंद यादव बताते हैं कि कहने को तो जेपी पॉवर प्लांट और सीमेंट प्लांट में जमुना से पानी आता है लेकिन हक़ीक़त इसके उलट है। वो बताते हैं कि कंपनी के अंदर 12 इंच व्यास के करीब डेढ़ हजार बोर हैं, इन बोर की गहराई 500-600 फीट है।

सैकड़ों प्लांट होने के बावजूद शंकरगढ़ क्षेत्र में जबर्दस्त बेरोजगारी

सिर्फ शंकरगढ़ में ही सैंकड़ो प्लांट व कारखाने होने के बावजूद जबर्दस्त बेरोजगारी व्याप्त है। शिवराजपुर की उन्नी देवी गिट्टी तोड़ने का काम करती हैं। वो बताती हैं कभी काम मिलता है कभी नहीं, क्योंकि अधिकतर गिट्टी तोड़ने का काम अब क्रेशर मशीनों से ही हो जाता है। वो अपने हाथ का अंगूठा दिखाते हुए बताती हैं कि गिट्टी तोड़ने से उनके हाथ का अंगूठा घिस गया है इसके चलते उन्हें राशन भी नहीं मिल पाता है क्योंकि मशीन उनका अंगूठा नहीं लेती है।

वहीं परिवार समेत सिलिका सैंड धोने का काम करने वाले इंद्रसेन बताते हैं कि धुलाई का काम अब ऑटोमैटिक मशीनों से होने लगा है, जबकि सिलिका सैंड को हटाने लादने का काम जेसीबी करती है इससे काम होने के बावजूद अब काम नहीं मिल पाता है। वहीं जेपी पॉवर प्लांट में पहले लैंडलूजरों को 6 हजार रुपए के मासिक वेतन पर कंपनी ने रखा था। फिर उन्हें भी नौकरी छोड़ने पर 1 लाख रुपए देने की बात कहकर नौकरी से निकाल दिया गया, ताकि यूनियन को खत्म किया जा सके।

सरकारी तंत्र के असंवेदशीलता का परिणाम है शंकरगढ़ में पानी संकट

नौजवान भारत सभा के जिला संयोजक भीमलाल बताते हैं कि पिछले 5-6 साल से शंकरगढ़ में बारिश नहीं हुई है, जबकि खनन माफियाओं के बोर डस्ट से जलाशय पट गए हैं। सिलिका सैंड की 4 राउंड धुलाई होती है जिसमें पानी की काफी खपत होती है। इसके अलावा पहले सरकारी योजनाओं के तहत पहाड़ों पर मेड़बंदी करवाकर बारिश का पानी रोककर उनका भंडारण किया जाता था, अब मेड़बंदी नहीं करवाई जाती जिससे बारिश का पानी बह जाता है।

यह तस्वीर उत्तर प्रदेश के जालौन की है, जहां लोग पीने के पानी के लिए पूरी तरह टैंकरों पर निर्भर हैं।
Photo : Pankaj Sahay

शिवराजपुर चौराहे के पास ही वन विभाग केंद्र का मुख्यालय है, जिसमें 250 के करीब स्टाफ है, लेकिन वो अपने कर्तव्यों के प्रति उदासीन हैं। इसके अलावा सिर्फ गोहनिया से लोहगरा तक पच्चीसों हजार पेड़ काट दिए गए, ये सब विकास के नाम पर और सड़कों की चौड़ाई बढ़ाने के लिए किया गया।

कराहती मानवता के बीच पूरी बेशर्मी से अट्ठहास करता बाज़ार

शंकरगढ़ में दो आरओ प्लांट और कपारी में एक आरओ प्लांट चल रहे हैं, जो पैसेवालों के घरों में फिल्टर पानी पहुंचा रहे हैं। एक आरओ प्लांट से कितना पानी बर्बाद होता है ये बताने की ज़रूरत नहीं है। छोटे दुकानदार नल का पानी भी 2 रुपए प्रति पैकेट बेच रहे हैं। पानी की तमाम दुरूहताओं के बावजूद यहां कई नई कंपनियों और फैक्ट्रियों के लिए धड़ाधड़ जमीन का अधिग्रहण हो रहा है। भारत पेट्रोलियम ने रिफाइनरी फैक्ट्री के लिए 4 हजार बीघे जमीन की अधिग्रहण किया है। वहीं महाकौशल ग्रुप द्वारा शंकरगढ़ में डिस्टलरी लगाने का प्रस्ताव है, जो खराब अनाज से शराब बनाएगी।

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