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विमर्श

अयोध्या भूमि विवाद में और क्या करता सुप्रीम कोर्ट!

Prema Negi
10 Nov 2019 4:17 AM GMT
अयोध्या भूमि विवाद में और क्या करता सुप्रीम कोर्ट!
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बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने किसी को नहीं दिया मालिकाना हक, क्योंकि मालिकाना हक साबित करने में हिन्दू-मुस्लिम दोनों पक्ष रहे विफल और यूपी सरकार को सौंपता विवादित जमीन तो खुल जाता विवादों का पिटारा

वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह का विश्लेषण

जनज्वार। अयोध्या भूमि विवाद में हिन्दू पक्ष या मुस्लिम पक्ष में से कोई भी यह प्रमाणित करने में असफल रहा कि विवादित जमीन पर उसका मालिकाना हक है। राजस्व अभिलेखों में यह विवादित जमीन नजूल के रूप में दर्ज़ है, इसलिए इस विवादित भूमि को यदि उच्चतम न्यायालय नजूल के रूप में उत्तर प्रदेश सरकार को सौंप देता तो इसके इस्तेमाल को लेकर यदि राजनीतिक और भावनात्मक निर्णय राज्य सरकार द्वारा लिए जाते तो विवादों का पिटारा खुल जाता।

म्भवतः इसलिए उच्चतम न्यायालय ने जहां निर्मोही अखाड़े, सुन्नी वक्फ बोर्ड और राम जन्मभूमि न्यास को जमीन का मालिकाना हक नहीं दिया है, वहीं रामलला को विवादित जमीन सौंपते हुए उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि जहां बहुत से हिंदू मानते हैं कि भगवान राम का जन्म हुआ था, उस जमीन पर मंदिर के निर्माण के लिए तीन महीने के अंदर ट्रस्ट बनाया जाना चाहिए। लेकिन उच्चतम न्यायालय ने इसके साथ ही साथ मस्जिद के निर्माण के लिए अयोध्या में किसी प्रमुख स्थान पर 5 एकड़ जमीन के आवंटन का भी निर्देश दिया है।

संविधान पीठ के 726वें पैराग्राफ के अनुसार 1861,1893-फ़ैजाबाद (अयोध्या) के वर्ष 1861 और 1893,94- और 1936-37 के के राजस्व बन्दोबस्त के अभिलेख उपलब्ध हैं। खसरा खतौनी खेवट और इन तीनों बन्दोबस्त के अभिलेख उपलब्ध हैं। नजूल भूमि की सर्वे रिपोर्ट 1931 भी उपलब्ध है। इन तीनों बन्दोबस्त और नजूल सर्वे रिपोर्ट में विवादित भूमि को कहीं जन्म स्थान तो कहीं राम जन्मभूमि के रूप में दर्ज़ किया गया है।

वास्तव में अयोध्या विवाद पर उच्चतम न्यायालय के फैसले से स्पष्ट है कि वह किसी तरह के किंतु-परंतु की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ना चाहता था, इसलिए इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को दरकिनार करते हुए उच्चतम न्यायालय आदेश दिया कि अयोध्या की विवादित जमीन रामलला विराजमान को दी जा रही है। इसके साथ ही उच्चतम न्यायालय ने मंदिर-मस्जिद दोनों का भविष्य तय कर दिया और अयोध्या का सदियों पुराना भूमि विवाद लंबी सुनवाई और कानूनी जिरह के बाद इस फैसले से निपटा दिया है।

ब इस फैसले की आलोचना इस बात के लिए की जाय कि जब किसी का भी मालिकाना हक नहीं है तो रामलला को ही विवादित जमीन क्यों दी गयी तो इसका जवाब यही है कि यदि नजूल की जमीन को राज्य सरकार को दे दिया जाता तो वह जमीन रामजन्म भूमि न्यास को वो दे देती। ऐसे में सवाल है कि क्या अयोध्या में किसी प्रमुख स्थान पर मस्जिद के लिए 5 एकड़ जमीन मिलती?

सके बाद विवाद अलग से उत्पन्न होता। जब विवादित स्थल पर बहर राम चबूतरे पर पूजा और ढांचे के भीतर न्म्ह्ज पढ़ी जाती थी और 1949 के बाद ढांचे के भीतर रामलला की मूर्तियां रख दी गयीं और पूजा होने लगी तो इस विवाद के अंत के लिए इससे ज्यादा संतुलित फैसला सम्भव नहीं था।

संविधान पीठ ने फैसला दिया है कि हिंदुओं को कुछ शर्तों के साथ भूमि दी जाएगी और केंद्र को एक नई मस्जिद बनाने के लिए सुन्नी वक्फ बोर्ड को 5 एकड़ प्लॉट वैकल्पिक जमीन देने का आदेश दिया है। संविधान पीठ के आदेश में इसे अयोध्या के किसी प्रमुख स्थान पर या फिर 1993 में विवादित भूमि के चारों ओर की अधिग्रहित 67 एकड़ जमीन पर वैकल्पिक जमीन देने की बात कही है।

संविधान पीठ ने कहा है कि यह जमीन अवैध तरीके से बाबरी मस्जिद को तोड़ने के 'बदले' में दी जाएगी। सुन्नी वक्फ बोर्ड को जमीन सौंपने का काम और मुकदमा नंबर 5 के फैसले के तहत विवादित जमीन जिसमें अन्दर और बाहर के आँगन शामिल हैं, को सौंपने का काम साथ-साथ होना चाहिए।

योध्या में राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद के बीच जमीन विवाद पर संविधान पीठ ने अपने फैसले में पूरी विवादित जमीन पर रामलला विराजमान का हक माना है। संविधान पीठ ने कहा कि विवादित जमीन पर रामलला का दावा मान्य है। इस जमीन पर मंदिर निर्माण की रूपरेखा तैयार करने के लिए केंद्र सरकार को तीन महीने में ट्रस्ट बनाने का आदेश दिया गया है। केंद्र सरकार ही ट्रस्ट के सदस्यों का नाम निर्धारित करेगी।

संविधान पीठ ने मुस्लिम पक्ष और हिंदू पक्ष की तमाम दलीलों का जिक्र करते हुए एएसआई की रिपोर्ट्स को अहम माना है। संविधान पीठ ने भले जमीन का अधिकार रामलला विराजमान को दिया है, लेकिन इस मामले में पक्षकार हिंदू पक्ष के दावों को भी खारिज किया है। सबसे बड़ा झटका निर्मोही अखाड़े और राम जन्मभूमि न्यास को लगा है। संविधान पीठ ने अपने फैसले में ये भी स्पष्ट कर दिया कि भले ही एएसआई को मिला ढांचा गैर मुस्लिम था, लेकिन मस्जिद बनाने के लिए किसी मंदिर को तोड़ने के कोई सबूत नहीं मिले हैं।

संविधान पीठ ने जन्मभूमि के प्रबंधन का अधिकार मांगने की निर्मोही अखाड़ा की याचिका खारिज कर दी। हालांकि संविधान पीठ ने केंद्र से कहा है कि मंदिर निर्माण के लिए बनने वाले ट्रस्ट में निर्मोही अखाड़े को किसी तरह का प्रतिनिधित्व दिया जाए।इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में जमीन के तीन हिस्सों में से एक हिस्सा निर्मोही अखाड़े को भी दिया था। इस फैसले को ही उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गई थी।

संविधान पीठ ने जन्मभूमि न्यास और निर्मोही अखाड़े को मालिकाना हक नहीं दिया। मुस्लिम पक्ष को वैकल्पिक जमीन केंद्र और योगी सरकार अयोध्या में देगी। फैसले में कहा गया है कि कि विवादित जमीन के बाहरी और आंतरिक हिस्से पर रामलला का हक है। इसके लिए एक ट्रस्ट का गठन किया जाए। इस ट्रस्ट का गठन सरकार करेगी।फैसले में ने सरकार को ट्रस्ट में सदस्यों को चुने जाने का अधिकार दिया गया है। तीन महीने में ट्रस्ट बनने के बाद विवादित जमीन और अधिग्रहित भूमि के बाकी हिस्से को सौंप दिया जाएगा। इसके बाद ट्रस्ट राम मंदिर निर्माण की रूपरेखा तैयार करेगा।

संविधान पीठ ने यह भी कहा कि 1992 में बाबरी मस्जिद को ढहाना और 1949 में मूर्तिया रखना गैरकानूनी था। संविधान पीठ ने अपने 1,045 पन्नों के फैसले में कहा है कि हिंदुओं का विश्वास कि भगवान राम का जन्म विध्वंस किए गए ढांचे में हुआ था, यह गैर-विवादित है।

संविधान पीठ द्वारा रामलला विराजमान को मालिकाना हक दिया गया। संविधान पीठ ने माना कि देवता एक कानूनी व्यक्ति हैं। राम की ऐतिहासिकता और अयोध्या में उनके जन्म को लेकर कोई विवाद नहीं है, लेकिन मस्जिद के मुख्य गुंबद के नीचे ही जन्मस्थान होने की हिंदू पक्षकारों की दलील सरासर आधारहीन है। संविधान पीठ ने कहा कि ऐसा किया जाना जरूरी था, क्योंकि जो गलतियां की गईं, उन्हें सुधारना सुनिश्चित करना भी कोर्ट का उत्तरदायित्व है। संविधान पीठ ने यह भी कहा कि 'सहिष्णुता तथा परस्पर सह-अस्तित्व हमारे देश तथा उसकी जनता की धर्मनिरपेक्ष प्रतिबद्धता को पुष्ट करते हैं।

संविधान पीठ ने कहा कि बाबरी मस्जिद को 1934 में नुकसान पहुंचना, 1949 में इसको अपवित्र करना, जिसकी वजह से इस स्थल से मुसलमानों को बेदखल कर दिया गया और अंततः 6 दिसंबर 1992 को इसको ढहाया जाना क़ानून के नियम का गंभीर उल्लंघन है। संविधान पीठ ने कहा कि नमाज पढ़ने और इसकी हकदारी से मुस्लिमों का बहिष्करण 22/23 दिसंबर 1949 की रात को हुआ, जब हिन्दू देवताओं की मूर्ति वहां रखकर मस्जिद को अपवित्र किया गया। मुसलमानों को वहां से भगाने का काम किसी वैध अथॉरिटी ने नहीं किया, बल्कि यह एक भली प्रकार सोची-समझी कार्रवाई थी, जिसका उद्देश्य मुसलमानों को उनके पूजा स्थल से वंचित करना था।

संविधान पीठ ने कहा कि जब सीआरपीसी, 1898 की धारा 145 के तहत कार्रवाई शुरू की गई और अंदरूनी आंगन को जब्त करने के बाद रिसीवर नियुक्ति किया गया और तब वहां हिन्दू मूर्तियों की पूजा की अनुमति दी गई। इस मामले के लंबित रहने के दौरान मुस्लिमों के इस पवित्र स्थल को जान—बूझकर ढहा दिया गया। मुस्लिमों को गलती से उनके उस मस्जिद से वंचित कर दिया गया, जिसे 450 साल से भी पहले बनाया गया था। 6 दिसंबर 1992 को इस मस्जिद को ढहा दिया गया। उच्चतम न्यायालय के इस स्थल पर यथास्थिति बनाए रखने के आदेश के बावजूद इस मस्जिद को गिरा दिया गया। मस्जिद को गिराकर इस्लामिक संरचना को नष्ट करना क़ानून के राज का घिनौना उल्लंघन था।

संविधान पीठ ने कहा कि अगर अदालत मुस्लिमों के हक़ को नजरअंदाज करता है जिनके मस्जिद को ऐसे तरीकों को अपनाकर ढहा दिया गया, जो एक ऐसे धर्मनिरपेक्ष देश में नहीं होना चाहिए था, जिसने क़ानून के शासन को अपनाया है। संविधान में सभी धर्मों को समान दर्जा दिया गया है। सहिष्णुता और सह-अस्तित्व हमारे देश और इसके निवासियों की धर्मनिरपेक्ष प्रतिबद्धता के पोषक हैं।

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