मोदी सरकार हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन का स्टॉक सार्वजनिक करने से क्यों कर रही है इंकार, क्या मोदी अमेरिकी दबाव में भारतियों की जान से कर रहे है खिलवाड़?
दिलचस्प बात यह है कि प्रतिबंध हटाने की सूचना केंद्रीय विदेश मंत्रालय ने दी न कि विदेश व्यापार महानिदेशालय ने। 7 अप्रैल को घोषणा करते हुए, मंत्रालय ने कहा कि "स्टॉक की स्थिति ऐसी है कि हमारी कंपनियों को निर्यात प्रतिबद्धताओं को पूरा करने की अनुमति दी जा सकती है।" हालांकि, यह नहीं बताया गया कि स्टॉक की स्थिति देश में क्या है...
जनज्वार। 8 अप्रैल, 2020 को केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने भारत में हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन (एचसीक्यू) दवा के भंडार सार्वजनिक करने से इनकार कर दिया। मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल ने पिछले तीन दिनों में दोहराया है कि दवा की पर्याप्त उपलब्धता है। अग्रवाल ने एचसीक्यू की उपलब्धता के संबंध में जवाब में कहा, "मैं आपको आश्वस्त करता हूं कि पूरी स्थिति पर गंभीरता से नजर रखी जा रही है।"
देश में दवा की जरूरत के संदर्भ में, अग्रवाल ने कहा कि देश में एपीआई (एक्टिव फार्मास्यूटिकल इंग्रिडिएंट) उपलब्धता के साथ-साथ दवा उत्पादन कितनी है, इस पर नजर रखी जा रही है। उन्होंने आगे कहा कि यह सुनिश्चित किया जाता है कि जब और जैसी जरूरत होगी, देश में एचसीक्यू की कमी नहीं होगी। मैं यह कहना चाहूंगा कि एचसीक्यू केवल विशेष लोगों की जरूरत के लिए है। अग्रवाल ने कहा कि जब भी जरूरत होगी, एचसीक्यू आने वाले दिनों में पर्याप्त रूप से उपलब्ध होगा। फिर भी, दवा की उपलब्धता को ले कर गोपनीयता बरती जा रही है, जो पहले स्वास्थ्यकर्मियों और अब मरीजों के लिए अनुशंसित की गई है।
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) द्वारा जारी संशोधित दिशा-निर्देशों के अनुसार, एचसीक्यू (पहले दिन, एक दिन में 400 मिलीग्राम की खुराक दो बार और अगले 4 दिनों के लिए दिन में दो बार 200 मिलीग्राम की खुराक), एज़िथ्रोमाइसिन के साथ, गंभीर बीमारी और गहन देखभाल इकाई (आईसीयू) की जरूरत वाले मरीजों के लिए कारगर माना जा सकता है। इसके बाद, विदेश व्यापार महानिदेशालय ने 7 अप्रैल को एचसीक्यू के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया। दो दिन बाद, संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा भारत पर दबाव डालने के बाद, प्रतिबंध हटा दिया गया।
दिलचस्प बात यह है कि प्रतिबंध हटाने की सूचना केंद्रीय विदेश मंत्रालय ने दी न कि विदेश व्यापार महानिदेशालय ने। 7 अप्रैल को घोषणा करते हुए, मंत्रालय ने कहा कि "स्टॉक की स्थिति ऐसी है कि हमारी कंपनियों को निर्यात प्रतिबद्धताओं को पूरा करने की अनुमति दी जा सकती है।" हालांकि, यह नहीं बताया गया कि स्टॉक की स्थिति देश में क्या है।
वही मेहता ने कहा था कि 15,000 परीक्षण किए गए थे लेकिन यह अपर्याप्त था। इसलिए निजी लैबों को परीक्षण की अनुमति दी गई थी। जब 12 मार्च को निजी लैबों को कोरोना टेस्ट की अनुमति दी गई थी तो आईसीएमआर महानिदेशक ने कहा था कि उन्होंने स्वेच्छा से ये काम किया है। डीटीई ने पूछा था कि क्या ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि सरकारी प्रयोगशालाएं नाकाफी साबित हो रही थीं।
अग्रवाल ने लैब की पर्याप्तता या कमी के बारे में कोई जवाब नहीं दिया। उन्होंने कहा, “हम जो भी परीक्षण कर रहे हैं, प्रोटोकॉल के अनुसार कर रहे हैं। हम निजी प्रयोगशालाओं को इसलिए चाहते थे कि वे भौगोलिक उपलब्धता सुनिश्चि कर सकते थे। उनके संग्रह (सैंपल कलेक्शन) हमें बेहतर प्रबंधन करने में मदद करेंगे।”
डीटीई ने जांच की कि क्या वास्तव में देश के सभी भागों में निजी प्रयोगशालाएं मौजूद हैं। आईसीएमआर के अनुसार, 7 अप्रैल, 2020 तक 67 निजी लैब नोवेल कोरोना रोग (कोविड-19) का परीक्षण कर रहे थे। ज्यादातर लैब राज्य की राजधानियों में केंद्रित हैं।
नतीजतन, मुंबई में नौ निजी प्रयोगशालाएं हैं। इसके अलावा, मुंबई में 5 सरकारी प्रयोगशालाएं भी हैं। राज्य की अन्य निजी प्रयोगशालाओं में, पुणे की चार और ठाणे की एक प्रयोगशाला भी शामिल है। इसी तरह, हरियाणा के सभी छह निजी प्रयोगशालाएं गुरुग्राम में स्थित हैं।