जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव में लापरवाही को लेकर एक्शन में अखिलेश, BJP को मिली निर्विरोध जीत के बाद 11 जिलाध्यक्षों को हटाया
दादागिरी से भाजपा को जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव में मिली निर्विरोध जीत के बाद 11 सपा जिलाध्यक्ष हुए अखिलेश के गुस्से का शिकार
जनज्वार। यूपी में जिला पंचायत अध्यक्ष के लिए आज 26 जून को चुनाव हुआ था, जिसमें राज्य के कई जगहों पर हिंसक घटनायें हुयीं, बवाल ने मारपीट का रूप अख्तियार किया। इनमें योगी का गोरखपुर और देवरिया भी शामिल है। गोरखपुर में तो भाजपा प्रत्याशी समर्थकों ने सपा समर्थकों को पुलिस प्रशासन के सामने ही पीट दिया, बवाल और मारपीट के चलते बने तनाव के माहौल के बीच सपा प्रत्याशी का नामांकन पत्र अंतिम समय तक दाखिल नहीं हो सका।
वहीं दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी ने जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव में लापरवाही बरतने के लिए 11 जिलाध्यक्षों को हटा दिया है। सपा के प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल ने शनिवार 26 जून को हटाए जाने संबंधी कार्यवाही की जानकारी साझा की। सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के निर्देश पर गोरखपुर, मुरादाबाद, झांसी, आगरा, गौतमबुद्धनगर, मऊ, बलरामपुर, श्रावस्ती, भदोही, गोंडा और ललितपुर के जिलाध्यक्षों को उनके पद से पदमुक्त कर दिया गया है।
प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल ने इसकी जानकारी पार्टी के वरिष्ठ पदाधिकारियों के साथ साझा की औश्र वहीं से यह बात मीडिया तक पहुंची। समाजवादी पार्टी की राय में इन जिलाध्यक्षों की लापरवाही के चलते जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव के लिए संबंधित जिलों में पार्टी उम्मीदवार का या तो समय से नामांकन नहीं हो पाया या फिर खारिज कर दिया गया। समाजवादी पार्टी का कहना है कि वह अब इन जिलों में जल्दी ही नये जिलाध्यक्षों को नामित करेगी।
गोरखपुर व अन्य जगह जिस तरह भाजपा सरकार ने पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में समाजवादी पार्टी के प्रत्याशियों को नामांकन करने से रोका है, वो हारी हुई भाजपा का चुनाव जीतने का नया प्रशासनिक हथकंडा है।
— Akhilesh Yadav (@yadavakhilesh) June 26, 2021
भाजपा जितने पंचायत अध्यक्ष बनायेगी, जनता विधानसभा में उन्हें उतनी सीट भी नहीं देगी। pic.twitter.com/QNWtI92xJE
11 जिलाध्यक्षों को निकाले जाने के बाद समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि भाजपा ने पंचायत चुनाव में धोखाधड़ी और धांधली कर अलोकतांत्रिक आचरण का परिचय दिया है। भाजपा बुनियादी मुद्दों से भटकाने वाली राजनीति करने में माहिर है। इस समय देश-प्रदेश के समक्ष सबसे बड़ा मुद्दा किसान आंदोलन है।
अखिलेश ने अपने ट्वीटर हैंडल पर एक वीडियो साझा करते हुए लिखा है, 'गोरखपुर व अन्य जगह जिस तरह भाजपा सरकार ने पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में समाजवादी पार्टी के प्रत्याशियों को नामांकन करने से रोका है, वो हारी हुई भाजपा का चुनाव जीतने का नया प्रशासनिक हथकंडा है। भाजपा जितने पंचायत अध्यक्ष बनायेगी, जनता विधानसभा में उन्हें उतनी सीट भी नहीं देगी।'
अखिलेश ने आज किसान आंदोलन के 7 माह पूरे होने पर कहा कि बीजेपी पिछले सात माह से चल रहे किसान आंदोलन के प्रति पूर्ण उपेक्षाभाव अपनाए हुए है। देश के अन्नदाता किसान का इतना घोर अपमान कभी किसी सरकार में नहीं हुआ। झूठे दावों और वादों के साथ भाजपा ने किसानों के साथ धोखा ही किया है। भाजपा का रवैया पूर्णतया संवेदनशून्य है। सैकड़ों किसान अपनी जाने गंवा चुके हैं। भाजपा सरकार ने उन्हें मौन श्रद्धांजलि तक नहीं दी। भाजपा सरकार अपने संरक्षकों-बड़े व्यापारी घरानों के दबाव में किसानों की मांगों को मानने से इंकार कर रही है। किसानों का कहना है कि भाजपा के कृषि कानूनों से खेती पर उनका स्वामित्व खत्म हो जाएगा, वे अपने खेतों में ही मजदूर हो जाएंगे। किसान बर्बादी के कगार पर पहुंच जाएगा।
बकौल अखिलेश, भाजपा सरकार अपने किए वादे भी पूरे नहीं करना चाहती है। किसानों को धान का 1888 रुपये और गेहूं की 1975 रुपये प्रति कुंतल एमएसपी मिली नहीं, क्योंकि सरकारी क्रय केंद्रों में खरीद ही नहीं हुई। भाजपा सरकार लोकतंत्र में जनादेश की उपेक्षा का गम्भीर अपराध कर रही है। उसने लोकलाज भी त्याग दिया है। किसान और खेती की बर्बादी से भारतीय अर्थव्यवस्था भी प्रभावित हुए बिना नहीं रहेगी। भाजपा किसान आंदोलन की मूकदर्शक बनकर रहेगी तो सन् 2022 में सत्ता की देहरी तक वह नहीं पहुंच पाएगी। किसानों से समाजवादी पार्टी का जुड़ाव है। पंचायती चुनावों के नतीजों से संकेत मिल चुका है कि ऊंट किस करवट बैठेगा?