चुनावी बॉन्ड कालेधन और राजनीतिक भ्रष्टाचार का बड़ा स्रोत - जवाब में मोदी सरकार के वकील ने कोर्ट से कहा मुमकिन नहीं
चुनावी बॉन्ड कालेधन और राजनीतिक भ्रष्टाचार का बड़ा स्रोत - जवाब में मोदी सरकार के वकील ने कोर्ट से कहा मुमकिन नहीं
Electoral Bond : सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court ) में चुनावी बॉन्ड ( Electoral Bond ) योजना के खिलाफ दायर याचिकाओं पर शुक्रवार यानि 14 अक्टूबर को सुनवाई के दौरान केंद्र ने अपना पक्ष रखा। केंद्र सरकार ( Modi government ) का दावा है कि इलेक्टोरल बॉन्ड राजनीतिक फंडिंग ( Political funding ) का एक पारदर्शी तरीका है। इससे ब्लैक मनी ( Black money ) मिलना संभव नहीं है। यह कहना कि यह लोकतंत्र को प्रभावित करता है, सही नहीं है। केंद्र का पक्ष जानने के बाद शीर्ष अदालत ने इस मामले की विस्तार से सुनवाई के लिए 6 दिसंबर की तारीख मुकर्रर की है। उस दिन कोर्ट यह परीक्षण करेगी कि क्या मामले को बड़ी पीठ को सौंपा जाना चाहिए?
केंद्र सरकार ने क्या कहा
जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने कहा कि यह अहम मामला है। उन्होंने एटॉर्नी जनरल और सॉलिसीटर जनरल से सुनवाई में मदद मांगी। सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ के समक्ष कहा कि चुनावी बॉन्ड ( Electoral Bond ) के जरिए चंदा प्राप्त करने का तरीका पूरी तरह पारदर्शी है। उन्होंने कहा कि यह व्यवस्था राजनीतिक दलों को नकद चंदा देने के विकल्प के तौर पर लाई गई है। इसका मकसद राजनीतिक चंदे की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाना है।
पीठ को अपने सवालों को मिला ये जवाब
सुप्रीम कोर्ट ( Supreme court ) जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने जब पूछा कि क्या सिस्टम इस बात का जवाब देता है कि पैसा कहां से आ रहा है, इस पर केंद्र के पक्षकार तुषार मेहता ने जवाब दिया कि बिल्कुल, यह जानकारी देता है।
बॉन्ड पर तत्काल लगे रोक : एडीआर
वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने दिसंबर, 2019 में याचिकाकर्ता एसोसिएशन फॉर डेमोक्रटिक रिफॉर्म्स ( ADR ) ने इस योजना पर रोक लगाने के लिए एक आवेदन दायर किया। यह मामला बहुत ही गंभीर है। इलेक्टोरल बॉन्ड ( Electoral Bond ) पर तत्काल प्रभाव से रोक की मांग की थी। इसमें मीडिया रिपोर्ट्स के हवाले से बताया गया कि किस तरह चुनावी बॉन्ड योजना पर चुनाव आयोग ( Election commission ) और रिजर्व बैंक ( RBI ) की चिंताओं को केंद्र सरकार ने दरकिनार किया था।
सियासी दलों को रिश्वत देने का तरीका : प्रशांत भूषण
सुनवाई कि दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि यह बॉन्ड का गलत उपयोग है। इसका उपयोग शेल कंपनियां कालेधन को सफेद बनाने में कर रही हैं। बॉन्ड कौन खरीद रहा है, इसकी जानकारी सिर्फ सरकार को होती है। चुनाव आयोग तक इससे जुड़ी कोई जानकारी नहीं ले सकता है। ये राजनीतिक दल को रिश्वत देने का एक तरीका है।
बड़ी पीठ करे इसकी सुनवाई : कपिल सिब्बल
सपा सांसद और वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि चूंकि यह गंभीर मसला है, इसलिए इस मसले को एक बड़ी पीठ को विचार करने के लिए सौंपा जाना चाहिए।
चुनावी तो नहीं पर अहम मसला है
एक अन्य याचिकाकर्ता ने कहा कि गुजरात और हिमाचल प्रदेश में चुनाव होना है, इसलिए इस पर फैसला जल्द होना चाहिए। इस पर मेहता ने कहा कि यह मसला चुनावी नहीं है। इस पर प्रशांत भूषण ने कहा कि यह चूंकि हर राज्य के चुनाव से पहले बॉन्ड जारी किए जाते हैं, इसलिए यह अहम मसला है।
इलेक्टोरल बॉन्ड : किसने क्या कहा
सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court ) : इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए कालेधन को कानूनी किया जा सकता है। विदेशी कंपनियां सरकार और राजनीति को धन के जरिए प्रभावित कर सकती हैं।
चुनाव आयोग ( Election Commission ) : चंदा देने वालों को नाम गुप्त रखने से यह पता नहीं चल पाएगा कि रजानीतिक दलों ने धारा 29 बी उल्लंघन कर चंदा लिया है या नहीं। विदेशी चंदा लेने वाला कानून भी बेकार हो जाएगा।
आरबीआई ( RBi ) : इलेक्टोरल बॉन्ड मनी लॉन्ड्रिंग को बढ़ावा देगा। इसके जरिए ब्लैक मनी को व्हाइट करना संभव होगा।
क्या है पूरा मामला
इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को पहली बार 2017 में ही चुनौती दी गई थी, लेकिन सुनवाई 2019 में शुरू हुई। 12 अप्रैल, 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने सभी पॉलिटिकल पार्टियों को निर्देश दिया कि वे 30 मई, 2019 तक में एक लिफाफे में चुनावी बॉन्ड से जुड़ी सभी जानकारी चुनाव आयोग को दे।
इलेक्टोरल बॉन्ड क्या है?
2017 के बजट में उस वक्त के वित्त मंत्री अरुण जेटली ने चुनावी या इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को पेश किया था। 29 जनवरी 2018 को केंद्र सरकार ने इसे नोटिफाई किया। ये एक तरह का प्रोमिसरी नोट होता है जिसे बैंक नोट भी कह सकते हैं। इसे कोई भी भारतीय नागरिक या कंपनी खरीद सकती है। अगर आप इसे खरीदना चाहते हैं तो आपको ये स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की चुनी हुई ब्रांच में मिल जाएगा। इसे खरीदने वाला इस बॉन्ड को अपनी पसंद की पार्टी को डोनेट कर सकता है। बस वो पार्टी इसके लिए एलिजिबल होनी चाहिए।
इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने वाला 1 हजार से लेकर 1 करोड़ रुपए तक का बॉन्ड खरीद सकता है। खरीदने वाला जिस पार्टी को ये बॉन्ड डोनेट करना चाहता है, उसे पिछले लोकसभा या विधानसभा चुनाव में कम से कम 1% वोट मिला होना चाहिए। डोनर के बॉन्ड डोनेट करने के 15 दिन के अंदर इसे उस पार्टी को चुनाव आयोग से वैरिफाइड बैंक अकाउंट से कैश करवाना होता है। बॉन्ड खरीदने वाले की पहचान गुप्त रहती है। इसे खरीदने वाले व्यक्ति को टैक्स में रिबेट भी मिलता है। ये बॉन्ड जारी करने के बाद 15 दिन तक वैलिड रहते हैं।
Electoral Bond : विवाद क्यों
दरअसल, 2017 में अरुण जेटली ने इसे पेश करते वक्त दावा किया कि इससे राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाली फंडिंग और चुनाव व्यवस्था में पारदर्शिता आएगी। ब्लैक मनी पर अंकुश लगेगा। वहीं इसका विरोध करने वालों का कहना है कि इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने वाले की पहचान जाहिर नहीं की जाती है, इससे ये चुनावों में काले धन के इस्तेमाल का जरिया बन सकते हैं। कुछ लोगों का आरोप है कि इस स्कीम को बड़े कॉरपोरेट घरानों को ध्यान में रखकर लाया गया है। इससे ये घराने बिना पहचान उजागर हुए जितना मर्जी उतना चंदा राजनीतिक पार्टियों को दे सकते हैं।
बॉन्ड से 4 साल में मिले 9,207 करोड़
जनवरी 2022 के शुरुआती 10 दिनों में ही राजनीतिक दलों को चंदा देने के लिए SBI से करीब 1,213 करोड़ रुपए के इलेक्टोरल बॉन्ड बिके हैं। इस तरह 2018 से अब तक 4 साल में इलेक्टोरल बॉन्ड से पॉलिटिकल पार्टियों को 9,207 करोड़ रुपए चंदा मिला है। ये पैसा कहां से आया और किसने दिया, इसका कोई अता-पता नहीं है।